अतीत के आईने से: सबसे पुरानी वामपंथी पार्टी है सीपीआइ, आपातकाल का किया था खुल कर समर्थन
सीपीआइ मूल रूप से सोवियत संघ से प्रेरित पार्टी रही है। आजाद भारत के पहले आम चुनाव में सीपीआइ सबसे बड़े विपक्षी दल के रुप में उभरी थी।
अंकुर अग्निहोत्री। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) भारत की सबसे पुरानी वामपंथी पार्टी है। इसकी स्थापना 17 अक्टूबर, 1920 को ताशकंद में एमएन रॉय, अबनी मुखर्जी, मुहम्मद अली और कुछ अन्य नेताओं के सहयोग से हुई। इसके बाद भारत में सक्रिय वामपंथी विचारधारा के गुटों से संपर्क स्थापित किया गया, जिनकी अगुआई बंगाल में मुजफ्फर अहमद, बाम्बे में एसए डांगे, मद्रास में एस चेटिट्यार, पंजाब में गुलाम हुसैन और संयुक्त प्रांत में शौकत उस्मानी सरीखे नेता कर रहे थे। इसके बाद 25 दिसंबर 1925 को कानपुर में हुए सम्मेलन में सीपीआइ में कई समूह शामिल हो गए।
आजादी के बाद
1947 में कलकत्ता (अब कोलकाता) सम्मेलन में बीटी राणादिवे को महासचिव चुना गया। इसके बाद तेलंगाना, केरल और त्रिपुरा में जमींदारों के खिलाफ हिंसक आंदोलन शुरू हुआ। लेकिन पार्टी ने सशस्त्र विद्रोह के तरीके को त्याग दिया और इसके समर्थक माने जाने वाले बीटी राणादिवे को महासचिव पद से हटा दिया गया।
नारा बदला
1951 में सीपीआइ ने पार्टी के नारे को पीपुल्स डेमोक्रेसी से बदल कर नेशनल डेमोक्रेसी कर दिया।
विपक्षी दल बना
1957 में पहले आम चुनावों में सीपीआइ सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में उभरी। पार्टी ने इस चुनाव में 33 सीटों पर जीत हासिल की थी।
लग चुका है प्रतिबंध
1952 में हुए त्रावणकोर-कोचीन विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, इसलिए यह चुनाव प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकी थी।
विभाजन
सीपीआइ के सामने सबसे बड़ा धर्मसंकट 1962 में आया जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया। जहां सोवियत संघ का समर्थन करने वाले कई नेताओं ने भारत सरकार का समर्थन किया, वहीं कम्युनिस्ट नेताओं जैसे ईएमएस नम्बूदरीपाद और बीटी रणदिवे ने इसे समाजवादी और पूंजीवादी राष्ट्र के बीच संघर्ष करार दिया। 1964 के आते-आते सीपीआइ में औपचारिक विभाजन हो गया और सीपीआइ (एम) का गठन हुआ।
आपातकाल का समर्थन
इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की निंदा करीब सभी राजनीतिक दलों और कई कांग्रेसियों ने की थी। लेकिन सीपीआइ एकमात्र ऐसी पार्टी थी, जिसने इंदिरा गांधी के इस कदम का खुलकर समर्थन किया था।
कांग्रेस से गठबंधन
सीपीआइ ने 1970-77 के बीच कांग्रेस से तालमेल किया। केरल में कांग्रेस के साथ मिलकर उन्होंने सरकार बनाई। लेकिन इंदिरा गांधी के हाथों से सत्ता जाने के बाद पार्टी ने सीपीएम की ओर हाथ बढ़ाना शुरू किया।
चुनाव चिन्ह
ये ऐसी पहली पार्टी है, जिसका आजादी के बाद अब तक चुनाव चिन्ह नहीं बदला है।
वर्तमान स्थिति
सीपीआइ को भारत के चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी है। लेकिन 2014 के आम चुनाव में भारी हार के कारण जहां पार्टी के पास सिर्फ एक ही सांसद है, ऐसे में चुनाव आयोग ने पार्टी को एक पत्र भेजकर कारण पूछा कि उसकी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा क्यों नहीं रद किया जाना चाहिए। अगर अगले चुनाव में भी इसी तरह का प्रदर्शन दोहराया जाता है, तो सीपीआइ राष्ट्रीय पार्टी नहीं रह जाएगी।
नारे निराले
सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी 1989 के बाद से देश में असल मायने में गठबंधन की राजनीति का दौर शुरू हुआ। इसी के साथ शुरू हुआ मध्यावधि चुनावों का सिलसिला। गठबंधन सरकारें गिरने लगीं। उसी दौर में 1996 में भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी को केंद्र में रखकर नारा दिया‘सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी।’ चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी, और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने।