छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सल इलाके में फोर्स के आगे होगी दोहरी चुनौती
चुनाव के तीन महीने पहले से अंतरराज्यीय सीमाओं पर संयुक्त निगरानी की रणनीति बन गई है। बीजापुर में दस नक्सलियों को मार गिराने के बाद फोर्स के हौसले बुलंद हैं।
रायपुर, राज्य ब्यूरो। विधानसभा चुनाव में नक्सलियों को पीछे धकेलने में सफल रही फोर्स को लोकसभा चुनाव में दोहरी चुनौती से जूझना पड़ सकता है। विधानसभा चुनाव बिना किसी हिंसा के निर्विघ्न करवाने पर छत्तीसगढ़ निर्वाचन आयोग को जमकर वाहवाही मिली। कई पुरस्कार भी मिले।
लोकसभा में इस सफलता को दोहराने की तैयारी की जा रही है। हालांकि खुफिया एजेंसियां इस बात को लेकर चिंतित हैं कि नक्सलियों के टीसीओसी (टेक्टिकल काउंटर आफेंसिव कैंपेन) के दौरान होने जा रहे चुनाव में हिंसा की संभावना बढ़ गई है।
दरअसल साल भर आमतौर पर चुप बैठने वाले नक्सली मार्च से जून के बीच टीसीओसी चलाते हैं और इस दौरान बड़ी वारदात करने की फिराक में रहते हैं। खुफिया विभाग के एक अफसर ने कहा कि पिछले दो साल से नक्सलियों ने टीसीओसी पर अपनी रणनीति में बदलाव भी किया है।
अब वे मार्च का इंतजार नहीं करते बल्कि जनवरी-फरवरी से ही टीसीओसी शुरू कर देते हैं। हालांकि इस साल अब तक कोई बड़ी वारदात सामने नहीं आई है। इससे लगता है कि वे चुनाव का इंतजार कर रहे हैं। मार्च से मई के बीच सबसे ज्यादा नक्सली वारदात दर्ज की गई है।
ताड़मेटला में 76 जवानों का नरसंहार से लेकर पिछले साल कांकेरलंका में सीआरपीएफ के 25 जवानों की हत्या तक। सभी बड़ी घटनाएं इन्हीं महीनों में देखी गई हैं।
इस बार दिक्कत यह है कि इसी दौरान लोकसभा के चुनाव भी होंगे। बीते कुछ वर्षों में फोर्स ने नक्सल इलाकों में अपना शिकंजा कसा तो है पर छोटी सी चूक भी भारी पड़ सकती है। पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले के बाद से बस्तर के नक्सल इलाकों में सतर्कता बढाई गई है। एसओपी (स्टैंडर्ट ऑपरेटिंग प्रोसीजर) का सख्ती से पालन करने को कहा गया है।
चुनाव के तीन महीने पहले से अंतरराज्यीय सीमाओं पर संयुक्त निगरानी की रणनीति बन गई है। बीजापुर में दस नक्सलियों को मार गिराने के बाद फोर्स के हौसले बुलंद हैं। अब यह सावधानी बरती जा रही है कि कहीं अति उत्साह में किसी जाल में न फंस जाएं।
गर्मियों में इसलिए करते हैं टीसीओसी
पुलिस के एक बड़े अफसर ने बताया कि नक्सली सोची समझी रणनीति के तहत सालाना कैलेंडर बनाकर काम करते हैं। साल के कुछ महीने वे मिलिट्री ऑपरेशन पर फोकस करते हैं। इसे ही टीसीओसी कहा जाता है। इस दौरान वे पलटवार कर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करते हैं। गर्मियों में पतझड़ के बाद जंगल में दृश्यता बढ़ जाती है। इससे नक्सलियों को फोर्स की पहचान करने में आसानी होती है। नदी-नालों का जलस्तर घटने से उनके लिए एक इलाके से दूसरे इलाके तक भागने का काफी अवसर होता है। इसीलिए वे गर्मियों में टीसीओसी करते हैं।
लोकसभा चुनाव में खतरा ज्यादा
विधानसभा चुनाव फोर्स के पर्याप्त बंदोबस्त से शांतिपूर्ण निपटा। वैसे यह भी माना जाता है कि विधानसभा चुनाव से ज्यादा नक्सली लोकसभा चुनाव के बहिष्कार पर जोर देते हैं। वे भारतीय गणराज्य से लड़ने का दावा करते हैं। लोकसभा में गड़बड़ी कर वे सांकेतिक रूप से भारत सरकार से अपनी लड़ाई को जताना चाहते हैं।