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Lok sabha election 2019: आस्था की चौखटें मांग रहीं विकास की मन्नत

अवध के धार्मिक स्थल आज भी पर्यटन के लिए जरूरी विकास की आस लगाए हुए हैं। तमाम सत्ता प्रेमियों की मनौती पूरी करने वाले इन स्थलों की मन्नत कब पूरी होगी सियासत जाने। पेश है एक रिपोर्ट।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 30 Mar 2019 11:52 AM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 11:52 AM (IST)
Lok sabha election 2019:  आस्था की चौखटें मांग रहीं विकास की मन्नत
Lok sabha election 2019: आस्था की चौखटें मांग रहीं विकास की मन्नत

जिस देहरी पर आते हो सत्ता की

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ख्वाहिश लेकर।

चादर फूल चढ़ाते हो वोटों की

चाहत लेकर।

कभी लौटकर आओ तो कुछ देने

की मंशा लेकर।।

लखनऊ, जेएनएन। ये पंक्तियां उन राजनेताओं पर मौजूं हैं जो चुनाव के समय तो मंदिर, गुरुद्वारा, दरगाह और मजार पर माथा टेककर जीत की मनौती मांगते हैं, लेकिन उसके बाद शायद उनसे उनका सरोकार नहीं रहता। रामजन्मभूमि, नैमिषारण्य, देवा और महादेवा जैसे प्रख्यात तीर्थस्थल और सिद्धपीठ को अपने आंचल में समेटे अवध क्षेत्र इसी राजनीतिक उदासीनता का जीता जागता उदाहरण है। करोड़ों की आस्था के प्रतीक ये धार्मिक स्थल शायद शिलान्यास प्रेमी हृदयों को विचलित नहीं कर सके। ट्रेन और बस की सुविधा नहीं तो कहीं होटल और धर्मशालाओं की किल्लत, पर्यटन विभाग तो जैसे यहां घूमना नहीं चाहता। अवध के धार्मिक स्थल आज भी पर्यटन के लिए जरूरी विकास की आस लगाए हुए हैं। तमाम सत्ता प्रेमियों की मनौती पूरी करने वाले इन स्थलों की मन्नत कब पूरी होगी सियासत जाने। पेश है एक रिपोर्ट।

अवध क्षेत्र में छोटे-बड़े सौ से अधिक धर्मस्थल हैं। इनकी महत्ता को देखते हुए सूबे के धर्मस्थलों को पर्यटनस्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा भी की गई, लेकिन वादे हैं वादों का क्या। अगर कहा जाए कि सियासत की मार सबसे ज्यादा अयोध्या ने झेली तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। रामजन्मभूमि के साथ ही शहर के विकास पर भी पाबंदी लग गई है। अयोध्या से 52 किमी दूर स्थित कामाख्या भवानी मंदिर पर प्रति वर्ष करीब पांच लाख लोग आते हैं। राजधानी से सरकारी परिवहन और ट्रेन सुविधा नहीं है। 15 किमी दूर भरत कुंड और 41 किमी दूर सरयू तट पर स्थित शृंगी ऋषि आश्रम के लिए निजी वाहन ही सहारा है।

बाराबंकी स्थित देवा में हाजी वारिस अली शाह की दरगाह भी विश्व प्रसिद्ध है। लाखों जायरीन यहां पहुंचते हैं तो लोधेश्वर महादेवा जिले के गौरव और आस्था का प्रतीक है। यहां पर्यटन विभाग के रेस्ट हाउस, एसी होटल और लॉज तो दूर, रैन बसेरे भी ढंग के नहीं हैं। यह हालत तब है जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोधेश्वर महादेवा के पर्यटन विकास की घोषणा की थी, मगर काम अभी शुरू नहीं हो पाया है। सिरौलीगौसपुर क्षेत्र में कुंतेश्वर महादेव और स्वामी जगजीवन साहेब की तपोस्थली कोटवाधाम के अलावा करीब दो दर्जन धार्मिक स्थल हैं जहां पर्यटन विकास की जरूरत है।

हरदोई स्थित मल्लावां कस्बे के पास स्थित बाबा सुनासीर नाथ शिवलिंग की स्थापना भगवान इंद्र देव द्वारा किए जाने की मान्यता है। 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा शिवलिंग पर आरा भी चलवाए जाने की बात कही जाती है। इस दौरान शिवलिंग से ततैया निकली, जिससे मुगल सेना मंदिर छोड़ कर भाग गई। आरे के निशान आज भी शिवलिंग पर मौजूद हैं। इस स्थान को राजधानी से सीधी बस या ट्रेन सेवा नहीं जोड़ा जा सका है। यहां ठहरने के लिए निजी या सरकारी होटल या लॉज नहीं है।

