Lok Sabha Election 2019: हाई कोर्ट की सर्किट बेंच का प्लान और दुमका को न्याय का इंतजार
वर्ष 2000 में दुमका में बेंच की स्थापना के लिए प्रयास शुरू हुआ। अधिवक्ता चाहते थे कि दुमका में ही सर्किट बेंच की स्थापना हो ताकि संताल के लोगों को रांची न जाना पड़े।
By mritunjayEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 07:19 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 07:19 PM (IST)
दुमका, अनूप श्रीवास्तव। भवन के लिए जमीन का चयन होने के बाद भी दुमका में हाईकोर्ट की सर्किट बेंच की स्थापना नहीं हो सकी। इसके लिए 19 साल से अधिवक्ता लगातार संघर्ष कर रहे हैं। सभी राजनीतिक दलों ने इसे चुनाव के घोषणा पत्र में शामिल किया। लेकिन सार्थक प्रयास न होने के कारण आज तक बेंच बनाने का मामला राज्य स्तर पर लटका हुआ है।
वर्ष 2000 में दुमका में बेंच की स्थापना के लिए प्रयास शुरू हुआ। अधिवक्ता चाहते थे कि दुमका में ही सर्किट बेंच की स्थापना हो, ताकि प्रमंडल के गरीब आदिवासियों को अपील के लिए रांची न जाना पड़े। अधिवक्ता का यह प्रयास रंग भी लाया। बेंच की स्थापना के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन दस साल पहले व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं से मिले और आश्वासन दिया। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बात आगे बढ़ाई, लेकिन सरकार के स्तर पर गंभीरता से प्रयास नहीं होने के कारण मामला ठंडे बस्ते में चला गया। वर्ष 2014 में राज्य में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी तो अधिवक्ताओं को लगा कि बेंच की स्थापना हो जाएगी। दुमका में पहली बार हुई कैबिनेट की बैठक में विधायक प्रो. स्टीफन मरांडी ने इस प्रस्ताव को रख। सरकार ने गंभीरता से लिया और तेजी से काम भी हुआ। इसके बाद आयुक्त आवास के आगे वन विभाग की जमीन ली गई और इसके बदले विभाग को 70 लाख रुपया भी दिया गया। लेकिन इसके बाद बात आगे नही बढ़ सकी। सरकार की ओर से लगातार यह कहा जाता रहा है कि उसने अपने काम कर दिया है। अब राज्यपाल और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों पर सब निर्भर है। जिले के वरीय अधिवक्ताओं ने बेंच की स्थापना के लिए कई बार राज्यपाल से रांची जाकर मुलाकात की, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
सब दलों ने बनाया चुनावी मुददा : झामुमो और भाजपा ने बेंच की स्थापना को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया। अधिवक्ताओं के बीच जाकर उनकी इस मांग को पूरा करने के लिए हर तरह का आश्वासन भी दिया। खासतौर पर चुनाव के दरम्यिान इस पर खूब चर्चा हुई। अधिवक्ताओं को आश्वासन की घुट्टी पिलाकर चुनाव समाप्त होने तक शांत कराया गया। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। अब फिर चुनाव आ चुका है। हर राजनेता इसे मुद्दा बनाकर अधिवक्ताओं को अपने पाले में लाने का प्रयास करेंगे। लेकिन वकीलों का कहना है कि वोट मांगने वालों से जरूर सवाल पूछेंगे कि उन्होंने बेंच के लिए कितना सार्थक प्रयास किया।
अधिवक्ताओं ने किया आंदोलन : बेंच की स्थापना के लिए दुमका बार एसोसिएशन ने संघर्ष मोर्चा का गठन किया। वर्ष 2015 में इसके लिए सात दिन तक आंदोलन चला। तब नेताओं से यही आश्वासन मिला कि सरकार उनकी मांग पर गंभीरता से काम कर रही है। जमीन का चयन हो चुका है और आने वाले समय में इस पर काम भी शुरू हो जाएगा। लेकिन मामला जहां था, आज भी वहीं है।
