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Exclusive: 'पीएम मोदी दोबारा सत्ता में लौटे तो बदल सकता है भारत का संविधान'

नोटबंदी रोजगार हो या दूसरे अहम मुद्दे जिन्हें विपक्ष उठा रहा है उससे लोगों का ध्यान बंटाया जाए तो क्या यह देशद्रोह नहीं...। लोगों को इन सच्चाई मालूम हो रही है...।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 28 Mar 2019 09:10 AM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 09:10 AM (IST)
Exclusive: 'पीएम मोदी दोबारा सत्ता में लौटे तो बदल सकता है भारत का संविधान'
Exclusive: 'पीएम मोदी दोबारा सत्ता में लौटे तो बदल सकता है भारत का संविधान'

संजय मिश्र, नई दिल्ली। लोकसभा की चुनावी जंग में जनता की अदालत में मुद्दों की बौछार सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से शुरू हो गई है। यूपीए के अपने पुराने साथियों के साथ मोदी का चुनावी रथ रोकने मैदान में उतरी कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी महागठबंधन नहीं बनने के बाद भी बदलाव का दावा कर रही है। पार्टी की उम्मीदों के इस दावे और आधार पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल से दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र ने विशेष बातचीत की।

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प्रश्न - लोकसभा चुनाव अभियान अब रफ्तार पकड़ चुका है तो क्या माना जाए कि अब असल चुनावी मुद्दे जनता के सामने हैं?

उत्तर : कांग्रेस और विपक्ष तो जनता के मसले उठा रहे हैं, मगर सत्ताधारी भाजपा असल मुद्दों से भाग रही है। बिजली, पानी, सड़क, गरीबी, किसानों की मुश्किल, रोजगार जैसे मसले प्रचार से गायब किए जा रहे हैं। खासतौर पर देश के करीब 60 करोड़ ऐसे लोगों के मुद्दे दरकिनार किए जा रहे हैं, जिनके पास रोजी-रोजगार के उचित साधन नहीं हैं। जबकि मसला यह है कि मौजूदा सत्ता के संरक्षण में अमीर और अमीर बन रहा तो गरीब और गरीब हो रहा। दूसरी हकीकत यह भी है कि जिन मसलों को उठाया जा रहा वह शहर केंद्रित हैं। किसान, मजदूर, छोटे-मझोले कारोबारी, व्यापारी, गांवों के बेरोजगार युवा, इनके मसले चुनाव में अब भी गांव-देहातों के सबसे बड़े मसले हैं। बेरोजगारी 45 साल के इतिहास में सबसे ज्यादा है और सरकार इसके आंकड़े छुपा रही है।  गाली-गलौज, पाकिस्तान समर्थक, मुस्लिम समर्थक जैसे बेवजह के मामले उठाए जाते हैं क्योंकि ऐसे मुद्दे बिकते हैं।

प्रश्न - आपने मीडिया की बात उठाई तो क्या यह विपक्षी दलों की विफलता नहीं कि वे जनता को ऐसे मुद्दों की गंभीरता से नहीं जोड़ पा रहे?

उत्तर : विपक्ष तो बिल्कुल मुद्दों पर ही बात कर रहा है। राहुल गांधी ने न्यूनतम आय गारंटी योजना (न्याय) की रूपरेखा देकर इस दिशा में बड़ा कदम उठाया है। पांच करोड़ सबसे गरीब परिवारों के 25 करोड़ लोगों को सालाना 72 हजार रुपये देने की बात पहुंचा हम यह बता रहे हैं कि कांग्रेस का चुनावी एजेंडा जनता की बेहतरी पर केंद्रित है।

प्रश्न - कांग्रेस इस योजना को गरीबी पर अंतिम प्रहार बता रही है और भाजपा इसे चुनावी छलावा। ऐसे में जनता के भरोसे पर इसे कैसे टिका पाएंगे?

उत्तर : न्यूनतम आय गारंटी योजना को लागू करने के लिए तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा चाहिए और हम इसका प्रबंधन कर देश को दिखाएंगे। मनरेगा से लेकर खाद्य सुरक्षा और किसान कर्ज माफी का ऐतिहासिक काम कर कांग्रेस इसे साबित कर चुकी है। जबकि मोदी जी ने मनरेगा पर सवाल उठाए थे मगर आज वे इसे गले लगा रहे हैं। हम मोदी जी के अच्छे दिनों जैसी कोरी घोषणा नहीं करते बल्कि ठोस फैसले करते हैं। जबकि इनकी सच्चाई यह है कि उज्जवला योजना, शौचालय व रोजगार आदि ही नहीं अधिकांश क्षेत्रों के इनके काम के दावों और हकीकत में अंतर है। इसलिए सरकार असली आंकड़े छुपाती रही है।

प्रश्न - ऐसा क्यों है कि राजनीतिक धारणा की लड़ाई में भाजपा के मुकाबले विपक्ष संघर्ष करता दिख रहा है?

