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Lok Sabha Election 2019: सियासी दलों के सामने गढ़ बचाने और वापसी की चुनौती

भाजपा ने कोरे कागज पर लिखी इबारत। सपा-बसपा करेगी हिसाब-किताब से मिलान। कांगे्रस के पास खोने को कुछ नहीं करेगी सिर्फ सवाल। दो सियासी दोस्तों के बूते विरासत को बेकरार रहेगा रालोद।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 08:22 PM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 08:22 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: सियासी दलों के सामने गढ़ बचाने और वापसी की चुनौती
Lok Sabha Election 2019: सियासी दलों के सामने गढ़ बचाने और वापसी की चुनौती

आगरा, राजेश मिश्रा। वर्ष 2014 के चुनावी रण में ब्रज क्षेत्र की छह में से चार सीटों पर कब्जा कर विरोधियों की जमीन खिसकाने वाली भाजपा के लिए इस बार जहां अपना जलवा कायम रखने की चुनौती है तो वहीं मैनपुरी और फीरोजाबाद में सपाई गढ़ को ध्वस्त करने का विशेष लक्ष्य भी। मोदी लहर में भी अपने दोनों अभेद्य 'दुर्ग' को बचाने में सफल रही सपा, बसपा की दोस्ती के बूते भाजपा के मंसूबों पर पानी फेरने का फिर इरादा पाले है। मथुरा में रालोद अपनी 'विरासत' वापस पाने को सपा और बसपा पर पूरी तरह से आश्वस्त रहेगा।

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पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा मुद्दे और विकास की किताब के कोरे कागज की मानिंद थी। उसने केवल सवाल किए थे। सात दशक के शासनकाल पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया था तो वंशवाद और भ्रष्टाचार के मसले पर सपा के साथ-साथ बसपा को घेरा था। मोदी लहर तो शबाब पर थी ही। इसी के बूते आगरा में भाजपा रिपीट हुई तो फतेहपुर सीकरी में 'हाथी' को किनारे लगाकर शानदार 'कमल' खिला। आगरा में हालांकि दो बार सपा की जीत से पहले दो बार भाजपा अपना कमल खिला चुकी थी। मथुरा में भी पासा पलटा। मोदी लहर में हेमामालिनी के ग्लैमर की हिलोरें इतनी ऊंची उठीं थीं कि रालोद अपनी परंपरागत सीट खो बैठा। इस सीट पर रालोद मुखिया अजित सिंह के परिजन विगत कई चुनाव लड़ चुके हैं। उनके पिता चौधरी चरण सिंह तो यहां के किसानों के लिए अभी भी मसीहा हैं। अपनी अलग पार्टी बनाकर वर्ष 2009 के चुनाव में एटा से सांसद चुने गए पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह ने विरासत की हिफाजत की। मैनपुरी और फीरोजाबाद में सपाई तूफान में मोदी लहर गुम हो गई थी।

भाजपा के पास अब पांच साल दिल्ली और दो साल से ज्यादा लखनऊ की सत्ता की उपलब्धियों वाली किताब है। इसके बूते ही अपनी सीटों को बचाने का पूरा भरोसा तो है ही, सपाई गढ़ को ध्वस्त करने की मंशा से पूरी ताकत झोंके हुए है। विरोधी भी अब भाजपा को आइना दिखाने को बेकरार हैं। सपा और बसपा भाजपा की इसी किताब से अपना-अपना हिसाब बराबर करने के इरादे पाले हैं। मैनपुरी और फीरोजाबाद में तो सपा अपना 'जन्मसिद्ध अधिकार' मान ही रही है। सपा एटा में तो बसपा सीकरी में वापसी करना चाहेगी। एटा में कल्याण सिंह की सांसदी में सपा मददगार थी ही, इससे पहले भी सपा दो बार अपना सांसद बना चुकी है।

कांग्रेस भी अगर सपा-बसपा के साथ हुई तो मथुरा में भाजपा और रालोद आमने-सामने होंगे। चौधरी चरण सिंह के प्रति ब्रजवासियों की आत्मीयता देख उनकी बहन यहां से चुनाव लड़ चुकी हैं, हालांकि हार गई थीं। जयंत चौधरी ने वर्ष 2009 में यहां से जीतकर इस सीट को विरासत मान लिया था। मगर, 2014 में भाजपा की हेमामालिनी से हार जाने के बाद रालोद को पूरा भरोसा है कि इस बार सपा और बसपा की दोस्ती उन्हें खोई विरासत वापस दिला देगी।

ब्रज के विजयी उम्मीदवार

आगरा सीट

  • 1999- राजबब्बर, सपा
  • 2004- राजबब्बर, सपा
  • 2009- रामशंकर कठेरिया, भाजपा
  • 2014- रामशंकर कठेरिया, भाजपा

फतेहपुर सीकरी सीट

  • 2009- सीमा उपाध्याय, बसपा
  • 2014- चौ. बाबूलाल, भाजपा

मथुरा सीट

  • 2009- जयंत चौधरी, रालोद
  • 2014- हेमामालिनी, भाजपा

मैनपुरी सीट

  • 2004 - मुलायम सिंह, सपा
  • 2004 उप चुनाव- धर्मेंद्र यादव, सपा 2009 - मुलायम सिंह, सपा
  • 2014 - मुलायम सिंह, सपा
  • 2014 उप चुनाव - तेज प्रताप, सपा

एटा सीट

  • 1999- कुंवर देवेंद्र सिंह यादव, सपा
  • 2004- कुंवर देवेंद्र सिंह यादव, सपा
  • 2009- कल्याण सिंह, जनक्रांति पार्टी, सपा समर्थित
  • 2014- राजवीर सिंह, भाजपा

फीरोजाबाद सीट

  • 2004- रामजीलाल सुमन, सपा
  • 2009- अखिलेश यादव, सपा
  • 2009- उपचुनाव- राजबब्बर, कांग्रेस
  • 2014- अक्षय यादव सपा  

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