अतीत के आईने से: वोट शेयर के मामले में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है बसपा
2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा उत्तर प्रदेश से एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। बसपा का वोट शेयर फिर भी बहुत अच्छा था। बढ़ते वोट शेयर को देखते हुए इस बार सपा और बसपा चुनावी मैदान में हैं।
नई दिल्ली, अंकुर अग्निहोत्री। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी है। करिश्माई दलित नेता कांशीराम ने वर्ष 1984 में इस पार्टी का गठन किया था। फिलहाल उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती इस पार्टी की अध्यक्ष हैं और उत्तर प्रदेश ही पार्टी का गढ़ है। पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी है। 2014 के आम चुनाव में वोट शेयर के मामले में यह देश की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है।
गठन
कांशीराम ने दबे कुचले लोगों का हाल जानने के लिए पहले पूरे भारत का भ्रमण किया और फिर वर्ष 1978 में ‘बामसेफ’ नामक एक अपना संगठन बनाया। उसके बाद उन्होंने बौद्ध रिसर्च सेंटर (बीआरसी) और फिर दलित-शोसित समाज संघर्ष समिति यानी ‘डीएस-4’ बनाया। आखिरी में ‘बहुजन समाज पार्टी’ (बीएसपी) नाम से एक राजनितिक पार्टी का गठन किया। पार्टी के पहले अध्यक्ष वे ख़ुद बने। पार्टी का गठन समाज के दबे-कुचले लोगों (विशेषकर दलित) के हित और सत्ता में भागीदारी के मकसद से किया गया था। पार्टी का दावा है बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के दर्शन उनकी प्रेरणास्त्रोत हैं।
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पहला चुनाव
बसपा पहली बार 1984 के लोकसभा चुनावों में उतरी, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। 1989 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के तीन सदस्य चुनकर लोकसभा में गए और उसके बाद पार्टी को पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा।
पहली बार मिली सत्ता
जब देश में गठबंधन की राजनीति ने अपना सिक्का जमाया तो बहुजन समाज पार्टी का भी रंग निखरा और वर्ष 1995 आते-आते ये पार्टी भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सत्ता के शिखर तक पहुंच गई और पार्टी ने गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने इसे ‘लोकतत्र का चमत्कार’ कहा था।
उतार-चढ़ाव
13वीं लोकसभा में इस पार्टी के 14लोकसभा सदस्य चुने गए। पार्टी ने वर्ष 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में हिस्सा लिया और 13 विधायक चुने गए, लेकिन जब वर्ष 1991 में चुनाव हुए तो पार्टी की सीट घटकर 12 हो गई। लेकिन उसके बाद पार्टी की सीटों में लगातार बढ़ोत्तरी हुई। वर्ष 1993 और 1996 में दोनों बार पार्टी के 67 विधायक उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे तो 2002 में 98 और 2007 में 206 विधायक चुन कर आए। इस बीच पार्टी ने तीन बार राज्य में गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया। जबकि 2007 में पूर्ण बहुमत से सरकार का गठन किया।
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सोशल इंजीनियरिंग
इस पार्टी की पहचान एक दलित पार्टी के तौर पर होती है, लेकिन पार्टी अध्यक्ष मायावती परोक्ष रूप से ये घोषणा कर चुकी हैं कि वो दलितों को सत्ता में भागीदारी दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
संभवत:
यही वजह है कि पार्टी ने अपनी रणनीति में खासा बदलाव कर लिया है। पार्टी अब ब्राह्मणों के भी करीब है। ब्राह्मणों को एकजुट करने में सतीश चंद्र मिश्र की मुख्य भूमिका मानी जाती है। यही वजह है कि पंद्रहवीं लोकसभा चुनावों में पार्टी ने उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों पर सबसे अधिक टिकट दलित के बजाय ब्राह्मणों को दिए थे।
उत्तर प्रदेश में स्थिति
2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में केवल 19 सीटें जीतने के बावजूद 22 फीसद से अधिक मतों के साथ बसपा वोट शेयर के मामले में दूसरे नंबर की पार्टी है।