प्रमंडल के गरीबों को मिलती राहत : अगर झामुमो और भाजपा सरकार ने गंभीरता से बेंच की स्थापना के लिए प्रयास किया होता, तो आज प्रमंडल के गरीब आदिवासियों को इसका लाभ मिल रहा होता। हजारों लोगों को रोजगार मिलता। गरीब लोगों को अपने केस की अपील के लिए रांची नहीं जाना पड़ता। पैसा बचता और समय पर न्याय भी मिल जाता। सरकार की इसी लेट-लतीफी की वजह से आज प्रमंडल की जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है।
राज्य सरकार ने कैबिनेट में निर्णय लेने के बाद तेजी से काम किया। सरकार को जो काम करना था कर दिया। अब निर्णय केंद्र और न्यायाधीशों को लेना है। सरकार ने हर संभव सहयोग किया। दूसरे राजनीति दल ने केवल दिखावा किया। जमीन का अधिग्रहण भाजपा सरकार ने किया और वन विभाग को जमीन के एवज में पैसा दे दिया। सरकार आज भी इस मुद्दे पर गंभीर है।
-डॉ. लुईस मरांडी, समाज कल्याण मंत्री
सरकार की वजह से बेंच की स्थापना अधर में लटकी है। सरकार का वीजन स्पष्ट नहीं है। कानून मंत्री को इस मामले से अवगत कराया गया था, उन्होंने सरकार से इसका जवाब भी मांगा था। लेकिन आज तक सरकार ने किसी तरह का जवाब नहीं दिया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार को जो काम करना चाहिए था नहीं किया। अब दूसरों को दोष देना उचित नहीं है।
-विजय कुमार सिंह, सांसद प्रतिनिधि, झामुमो
भाजपा हो या झामुमो किसी सरकार ने ईमानदारी से अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया। सिर्फ वोट की राजनीति की गई। भाजपा सरकार कहते चली आई कि अब केंद्र को ही निर्णय लेना है। गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने दो बार संसद में बेंच की स्थापना का मुद्दा उठाया। कानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार की ओर से किसी तरह का प्रस्ताव भेजा नहीं गया है। आज भी रांची हाईकोर्ट में जितने भी मामला लंबित हैं उनमें से 50 फीसद प्रमंडल के हैं। अगर सरकार चाहती तो पांच साल के दरम्यान बेंच की स्थापना हो जाती। केवल चुनाव में वोट हासिल करने के लिए ही अधिवक्ताओं को आश्वासन दिया जाता रहा है। 19 साल से बेंच के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन सरकार की उदासीनता की वजह से मामला अधर में लटका है।
-गोपेश्वर झा, अध्यक्ष, बार एसोसिएशन, दुमका
वर्ष 2000 में दुमका में बेंच की स्थापना के लिए प्रयास शुरू हुआ। अधिवक्ता चाहते थे कि दुमका में ही सर्किट बेंच की स्थापना हो, ताकि प्रमंडल के गरीब आदिवासियों को अपील के लिए रांची न जाना पड़े। अधिवक्ता का यह प्रयास रंग भी लाया। बेंच की स्थापना के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन दस साल पहले व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं से मिले और आश्वासन दिया। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बात आगे बढ़ाई, लेकिन सरकार के स्तर पर गंभीरता से प्रयास नहीं होने के कारण मामला ठंडे बस्ते में चला गया। वर्ष 2014 में राज्य में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी तो अधिवक्ताओं को लगा कि बेंच की स्थापना हो जाएगी। दुमका में पहली बार हुई कैबिनेट की बैठक में विधायक प्रो. स्टीफन मरांडी ने इस प्रस्ताव को रख। सरकार ने गंभीरता से लिया और तेजी से काम भी हुआ। इसके बाद आयुक्त आवास के आगे वन विभाग की जमीन ली गई और इसके बदले विभाग को 70 लाख रुपया भी दिया गया। लेकिन इसके बाद बात आगे नही बढ़ सकी। सरकार की ओर से लगातार यह कहा जाता रहा है कि उसने अपने काम कर दिया है। अब राज्यपाल और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों पर सब निर्भर है। जिले के वरीय अधिवक्ताओं ने बेंच की स्थापना के लिए कई बार राज्यपाल से रांची जाकर मुलाकात की, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
