अकेले आसान नहीं बसपा की डगर, लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन में मिली संजीवनी
समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर बसपा ने लोकसभा चुनाव में दस सीटें भले ही हासिल कर ली हैैं लेकिन उसके लिए अकेले ही मंजिल पाना आसान नहीं है।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर बसपा ने लोकसभा चुनाव में दस सीटें भले ही हासिल कर ली हैैं, लेकिन उसके लिए अकेले ही मंजिल पाना आसान नहीं है। पिछले एक दशक से पार्टी का रुतबा लगातार घट रहा है। अभी जो हाल है उसमें अकेले दम पर '2007' जैसी स्थिति हासिल करना उसके लिए बड़ी चुनौती है।
35 वर्ष के इतिहास में बसपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2007 के विधानसभा चुनाव में रहा है। तब पार्टी न केवल अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही थी बल्कि सर्वाधिक 30.43 फीसद वोट भी हासिल किए थे। उसके बाद के तीन विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव में पार्टी का ग्राफ गिरता ही रहा। 2009 के चुनाव में पार्टी के 20 सांसद जीते, लेकिन जनाधार घटकर 27.42 फीसद ही रह गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी शून्य पर सिमट कर रह गई। इससे सवर्ण व पिछड़े वर्ग के प्रमुख नेता पार्टी से किनारा करते रहे और बसपा की सोशल इंजीनियङ्क्षरग फेल होती चली गई।
इसी वजह से बसपा, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से मुख्य लड़ाई में भी नहीं टिकी रह सकी। दलित व मुस्लिम गठजोड़ बनाने के प्रयास भी कारगर नहीं रहे। बीते लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन कर उतरने पर पार्टी को यह फायदा जरूर हुआ कि उसके सांसद शून्य से 10 हो गए। इनमें भी तीन मुस्लिम समाज के ही हैैं।
मुस्लिमों में बढ़ेगा भ्रम, अन्य पिछड़ों की वापसी पर संदेह
अपने पुराने ढर्रे में बदलाव लाते हुए मायावती ने प्रदेश के जिन 11 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में अकेले उतरने का फैसला लिया है, उनमें केवल जलालपुर ही उसके कब्जे वाली है। सपा रामपुर सीट पर काबिज थी। नौ सीटें भाजपा गठबंधन के पास थीं। जानकारों का मानना है कि सपा-बसपा के अलग-अलग लड़ने से गैर भाजपाई वोटरों में भ्रम पैदा होगा, जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा। दूसरी ओर पिछड़े व दलित वर्ग में भाजपा के प्रति बढ़ते मोह को कम कर पाना भी बसपा के लिए आसान नहीं रहेगा। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में गठबंधन में शामिल सपा-बसपा और रालोद को मिले वोटों से कहीं ज्यादा 49.56 फीसद वोट भाजपा को मिले हैैं।
चार सीटों पर दिख रही बसपा को मजबूत जमीन
लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा के उपचुनाव में भी बसपा के लिए समान परिस्थिति है। हारने को कुछ है नहीं, जीतने को सारा मैदान और लडऩे का भरपूर माद्दा भी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की आंधी और सपा-कांग्रेस गठबंधन से अकेले लोहा लेकर भी अपना बेस वोट बचाने में सफल रहीं बसपा प्रमुख मायावती के पास उपचुनाव की इन 11 में से कम से कम चार सीटों पर जीत की उम्मीदें सजाने का आधार जरूर है।
उपचुनाव के लिए खाली हुई 11 में से जलालपुर सीट बसपा 37 फीसद मतों के साथ जीती थी और अब लोकसभा चुनाव भी वहां से जीत गई है। इस तरह एक सीट तो पार्टी को मजबूत नजर आ रही है। इसके अलावा 2017 में तीन सीटों पर बसपा दूसरे स्थान पर रही थी। इनमें से बल्हा में बसपा प्रत्याशी को 57519 (28 फीसद), टूंडला में 62514 (25 फीसद) और इगलास में 53200 (22 फीसद) वोट मिला था।
हालांकि, भविष्य की राजनीति के लिए मायावती शायद अभी समीक्षा और संगठन की ताकत परखने के मूड में हैं। शायद इसीलिए उपचुनाव के लिए गठबंधन तोडऩे के बाद भी सपा से पूरी तरह ब्रेकअप न होने की बात कहकर फिर हाथ मिलाने का विकल्प खुला रखा है। उपचुनावों के नतीजे काफी हद तक एक इशारा कर ही देंगे कि अब अकेले सियासी सफर बसपा के लिए मुश्किल होगा या सामान्य।
बसपा का विधानसभा-लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन
चुनावी वर्ष जीते/लड़े मिले मत फीसद
2019 10/38 19.26
2017 19/403 22.23
2014 00/80 19.77
2012 80/403 25.91
2009 20/80 27.42
2007 206/403 30.43
नोट-2009, 2014 व 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे हैैं।
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