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Lok sabha Elections 2019: पीतल नगरी से उचट गया मन, भा गया बुलंद दरवाजा

फिल्मी पर्दे से सियासत के अखाड़े में कूदे पंजे वाली पार्टी के सूबाई कमांडर का पीतल नगरी से मन क्यों उचटा और यकायक उन्हें बुलंद दरवाजा क्यों भाया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 12:59 PM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 12:59 PM (IST)
Lok sabha Elections 2019: पीतल नगरी से उचट गया मन, भा गया बुलंद दरवाजा
Lok sabha Elections 2019: पीतल नगरी से उचट गया मन, भा गया बुलंद दरवाजा

उत्तर प्रदेश। फिल्मी पर्दे से सियासत के अखाड़े में कूदे पंजे वाली पार्टी के सूबाई कमांडर का पीतल नगरी से मन क्यों उचटा और यकायक उन्हें बुलंद दरवाजा क्यों भाया, सियासी हलकों में इसे लेकर चुस्की ली जा रही है। पंजे वाली पार्टी के सूबाई सेनापति दस साल पहले भी फतेहपुर सीकरी से चुनाव लड़े थे। तब हाथी वाली पार्टी के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर मशहूर एक इलाकाई नेता की पत्नी ने उन्हें शिकस्त दी थी। इस बार भी उन्हीं नेता की पत्नी को फतेहपुर सीकरी से हाथी वाली पार्टी का प्रत्याशी बनाये जाने की चर्चा थी।

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बहरहाल बहन जी की ‘कसौटी’ पर खरा साबित न होने पर फतेहपुर सीकरी से उन्हें टिकट नहीं मिल सका। लोग कह रहे हैं कि यह जानकारी होने पर कांग्रेस के सूबाई कमांडर को दस साल बाद फतेहपुर सीकरी में अपनी चुनावी संभावनाएं बुलंद लगने लगीं और उन्होंने पार्टी आलाकमान से अपना टिकट बदलने की गुजारिश की। दिलचस्प तो यह है कि पार्टी ने उनकी सीट बदलने वाली सूची बाद में जारी की लेकिन, सूबाई कमांडर पहले ही फतेहपुर सीकरी से चुनाव लड़ने का दम भरने लगे थे।

टिकट का पैमाना

भगवा पार्टी ने अपने कई सांसदों के टिकट काटे। पर कई ऐसे लोग भी अपना टिकट बचा ले गए जिनके ऊपर तलवार लटकी थी। फतेहपुर सीकरी वाले सांसद जी विश्वेश्वरैया सभागार में बिरादरी की महापंचायत में जोश से भर गए थे। सभागार में उमड़ी भीड़ जैसे-जैसे ताली बजा रही थी, वह बिरादरी की उपेक्षा पर उतना ही तीखे तेवर दिखा रहे थे। कोई सोच भी नहीं सकता कि उनके इस तेवर पर पार्टी गंभीर हो जाएगी और उल्टा वार उन पर ही हो जाएगा। उनकी राह में उन्हीं की बिरादरी के एक सूरमा रोड़ा बन गए। जिस जाट समाज के हितों पर वह मुखर थे, उसी के एक नेता ने उनके टिकट पर अपना हक जमा लिया। पर लोग उन्नाव वाले महराज जी को भूल नहीं पा रहे हैं। टिकट के सवाल पर महराज जी ने कई दिनों तक सूबाई नेतृत्व को भी कठघरे में खड़ा कर दिया लेकिन, उनका बाल बांका न हो सका। वह तेवर में भी रहे और टिकट भी ले गए। अब कहने वाले कहने का मौका चूक नहीं रहे हैं, आखिर टिकट मिलने का पैमाना क्या है।

बड़े बेआबरू होकर

सरकार और संगठन में क्या फर्क है, मंत्री जी को दो साल में पहली बार इसका अहसास हुआ। यूं तो मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में अमूमन संबंधित विभाग के मंत्री और अधिकारी ही जाते हैं, पर कुछ मंत्री ऐसे भी हैं जो बिन बुलाए मेहमान की तरह अक्सर ऐसे जलसों में दिख जाते हैं। मंत्री हैं तो वजीर होने का प्रोटोकॉल भी है। लिहाजा मंच से लेकर अगली कतार में कहीं-कहीं जगह मिल ही जाती है। पर पार्टी संगठन के कार्यक्रमों में इसकी गुंजाइश नहीं होती। पिछले दिनों भाजपा मुख्यालय पर ऐसा ही कार्यक्रम था। इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे। मंच पर कौन-कौन बैठेगा, पहले से तय था। सामने पत्रकार जमे थे। मंच से लेकर आगे की लाइन में कहीं कोई गुंजाइश नहीं थी। क्रिकेट के मैदान से अकलीयत वाले महकमे तक पहुंचे एक मंत्री जी फितरतन आयोजन में पहुंच गए। मंच पर भी चढ़ गए। मंच पर खड़े होकर उन्होंने इंतजार किया कि शायद पहले की तरह कहीं कोई संभावना बन जाये, पर उनको निराशा मिली।‘बड़े बेआबरू होकर...’ वाले अंदाज में उन्हें मंच से नीचे उतरना पड़ा। अब सरकार से लेकर संगठन में इस वाकये की खूब चर्चा है।

रिश्तों का गणित

यह तो खोजबीन का मुद्दा है कि रिटर्न गिफ्ट की परंपरा अपने यहां पहले से थी या अंग्रेज यह रिवाज अपने साथ लाए थे लेकिन, सदियों पुराना यह शिष्टाचारपिछले दिनों जब सियासी कलेवर लेकर सूबे में उतरा तो हंगामा मच गया। चुंबक के दो विपरीत ध्रुवों की तरह दूर रहने वाले दो दल ‘साथी’ बने तो बड़ा दिल दिखाते हुए दोनों ने पंजे वाली पार्टी के दो बड़े चेहरों के लिए दो सीटें छोड़ दीं। अपने इस गिफ्ट का बखान कर दोनों दल उदारता का उदाहरण दे ही रहे थे कि पंजे वालों ने नहले पर दहला चल दिया। इधर से दो सीटों का गिफ्ट दिया गया था तो उधर से पंजे वालों ने रिटर्न गिफ्ट देते हुए एक के बाद एक सात सीटें सौंप दीं। इससे रिश्तों में भले ही सौहार्द बढ़ा हो लेकिन, राजनीतिक समीकरण ऐसे बिगड़ गए कि मिलीभगत का संदेश निकलने लगा। यहीं से बात बिगड़ गई। रिटर्न गिफ्ट गले की हड्डी बन गया। इसे निगलना एक ओर भविष्य की संभावनाओं की राह खोल रहा था तो दूसरी तरफ चुनाव को खतरे में भी डाल रहा था। आखिर साथियों ने कड़ा फैसला लिया और रिटर्न गिफ्ट को हाथी के पैर तले कुचल दिया। अब हाथ झटक कर हाथी फिर से साइकिल चला रहा है और लोग रिश्तों की इस गणित के मायने तलाश रहे हैं।


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