Lok Sabha Election 2019 : योजनाओं का लाभ गरीबों को मिले यह तय हो..
Lok Sabha Election 2019. सबकी कसौटी पर वर्तमान सरकार का कामकाज तो है पर अब तक अधिकतर लोग किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सके हैं।
चक्रधरपुर, दिनेश शर्मा। चक्रधरपुर से 10 किमी दूर कराईकेला में दिन के 12:00 बज रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में घूमने के क्रम में कराईकेला के बीच टोला टहलते हुए पहुंचा। देखा कुछ लोग बैठकर हल्की-फुल्की चर्चा कर रहे हैं। मैंने बाइक स्टैंड की और बैठे लोगों से ओड़िया में पूछा कि गो वोट काके दोउछो। इस पर आलोमनी नायकीन ने बैठने को कहते हुए जवाब दिया गांव घर में वर्तमान जो सरकार है, बहुत तरीके से बढ़िया सुविधा दे रही है, लेकिन इसमें भी सही गरीबों को सुविधा मिल नहीं रही। इसे देखकर ही वोट देना होगा। गुरुवारी नायकीन ने तत्काल अपनी बात जोड़ते हुए कहा कि जो ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को बढ़िया सुविधा देगा हम वोट तो उसी को देंगे।
किसी के कहने से जिसे-तिसे वोट नहीं देंगे। चुनावी चर्चा पर मौका देखकर दुखन नायक ने कहा कि हम ग्रामीण हैं, रोज मजदूरी करनी है, तभी पेट भरेगा। हम गरीबों को वोट से बहुत ज्यादा लेना देना नहीं है।हां जब वोट का समय आएगा, वोट देंगे। रवि नायक ने कहा कि मोदी सरकार की सबसे बड़ी योजना है आयुष्मान योजना जिससे गरीब लोगों को पैसा हो या नहीं हो, किसी तरह का बीमारी हो तो इलाज तुरंत हो सकेगा। उज्जवला योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी बहुत तरह की सुविधाएं सरकार दे रही है। यह सरकार 5 साल रही और 5 साल इसे और देखा जाएगा।
मोती नायकीन, सरस्वती नायकीन व सुकांति नायकीन ने भी अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि हमें तो प्रतिदिन खटना है काम करना है। बिना काम किए कोई पैसा देगा नहीं। इसलिए जब समय आएगा, वोट किसको देंगे, सोचा जाएगा। हरिशचंद्र नायक ने कहा कि मोदी सरकार का तो अच्छा काम है, लेकिन नीचे सही काम नहीं हो रहा है। इसको देखने वाला कोई नहीं है, इस पर अंकुश लगना चाहिए। शंभू नायक जो पेशे से राजमिस्त्री हैं, ने कहा कि हाथ में करनी नहीं पकड़ने से मेरे दिन भर की मजदूरी चली जाएगी।
वोट के बारे हम क्या करें। वैसे वोट तो मोदी जी को देना चाहिए, फिर भी देखा जाएगा। केसरी नायकीन, रतनी नायकीन, शांति नायकीन ने कहा गांव घर में शौचालय का निर्माण भी हो रहा है, जो हम लोग कभी सोचे भी नहीं थे। प्रधानमंत्री आवास भी मिल रहा है, इसलिए वोट तो देना चाहिए इसी सरकार को। फिर भी घर में विचार किया जाएगा, समय आने पर जिसको मन करेगा, दे दिया जाएगा। बातचीत के क्रम में आभास हुआ कि मौजूद ग्रामीण राजनीतिक रूप से किसी खास दल के लाठीठोक समर्थक नहीं हैं और ना ही किसी विचारधारा के पोषक। इसी कारण बिना किसी लाग-लपेट के जो मन में आया, वह कह गए। पूरे वार्तालाप का लब्बोलुआब यह समझा जा सकता है कि सबकी कसौटी पर वर्तमान सरकार का कामकाज तो है, पर अब तक अधिकतर लोग किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सके हैं।