खीरी में छोटी काशी के नाम से मशहूर गोला गोकर्णनाथ की महत्ता जगजाहिर है। 1970 में शिवलिंग को ऊंचा किए जाने के लिए आसपास खोदने का प्रयास किया गया। शिवलिंग की कोई थाह न मिलते देख कार्य रुकवा दिया गया था। लाखों भक्त प्रतिवर्ष आते हैं, लेकिन पर्यटन स्थल भी नहीं घोषित किया जा सका है। बहराइच के धार्मिक स्थल भी विकास की आस में हैं।

सीतापुर में है अट्ठासी हजार ऋषियों की तपोस्थली नैमिषारण्य। पिछले पांच साल में नैमिषारण्य में सड़कें सुधरी हैं। यहां आने वाले पर्यटकों को सड़क मार्ग पर ही अधिक निर्भर रहना पड़ता है। यहां पर रेलवे स्टेशन तो है, मगर ट्रेनों की संख्या काफी कम है।

रायबरेली के डलमऊ में छह सौ वर्ष पुराना बौद्धकालीन मठ, एक दर्जन से अधिक अति प्राचीन मंदिर, मुगलकालीन गंगा घाट हैं। राजधानी से सीधी बस सेवा है, लेकिन इसे रेल सेवा से नहीं जोड़ा जा सका है।

सुल्तानपुर में सीताकुंड घाट में राम वन गमन के समय यहां कुंड में मां सीता ने स्नान किया था। धोपाप (लंभुआ) में श्रीराम ने रावण (ब्रह्महत्या) के पाप से मुक्ति के लिए यहां अयोध्या लौटते स्नान किया था। दियरा में भगवान राम ने अयोध्या लौटते दीपदान किया था। वहीं बिजेथुआ महवीरन में हनुमानजी ने कालनेमि राक्षस का वध किया था। यहां काफी श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन व्यवस्थाएं शून्य हैं।

अमेठी के संग्रामपुर ब्लाक में कालिकन धाम देवी मंदिर है। सीधी बस सेवा से जोड़ा नहीं जा सका है। भादर का टीकरमाफी आश्रम परमहंस की तपोभूमि है। यहां भी पहुंचने के लिए परिवहन की कोई सुविधा नहीं है। जिले सिंहपुर ब्लाक का अहोरवा भवानी मंदिर भी केंद्रीय पर्यटन की सूची में शामिल है, लेकिन सुविधाएं नहीं हैं। नंदमहर धाम में हर साल यादवों के महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। इसके बावजूद यह बदहाल है। बहराइच में यहां हजरत सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर जेठ माह में मेला लगता है। इसमें देश-विदेश से लगभग 10 लाख लोग आते हैं, लेकिन सरकारी सुविधाएं शून्य हैं।

गोंडा का पृथ्वीनाथ मंदिर भी नजर-ए-इनायत के इंतजार में

गोंडा में जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर स्थित छपिया में स्वामी नारायण संप्रदाय के प्रर्वतक घनश्याम महाराज की जन्मस्थली है। आवागमन के साधन सुलभ न होने के कारण श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है। जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर उमरी ब्लॉक में स्थित मां वाराही देवी मंदिर आस्था का केंद्र है। अयोध्या, बाराबंकी, बहराइच आदि जिलों से भी काफी लोग पृथ्वीनाथ मंदिर भी आते हैं लेकिन साफ-सफाई की व्यवस्था नहीं है।

इनपुट: रमाशरण अवस्थी (अयोध्या), जगदीप शुक्ल (बाराबंकी), पंकज मिश्र (हरदोई), धर्मेश शुक्ल (खीरी), राम शकल यादव (अंबेडकरनगर), रमन मिश्र (बलरामपुर), गोविंद मिश्र (सीतापुर), अजय सिंह (गोंडा), पंकज मिश्र (हरदोई), रसिक द्विवेदी (रायबरेली), धर्मेंद्र मिश्र (सुल्तानपुर) व अभिषेक मालवीय(अमेठी), विजय द्विवेदी(बहराइच)।


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