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धर्मनगरी की सियासत उलझी, लोकसभा जीतने से ज्यादा हलका फतह करने की चुनौती

कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में नौ हलके है जिसमें पांच भाजपा के कब्जे में हैं। मौजूदा भाजपाई विधायकों के लिए चार माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव का लोकसभा चुनाव होम वर्क है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Thu, 02 May 2019 12:14 PM (IST)Updated: Sat, 04 May 2019 09:03 PM (IST)
धर्मनगरी की सियासत उलझी, लोकसभा जीतने से ज्यादा हलका फतह करने की चुनौती
धर्मनगरी की सियासत उलझी, लोकसभा जीतने से ज्यादा हलका फतह करने की चुनौती

पानीपत/कुरुक्षेत्र, [पंकज आत्रेय]। लोकसभा चुनाव का कुरुक्षेत्र फतह करना भाजपा प्रत्याशी नायब सैनी के लिए जितने मायने रखता है, उससे कहीं ज्यादा विधायकों के सामने चुनौती बनकर खड़ा है। संगठन से सीधा संदेश है कि जिस भी विधायक के हलके से भाजपा हारी, वहां से टिकट कटना तय समझ लें। लिहाजा पार्टी के नेता अपना टिकट और साख बचाने के लिए ज्यादा दौड़-धूप कर रहे हैं। वैसे भी शुरुआत से ही कुरुक्षेत्र लोकसभा का चुनाव हलकों में बंटकर रंग लाता है। कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में नौ हलके हैं, जिनमें से पांच में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इनमें थानेसर, लाडवा, शाहाबाद, रादौर और गुहला शामिल हैं। पिहोवा, कलायत, कैथल और पूंडरी में गैर-भाजपा विधायक हैं। हलके जीतने में ही जीत है और ये जातियों में बंटे हैं। 

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कलायत की फितरत उल्टी
कलायत कुरुक्षेत्र लोकसभा का सबसे बड़ा हलका है। जाट बहुल है। 2014 में आजाद प्रत्याशी जयप्रकाश यहां से जीते थे। इनेलो के रामपाल माजरा और भाजपा के धर्मपाल शर्मा को हार का मुंह देखना पड़ा था। भाजपा ने इस सीट पर चुनाव हारने के बाद सबसे ज्यादा ध्यान दिया, लेकिन लोकसभा क्षेत्र का यह वह हलका है जिसने जाट आरक्षण आंदोलन का सबसे ज्यादा दंश झेला। विधायक जयप्रकाश का नाम कांग्रेस से लोकसभा प्रत्याशी के रूप में उछला। वे खुद भी चुनाव लडऩे के इच्छुक थे। 

पूंडरी पर 1996 से निर्दलीयों का कब्जा
कैथल के पूंडरी हलके का 1996 में राजनीतिक दलों से ऐसा भरोसा उठा कि उसके बाद यहां से सभी पार्टी जीत को तरस गईं। हरियाणा के गठन के बाद 1967 के पहले चुनाव में कांग्रेस के आरपी ङ्क्षसह विधायक बने। 1968 में ईश्वर ङ्क्षसह निर्दलीय विधायक चुने गए। 72 में वे कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीते। इस सीट पर 1977 में अग्निवेश विधायक चुने गए थे। 2014  में प्रो. दिनेश कौशिक ने निर्दलीय लड़कर भाजपा के रणधीर गोलन को हराया और जीतते ही भाजपा के हो गए हैं। यहां भी ब्राह्मण और रोड़ समाज के प्रत्याशी ही बदल-बदल कर जीतते आए हैं। 

कैथल में कांग्रेस की धाक
तीन चुनाव में कैथल विधानसभा पर सुरजेवाला परिवार की मार्फत कांग्रेस का वर्चस्व है। नरवाना के आरक्षित होने के बाद 2005 में किसान खेत मजदूर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमशेर सिंह सुरजेवाला यहां से चुनाव लड़कर जीते। अगले दोनों 2009 और 2014 के चुनाव में उनके बेटे कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला विधायक और मंत्री बने। 2000 में यहां से इनेलो के लीला राम गुर्जर विधायक बने थे। 

रुख बदलता रहा पिहोवा
पिहोवा हलके से 2014 में भाजपा के टिकट पर जयभगवान शर्मा चुनाव लड़े थे। वे अब जजपा-आप के प्रत्याशी हैं। विस चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे। इनेलो के जसविंद्र सिंह संधु जीते थे। यहां जट्ट सिख वोट ज्यादा हैं।

शहरी सीट होंगी निर्णायक
सभी विधानसभाओं की घटत-बढ़त का फैसला शहरी सीट के अंतर से होगा। जिस भी पार्टी के नेता को कुरुक्षेत्र और कैथल शहर से लीड मिलेगी, उसके जीतने की संभावना प्रबल होगी। थानेसर से विधायक सुभाष सुधा ने कहा कि उनके हलके से भाजपा सबसे बड़ी जीत दर्ज करेगी। यही दावा लाडवा सीट से डॉ.पवन सैनी का भी है। हालांकि शाहाबाद सीट अंबाला से सटी होने के चलते कांग्रेस के निर्मल सिंह को फायदा मिल सकता है। वे अंबाला जिले से हैं। 

मुख्यमंत्री के इशारे से पवन उत्साहित
बुधवार को लाडवा में रैली के दौरान मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने विधायक डॉ.पवन सैनी को लेकर एक इशारा किया, जिससे वे और उनके समर्थक खुद उत्साहित हैं। उन्होंने कहा, जब घर में बड़े भाई की शादी हो तो छोटे भाई की जल्दी ही बढ़ जाती है। उसे लगता है कि अगला नंबर उसका है। यही स्थिति डॉ.पवन सैनी की है। मुख्यमंत्री ने संकेत दिए कि अगर नायब सैनी सांसद बनते हैं तो उनके स्थान पर प्रदेश सरकार में सैनी समाज से डॉ.पवन सैनी को राज्यमंत्री बनाया जा सकता है।

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