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बिना दावेदार कैसे होगा कांग्रेस का चुनावी समर में इस सीट पर बेड़ापार

बीते तीन लोकसभा चुनावों में उतारा ही नहीं था प्रत्याशी। इस बार चुनाव की तैयारी, परंतु नहीं मिल रहे दावेदार।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 05:47 PM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 05:47 PM (IST)
बिना दावेदार कैसे होगा कांग्रेस का चुनावी समर में इस सीट पर बेड़ापार
बिना दावेदार कैसे होगा कांग्रेस का चुनावी समर में इस सीट पर बेड़ापार

आगरा, जेएनएन। मैनपुरी जिले में लंबे समय से सियासी वर्चस्व हासिल करने को जूझ रही कांग्रेस इस बार चुनावी समर में कूदने का दावा कर रही है। पश्चिमी उप्र के महासचिव बनाए जाने के बाद खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया मैनपुरी लोकसभा को जीतने को फार्मूला तलाशने की बात कह चुके हैं। संगठन को तैयारी करने के लिए भी कह दिया गया है, लेकिन शुरुआती दौर में भी यह ख्वाब पूरा होना मुश्किल दिख रहा है। यह भी कयास लग रहे हैं कि बीते तीन चुनावों में मैदान छोडऩे वाली कांग्रेस इस बार भी इस सीट पर दूसरों को वॉक ओवर दे सकती है।

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मैनपुरी लोकसभा सीट की बात करें तो यहां कभी कांग्रेस का एकछत्र राज्य नहीं रहा। आजादी के बाद से वर्ष 1984 तक पार्टी जीत- हार के बीच झूलती रही। 1952 में हुए पहले चुनाव में ही पार्टी की टिकट पर बादशाह गुप्ता ने जीत हासिल की थी। फिर 1957 के चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि इसके बाद हुए तीन लोस चुनावों में पार्टी लगातार जीती। फिर 1977 और 1980 में फिर हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1984 में आखिरी बार कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर बलराम सिंह जीते थे। इसके बाद से कांग्रेस यहां कमजोर ही होती चली गई। वर्ष 1984 के बाद कांग्रेस से मतदाता ऐसा विमुख हुआ कि हर चुनाव में उसके प्रत्याशी बेदम साबित हुए। मैनपुरी लोस सीट पर कांग्रेस ने आखिरी बार वर्ष 2004 के लोकसभा उप चुनाव में सुमन चौहान को मैदान में उतारा था, तब उनको 11 हजार से कुछ अधिक ही वोट मिले थे। इसके बाद बीते तीन चुनावों में पार्टी ने प्रत्याशी ही नहीं उतारा।

पार्टी सूत्रों की माने तो इस बार भी यही हालात बन सकते हैं। पार्टी हाईकमान ने फिलहाल चुनावी तैयारी के निर्देश दिए हैं। लोकसभा प्रभारी यहां रहकर पार्टीजनों से मिल रहे हैं और संभावनाएं देख रहे हैं। परंतु अब तक एक भी व्यक्ति ने प्रत्याशी बनने को दावेदारी पेश नहीं की है। सूत्रों के मुताबिक प्रभारी को इस सीट पर जीत लगभग नामुमकिन होने की बात भी जता दी गई है। दूसरी तरफ इस बार सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस संरक्षक सोनिया गांधी और अध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी न लड़ाने की बात कही है। यदि मुलायम सिंह यादव सपा से चुनाव लड़ते हैं तो पार्टी इसे राजनीतिक शिष्टाचार में खाली छोडऩे पर भी विचार कर सकती है। हालांकि संगठन अभी मामले पर खुलकर कुछ नहीं कह रहा है।

इन लोस चुनावों में नहीं लड़ी कांग्रेस

वर्ष 2009

वर्ष 2014

वर्ष 2014 उप चुनाव

तलाशे जा रहे प्रत्‍याशी

पार्टी हाईकमान ने चुनावी तैयारी के निर्देश दिए हैं। प्रत्याशी भी तलाशा जा रहा है। प्रत्याशी लड़ाने को लेकर अंतिम फैसला पार्टी हाईकमान द्वारा ली लिया जाएगा।

संकोच गौड़, जिलाध्यक्ष कांग्रेस


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