उत्तर : चाहे नोटबंदी हो, रोजगार, किसानों की बदहाली व एमएसपी देना, संवैधानिक संस्थाओं पर प्रहार या आर्थिक गिरावट, हम लगातार इन मुद्दों को पुरजोर तरीके से उठाते रहे हैं। मगर आम आदमी से जुड़े इन मसलों को मीडिया उचित तवज्जो नहीं दे रहा। कांग्रेस बखूबी जनता तक इन्हें पहुंचाने का प्रयास कर रही है और लोगों को इन मुद्दों की सच्चाई मालूम हो रही है।

प्रश्न - पुलवामा की आतंकी घटना के बाद भाजपा के राष्ट्रवाद के दांव पर विपक्ष रक्षात्मक क्यों दिख रहा है?

उत्तर : एयर स्ट्राइक में ढाई से तीन सौ लोगों के मरने की बात हमने तो नहीं की। जब सरकार की ओर से ऐसी बातें कही गईं तो हमने कहा आतंकियों को मारा तो बहुत अच्छा किया। पर यह पूछ देना कैसे राष्ट्रद्रोह हो गया कि मारे तो अच्छा है पर हमें दिखाइए कितने मारे। इसे राजनीतिक मुद्दा तो भाजपा बना रही है।

प्रश्न - जब पाकिस्तान चुनावी मुद्दा बन रहा है, ऐसे में यह धारणा क्या विपक्ष के लिए चुनौती नहीं?

उत्तर : ये मुद्दा जनता से जुड़ा हुआ नहीं। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पाकिस्तान कभी गए ही नहीं और मुंबई हमले के बाद सख्त रुख अख्तियार किया। पीएम मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में नवाज शरीफ को बुलाकर नरमी की शुरुआत की और फिर शरीफ के जन्म दिन पर अचानक पाकिस्तान चले गए और हमें देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं। नोटबंदी, रोजगार हो या दूसरे अहम मुद्दे जिन्हें विपक्ष उठा रहा है, उससे लोगों का ध्यान बंटाया जाए तो क्या यह देशद्रोह नहीं।

प्रश्न - एनडीए के खिलाफ राष्ट्रीय महागठबंधन के दावे खूब हुए मगर हकीकत में ऐसा नहीं हुआ, ऐसे में बिखरा विपक्ष मोदी को कैसे गंभीर चुनौती देगा?

उत्तर : राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनने की कोई उम्मीद नहीं है और मैंने तो अपनी किताब में भी यह लिखा था। मगर प्रदेशों के स्तर पर गठबंधन होगा और ऐसा ही हुआ है। जैसे महाराष्ट्र में एनसीपी, बिहार में राजद, झारखंड में जेएमएम, कर्नाटक में जदएस, जम्मूकश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, तमिलनाडु

में द्रमुक आदि के साथ हमारा गठबंधन है। कांग्रेस के पुराने गठबंधन के पार्टनर आज भी हमारे साथ हैं।

प्रश्न - साझे विपक्षी मंच पर आने के बाद भी उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा से तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी या वामदलों से तालमेल न होना सवाल तो उठाता ही है?

उत्तर : उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा से हमारा गठबंधन पहले भी नहीं था न ही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ। यह जरूर है कि जब गठबंधन की बात हो रही थी तब सपा-बसपा ने आपसी सीट बंटवारे का एलान कर इसकी गुंजाइश बंद कर दी। राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन करना मुश्किल है क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों का फुट प्रिंट प्रदेश में है और इनकी सोच किसी तरह राष्ट्रीय दल बनने की है। इसीलिए वे अपने आधार वाले सूबे में कांग्रेस से गठबंधन की एवज में दूसरे सूबों में कांग्रेस से सीट चाहती हैं। मगर हमारी जहां भाजपा से सीधी लड़ाई है वहां हम इन दलों को कैसे जगह दे सकते हैं।

प्रश्न - एक तरफ बिखरा विपक्ष तो दूसरी तरफ मजबूत मोदी की ताल ठोक रही भाजपा के दांव का विपक्ष के पास क्या जवाब है?

