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Lok Sabha Election 2019 : चुनावी चौसर पर हावी जातिगत समीकरण

Lok Sabha Election 2019. जातिगत समुदायों को लुभाने की होड़ देखकर कहा जा सकता है कि सिंहभूम के चुनावी चौसर पर जातिगत समीकरण हावी हो गए हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 27 Apr 2019 01:57 PM (IST)Updated: Sat, 27 Apr 2019 01:57 PM (IST)
Lok  Sabha Election 2019 : चुनावी चौसर पर हावी जातिगत समीकरण
Lok Sabha Election 2019 : चुनावी चौसर पर हावी जातिगत समीकरण

चक्रधरपुर, दिनेश शर्मा। Lok  Sabha Election 2019 चुनाव के लिए जातिगत समीकरण बनाकर वोट बटोरने की राजनीति प्रारंभ हो गयी है। जातिगत समुदायों को लुभाने की होड़ देखकर कहा जा सकता है कि चुनावी चौसर पर जातिगत समीकरण हावी हो गए हैं। सभी दलों व प्रत्याशियों ने एक-एक समुदाय को लुभाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। जाति विशेष के लिए किए गए कार्य व उन्हें दिलाए गए लाभ चुनाव प्रचार में प्रमुख मुद्दे बन चुके हैं।

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सुरक्षित क्षेत्र होने के कारण प्रत्येक पार्टी से अनुसूचित जनजाति समुदाय से ही उम्मीदवार खड़ा किया जाता है, जिसके कारण अनुसूचित जनजाति समुदाय के मतदाता बिखर जाते हैं। अनुसूचित जनजाति में उरांव व ईसाई (आदिवासी समुदाय के वे लोग जिन्होंने धर्म बदल लिया है) खासे सक्रिय रहते हैं। उरांव व ईसाई समुदाय के लोगों का मतदान औसत अन्य समुदायों से बेहद ज्यादा है। अनुसूचित जनजाति समुदाय में हो समुदाय के मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन शिक्षा व जागरूकता के अभाव में यह समुदाय चुनाव में अपेक्षाकृत कम सक्रिय रहता है। जिसके कारण हो समुदाय का पोलिंग प्रतिशत 30 से 40 प्रतिशत तक रहता है।

हो समुदाय के लोग कर चुके हैं पलायन

हो समुदाय से भारी तादाद में लोग रोटी की तलाश में परदेस पलायन कर चुके हैं। हो समुदाय के भोलेपन का फायदा हर उम्मीदवार को मिलता है। अनुसूचित जनजाति समुदाय के हो तथा उरांव समुदाय को झारखंड मुक्ति मोर्चा अपना वोट बैंक मानता था, आज स्थिति थोड़ी बहुत ही सही लेकिन बदली है। वर्तमान में गठबंधन की ओर से सिंहभूम संसदीय क्षेत्र कांग्रेस के खाते में है। आरंभिक ना नुकुर के बाद अब झामुमो के सभी विधायक व संगठन भी कांग्रेस के साथ खड़ा दिख रहा है। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि झामुमो की टीम अपने वोटरों को किस हद तक कांग्रेस के लिए वोट करने को प्रेरित कर पाती है।

ये माने जाते कांग्रेस के वोट बैंक

कांग्रेस के अलावा अन्य क्षेत्रीय दलों को भी हो तथा उरांव समुदाय का वोट मिलता है। अनुसूचित जनजाति समुदाय के इसाई वोट को कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है। चक्रधरपुर विधानसभा क्षेत्र की बात करें, तो पिछले विधानसभा चुनाव में निर्णायक वोट पिछड़ा वर्ग का रहा था। पिछड़ा वर्ग में महतो (कुड़मी) की संख्या सबसे अधिक है। आजसू के भाजपा के साथ मजबूती के साथ खड़े होने के कारण इसके विभाजित होने के आसार कम हैं। महतो के बाद  प्रधान समुदाय का स्थान है। गौड़ समुदाय का वोट 2009 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय मधु कोड़ा को मिला था। जबकि 2014 में यह विभाजित हुआ था। इस समुदाय को एनेक्सर वन में शामिल कर निर्दल उम्मीदवार मधु कोड़ा ने समुदाय के वोट का बड़ा हिस्सा हथिया लिया था। लेकिन इस चुनाव में स्थिति बिल्कुल अलग दिख रही है।

प्रधान समुदाय ने साध रखी है चुप्पी

प्रधान समुदाय बिल्कुल चुप्पी साधे बैठा है। इसके अलावा उच्च वर्ग, व्यापारी वर्ग आदि का वोट भाजपा को मिलता रहा है। लेकिन 2009 के चुनाव में निर्दल मधु कोड़ा ने भाजपा के सभी तबके के वोट बैंक में सेंधमारी कर जीत हासिल की थी। इस बार भाजपा अपने इस वोट बैंक को एकजुट रखने को प्रयासरत है, तो गीता कोड़ा अपने पति मधु कोड़ा की मदद से एक बार फिर पुरानी कहानी दोहराने का प्रयास कर रही हैं। चक्रधरपुर व चाईबासा विस क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण ध्रुवीकरण मुस्लिम मतों का माना जाता है। पिछले चुनाव में भी मुस्लिम समुदाय के अधिसंख्य वोट गीता कोड़ा को मिले थे। लेकिन पिछली बार कांगेस प्रत्याशी चित्रसेन सिंकू ने इसमें विभाजन कर दिया था। इस बार भी अब तक जानकार इस तबके का वोट भाजपा को पराजित करने की ताकत रखने वाले दमदार उम्मीदवार पर ही केन्द्रित होता मान रहे हैं।


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