सब दलों ने बनाया चुनावी मुददा : झामुमो और भाजपा ने बेंच की स्थापना को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया। अधिवक्ताओं के बीच जाकर उनकी इस मांग को पूरा करने के लिए हर तरह का आश्वासन भी दिया। खासतौर पर चुनाव के दरम्यिान इस पर खूब चर्चा हुई। अधिवक्ताओं को आश्वासन की घुट्टी पिलाकर चुनाव समाप्त होने तक शांत कराया गया। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। अब फिर चुनाव आ चुका है। हर राजनेता इसे मुद्दा बनाकर अधिवक्ताओं को अपने पाले में लाने का प्रयास करेंगे। लेकिन वकीलों का कहना है कि वोट मांगने वालों से जरूर सवाल पूछेंगे कि उन्होंने बेंच के लिए कितना सार्थक प्रयास किया।
अधिवक्ताओं ने किया आंदोलन : बेंच की स्थापना के लिए दुमका बार एसोसिएशन ने संघर्ष मोर्चा का गठन किया। वर्ष 2015 में इसके लिए सात दिन तक आंदोलन चला। तब नेताओं से यही आश्वासन मिला कि सरकार उनकी मांग पर गंभीरता से काम कर रही है। जमीन का चयन हो चुका है और आने वाले समय में इस पर काम भी शुरू हो जाएगा। लेकिन मामला जहां था, आज भी वहीं है।
प्रमंडल के गरीबों को मिलती राहत : अगर झामुमो और भाजपा सरकार ने गंभीरता से बेंच की स्थापना के लिए प्रयास किया होता, तो आज प्रमंडल के गरीब आदिवासियों को इसका लाभ मिल रहा होता। हजारों लोगों को रोजगार मिलता। गरीब लोगों को अपने केस की अपील के लिए रांची नहीं जाना पड़ता। पैसा बचता और समय पर न्याय भी मिल जाता। सरकार की इसी लेट-लतीफी की वजह से आज प्रमंडल की जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है।
राज्य सरकार ने कैबिनेट में निर्णय लेने के बाद तेजी से काम किया। सरकार को जो काम करना था कर दिया। अब निर्णय केंद्र और न्यायाधीशों को लेना है। सरकार ने हर संभव सहयोग किया। दूसरे राजनीति दल ने केवल दिखावा किया। जमीन का अधिग्रहण भाजपा सरकार ने किया और वन विभाग को जमीन के एवज में पैसा दे दिया। सरकार आज भी इस मुद्दे पर गंभीर है।
-डॉ. लुईस मरांडी, समाज कल्याण मंत्री
सरकार की वजह से बेंच की स्थापना अधर में लटकी है। सरकार का वीजन स्पष्ट नहीं है। कानून मंत्री को इस मामले से अवगत कराया गया था, उन्होंने सरकार से इसका जवाब भी मांगा था। लेकिन आज तक सरकार ने किसी तरह का जवाब नहीं दिया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार को जो काम करना चाहिए था नहीं किया। अब दूसरों को दोष देना उचित नहीं है।
-विजय कुमार सिंह, सांसद प्रतिनिधि, झामुमो
भाजपा हो या झामुमो किसी सरकार ने ईमानदारी से अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया। सिर्फ वोट की राजनीति की गई। भाजपा सरकार कहते चली आई कि अब केंद्र को ही निर्णय लेना है। गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने दो बार संसद में बेंच की स्थापना का मुद्दा उठाया। कानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार की ओर से किसी तरह का प्रस्ताव भेजा नहीं गया है। आज भी रांची हाईकोर्ट में जितने भी मामला लंबित हैं उनमें से 50 फीसद प्रमंडल के हैं। अगर सरकार चाहती तो पांच साल के दरम्यान बेंच की स्थापना हो जाती। केवल चुनाव में वोट हासिल करने के लिए ही अधिवक्ताओं को आश्वासन दिया जाता रहा है। 19 साल से बेंच के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन सरकार की उदासीनता की वजह से मामला अधर में लटका है।
-गोपेश्वर झा, अध्यक्ष, बार एसोसिएशन, दुमका
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