उत्तर : मोदी जी मजबूत पीएम कैसे हो सकते हैं? किसान आत्महत्या कर रहा है, युवा बेरोजगार घूम रहा है, नोटबंदी की वजह से छोटे मझोले कारोबार खत्म हो गए, बैंकिग क्षेत्र संकट में है, एनपीए दस लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है, हमारे तमाम पड़ोसी देशों से रिश्ते पहले से खराब हुए हैं और पाकिस्तान से इतने खराब संबंध कभी नहीं रहे। जम्मू-कश्मीर में हालत बेहद गंभीर हैं। सिटिजनशिप बिल ने पूरे पूर्वोत्तर में खलबली मचा रखी है। संघीय ढांचे पर प्रहार हो रहा और गैरभाजपाई राज्य सरकारों पर आक्रमण किया जा रहा है। विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। क्या यह मजबूत प्रधानमंत्री के कारनामे हैं? सच्चाई यह भी है कि जो ऐतिहासिक फैसले उन सरकारों में हुए जो गठबंधन सरकारें थीं। उदारीकरण नरसिंह राव की अल्पमत सरकार ने शुरू किया और पोखरण-दो वाजपेयी की गठबंधन सरकार ने किया। चिदंबरम का ड्रीम बजट भी गठबंधन सरकार का था। भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, मनरेगा ये सारे कम मनमोहन सिंह की गठबंधन सरकार ने किए। देश को आगे बढ़ाने के लिए जो ऐतिहासिक फैसले हुए वे उन्हीं सरकारों में हुए जो पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं थीं। आज जो मजबूत सरकार की बात करते हैं उन्होंने देश को उस हालत में ला दिया है जहां से उठना मुश्किल है।

प्रश्न - कांग्रेस भारत के भविष्य के लिहाज से 17वें लोकसभा चुनाव को किस नजरिये से देख रही है?

उत्तर : नरेंद्र मोदी एक अद्भुत प्रधानमंत्री हैं और अब जनता को भी लगता है कि वे जो कहते हैं उस पर शक करना चाहिए। कई बार पीएम ऐसी बातें कह चुके हैं जो असत्य हैं। एक प्रधानमंत्री की ऐसी इमेज बन जाए जो जुमलेबाज है, साथ ही यह धारणा बन जाए कि इसके खिलाफ कोई बोलेगा तो सीबीआइ, ईडी, आयकर सभी एजेंसी लगा दी जाएंगी और सारी संस्थाओं को अपने कब्जे में ले लिया जाएगा, ऐसे में इस चुनाव में मोदी जी दोबारा आ जाते हैं तो निश्चित रूप से भारत का स्वरूप बदल जाएगा। संविधान की रूह को बड़ी ठेस लगेगी और इसका ढांचा गिर भी सकता है। ये हमारे संविधान में बदलाव भी ला सकते हैं और हमारे लोकतंत्र की राह को बड़ा नुकसान हो सकता है। दूसरी तरफ हमारा मानना है कि जनता महसूस कर रही है कि उसे जुमलेबाजी नहीं

चाहिए, लिहाजा भाजपा की वापसी की राह मुश्किल है। इसीलिए भाजपा एंटी नेशनल से लेकर चोर जैसी बातों को उछाल रही है। जबकि सबसे बड़ी चोरी तो रिजर्व बैंक के खजाने से पैसे निकालना है और इससे बड़ी गद्दारी कोई हो नहीं सकती। अब जनता को तय करना है कि वे अपने रोज के मुद्दे का समाधान चाहती है या अगले पांच साल के लिए फिर जुमलेबाजी।

प्रश्न - लोकतांत्रिक स्वरूप की गंभीर चुनौती की आपकी बात अगर सही है तो फिर यह चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बन पा रहा?

उत्तर : भले यह चुनावी बहस का मुद्दा नहीं बन पाए मगर देश का हर नागरिक इस बात को जान समझ रहा है, पर बोल नहीं रहा है। हिंदुस्तान के मतदाता बहुत बुद्धिमान हैं और उन्हें कम आंकने की गलती नहीं करनी चाहिए। गांव-देहात में जाइए तो लोग अब कह रहे हैं कि मोदी जी केवल भाषण देते हैं, इससे जनता को राशन नहीं मिलता। केवल टीवी चैनल ही देश के मत नहीं बदल सकते और जनता भी समझ रही है कि सत्ता के साधनों से दुष्प्रचार किया जा रहा है।


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