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Lok Sabha Election 2019: बस्तर में नक्सलवाद पर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने

बस्तर जिला छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। यहां पहले ही चरण में चुनाव है। बस्तर में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल की एक दूसरे पर नक्सलवाद बढ़ाने का आरोप लगा रहे हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 03 Apr 2019 10:15 AM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2019 10:15 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: बस्तर में नक्सलवाद पर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने
Lok Sabha Election 2019: बस्तर में नक्सलवाद पर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने

रायपुर, नईदुनिया। बस्तर में चुनाव आते ही एक बार फिर नक्सलियों को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। एक बार फिर भाजपा नक्सल समर्थक बताकर कांग्रेस को घेरने में जुटी है, जबकि कांग्रेस याद दिला रही है कि भाजपा के शासन में झीरम कांड हुआ था और भाजपा ने इसकी सीबीआइ जांच नहीं कराई थी। बस्तर में पहले चरण में 11 अप्रैल का मतदान होना है। इससे पहले से इस मसले पर कांग्रेस और भाजपा में नूरा कुश्ती जारी है। झारखंड में सामाजिक कार्यकर्ता ज्यांद्रेज की गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनके पक्ष में ट्वीट किया तो भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कह दिया कि कांग्रेस शहरी नक्सलियों का समर्थन करती है। इसी बीच एक नक्सली नेता ने बयान दिया कि सरकार माहौल बनाए तो बातचीत हो सकती है।

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इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सली हथियार छोड़ें और संविधान पर यकीन करें तो बात हो जाएगी। मुख्यमंत्री के इस बयान पर भी भाजपा की ओर से कहा कि अब तक तो वह पीड़ित पक्षों से बात करने जा रहे थे। कांग्रेस और भाजपा में नक्सलवाद को लेकर बयानबाजी कुछ भी हो, हकीकत यह है कि नक्सल मामले में जो नीति भाजपा सरकार की रही वही नीति कांग्रेस की भी है। कांग्रेस नेता राजबब्बर ने विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान नक्सलियों को क्रांतिकारी बताकर विवाद खड़ा कर दिया था, जबकि यहां कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से बस्तर में फोर्स पर फर्जी मुठभेड़ के दो आरोप लगे हैं। मानवाधिकारवादियों को नई सरकार से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन सरकार की कोई नई नीति इस मामले में नहीं दिखी।

आदिवासियों की जेल से रिहाई के लिए कमेटी:

बस्तर संभाग की जेलों में नक्सल और अन्य अपराध में बंद आदिवासियों के मामलों की समीक्षा के लिए जस्टिस पटनायक की अध्यक्षता में कमेटी गठित की। हालांकि बस्तर में काम कर रहे पत्रकारों, मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों आदि की सुरक्षा के लिए कानून नहीं बन पाया। 


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