चुनावी चौपाल : तबाही रुकी नहीं, कमाई का जरिया बना बांध
कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र मेें दैनिक जागरण द्वारा चौपाल का आयोजन। स्थानीय लोगों व किसानों ने रखी राय बाढ़ संकट से निजात की मांग।
गोंडा, जेएनएन। कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र का अधिकांश भाग सरयू व घाघरा नदियों के समीप है। हर साल बारिश में नदियों में बाढ़ आ जाती। बाढ़ से बहराइच जिले से लेकर गोंडा तक बड़ी संख्या में जन-धन हानि होती है। इस त्रासदी से बचाने के लिए वर्ष 1965 में कर्नलगंज के गोंडा लखनऊ मार्ग से लेकर तरबगंज के धौरहरा तक 60 किमी. परसपुर धौरहरा बांध का निर्माण कराया गया।
इस बांध के बन जाने से बाढ़ से होने वाली तबाही से बचाव हो गया लेकिन, दोनों नदियों के समीपवर्ती दर्जनों गांव तबाही का दंश झेलते रहे। इन गावों को बचाने के लिया वर्ष 2005-06 में 54 किमी. लंबा परसपुर के तुलसी सेतु से बहराइच के संजय सेतु तक एल्गिन चरसड़ी बांध व 22 किमी लंबे परसपुर के सकरौर से बेलसर के भिखारीपुर गांव तक भिखारीपुर सकरौर बांध का निर्माण कराया गया लेकिन, बांध से लोगों को राहत कम और मुसीबत अधिक मिली। बनने के बाद से दोनों बांध पांच-पांच बार टूट चुके हैं।
वर्ष 2017 में तो ऐसा भी दौर आया कि टूटे बांध की मरम्मत ही नहीं कराई गई और नदियों का जलस्तर बढ़ते ही बाढ़ का पानी गांवों मे घुसने लगा। इसी मुद्दे पर दैनिक जागरण द्वारा कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र के घाघरा नदी के तटवर्ती गांव बहुअन मदार मांझा के देवीगंज में चौपाल का आयोजन किया गया। इसमें किसानों व अन्य प्रबुद्धजनों विकट बाढ़ की करुण कहानी पर बेबाकी से अपनी राय रखी। बांध को मजबूती दिलाने के लिए इसे पक्का बनाने तथा तबाह हुए फसलों व घरों का मुआवजा दिलाने की मांग उठी। बहुअन मदार मांझा की साधना सिंह ने कहा कि बाढ़ एक बड़ी समस्या है। इसके चलते लोगों को पलायन तक करना पड़ता है। इससे लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है।
कैलाशा देवी ने कहा कि बांध के टूटने पर भयानक मुसीबत आती है। घर व फसल सब बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं। फसलों का मुआवजा भी नहीं मिलता है। अर्पिता सिंह ने कहा कि बाढ़ के पानी के साथ जहरीले जीव जंतु भी आ जा जाते हैं, जिससे लोग भयभीत रहते हैं। मुन्नी देवी ने कहाकि सरकार के लाख प्रयास के बाद भी गांवों में शौचालय का निर्माण उस अनुपात में नहीं हो रहा है जैसा होना चाहिए। जयश्री सिंह ने कहा कि बांध की मरम्मत केवल कागजों में होती है। बांध धंधा बन गया है। परसादी बोले कि बांध के बार-बार टूटने से तो अच्छा था कि बांध का निर्माण ही न कराया जाता तब केवल तबाही ही आती थी। खौफ में तो नहीं जिया जाता था। शिवनाथ निषाद ने कहा कि बांध के टूटने से इसके दायरे में करीब 20 किमी का एरिया आ जाता है, जहां केवल पानी ही पानी दिखाई देता है।
नरायन ने कहा कि बाढ़ के चलते कई महीने तक घरों को छोड़कर वनवासी की तरह घर से बाहर रहना पड़ता है, जहां गेहूं-चावल खरीद करके खाना पड़ता है। अनिल कुमार सिंह ने कहा कि बाढ़ में फसलें बह जाती हैं और सरकार इसका मुआवजा भी नहीं देती है। बांकेलाल ने कहा कि बांध कमाई का जरिया बन गया है इसलिए इसे मजबूत नहीं बनाया जाता है। उन्होंने इसे मजबूत बनाकर स्थाई समाधान की बात कही। इसी तरह मंटू सिंह, सतनाम यादव, चंद्रप्रकाश सिंह, लल्लन, राममूर्ति सिंह, धर्मेंद्र सिंह, रामकुमार सिंह, अमर बहादुर, हीरालाल यादव, सुशील कुमार व चंद्रदेव सिंह ने बड़े ही बेबाकी के साथ चौपाल में अपनी बात रखी।