Lok Sabha Election 2019: भाजपा का 'सुदर्शन चक्र' रोकने उतरे कांग्रेस के सुखदेव
Lok Sabha Election 2019. भाजपा ने एक बार फिर सुदर्शन भगत को हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने उनका विजयी रथ रोकने के लिए सुखदेव भगत पर दांव लगाया है।
रांची, आनंद मिश्र। Lok Sabha Election 2019 - हाइप्रोफाइल लोहरदगा संसदीय सीट से भाजपा और कांग्रेस दोनों की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। यहां भाजपा ने एक बार फिर केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत पर भरोसा जताते हुए उन्हें हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने उनका विजयी रथ रोकने के लिए अपने चेहरे को बदला है। पूर्व मंत्री रामेश्वर उरांव की जगह इस बार पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत को मौका दिया गया है।
लोहरदगा में भाजपा और कांग्रेस अस्सी के दशक से ही परंपरागत प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। मुकाबला भी कांटे का ही रहा है। पिछले चुनाव में सुदर्शन भगत को महज साढ़े छह हजार वोटों से ही जीत हासिल हुई थी। उससे पूर्व का चुनाव भी वे दस हजार से कम वोटों से जीते थे। लोहरदगा में भाजपा की जड़ें गहरी हैं लेकिन कांग्रेस ने विपरीत परिस्थिति में भी यहां अपनी राजनीतिक जमीन नहीं खोई है। यहां कांग्रेस की ताकत उसकी कमजोरी भी है।
वर्चस्व की लड़ाई में कांग्रेसी अपनों को भी झटका देने से गुरेज नहीं करते। आदिवासी बहुल इस सीट पर आदिवासी वोटर अहम भूमिका अदा करते हैं। लेकिन इनके वोट पर कोई एक दल कभी भी दावा नहीं कर सकता। जनजातीय मतदाता राष्ट्रीय पार्टियों के साथ तो दिखते ही हैं लेकिन स्थानीय उम्मीदवारों को भी निराश नहीं करते। 2009 के चुनाव में चमरा लिंडा का निर्दलीय रहते हुए दूसरे स्थान तक पहुंचना और 2014 के चुनाव में झारखंड में किसी भी तरह का जनाधार न रखने वाली तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर तीसरे स्थान पर टिकना कुछ यही दर्शाता है।
जुमलों की सरकार को देंगे जवाब : सुखदेव
भाजपा की सरकार जुमलों की सरकार है। इसे हम जवाब देंगे। चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे तो हम उठाएंगे ही, स्थानीय मुद्दों पर भी हमारा जोर होगा। यह सरकार आदिवासियों की जमीन को कॉरपोरेट घरानों को दे रही है। जमीन अधिग्रहण से जुड़े मसले तो हैं ही सीएनएटी-एसपीटी एक्ट का मसला भी है। यह सरकार आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है। सुरक्षा भी एक अहम मसला है। देश की सुरक्षा हमारे एजेंडे में सबसे ऊपर है। यह सरकार अल्पसंख्यकों और इसाईयों पर बदले की भावना से कार्रवाई कर रही है। हम सरना धर्म कोड को जनगणना के कालम में शामिल कराने की बात भी उठाएंगे।
लोहरदगा का विकास मुख्य एजेंडा : सुदर्शन भगत
क्षेत्र का विकास ही मुख्य ध्येय है। इस दिशा में लगातार काम किया है। पुल-पुलिया, सड़क व बुनियादी ढांचे पर काफी कुछ किया गया है, इसे और गति देनी है। देश की सुरक्षा हमारे लिए सर्वोच्च प्राथमिकता का मुद्दा है। बुनियादी व सामान्य विकास का वादा हमने किया है, जिसे निभाएंगे। रेल लाइन को पूरा करना और बाक्साइट आधारित उद्योग की स्थापना हमारी विशेष प्राथमिकता है। इससे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर सृजित होंगे। इसके लिए प्रयास किया गया है। रेलमंत्री से कई बार मुलाकात भी की और पत्राचार भी किया। काम भी शुरू हुआ है। न्यू सर्वे का काम आगे बढ़ा है।
सुदर्शन भगत
मजबूती : सादगी भरा जीवन। मिलनसार और मृदुभाषी। इन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। विरोधी भी इनकी शालीनता के कायल हैं।
कमजोरी : मुखर होकर अपनी बातों को न रख पाना। केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद कई समस्याओं का समाधान नहीं कर सके। खुद उनके ही गांव में पानी की समस्या है।
सुखदेव भगत
मजबूती : नौकरशाही से राजनीति में आए और पहचान कायम की। युवाओं और कार्यकर्ताओं में पकड़। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान संगठन को आगे बढ़ाने का काम किया।
कमजोरी : लोकसभा चुनाव पहली बार लड़ रहे हैं। अपनी पहचान के दायरे को व्यापक बनाते हुए लोगों से जुडऩा होगा। चुनाव के दौरान विपक्ष के साथ-साथ अपने सहयोगियों को साधना होगा।
राष्ट्रीय मुद्दे
बाक्साइट कारखाना : लोहरदगा में बाक्साइट कारखाना की मांग बहुत पुरानी है। ङ्क्षहडाल्को का तर्क है कि गुमला में रेल लाइन नहीं है। पानी व बिजली की भी समस्या है। कारखाना लगाना मुश्किल है।
रेल लाइन : लोहरदगा से गुमला होते हुए छत्तीसगढ़ के कोरवा तक रेल लाइन का निर्माण पिछले कई वर्षों से अटका हुआ है। फिलहाल सिर्फ सर्वे हुआ है। लोहरदगा-टोरी लाइन बन गई लेकिन इस पर एक भी एक्सप्रेस ट्रेन नहीं चल रही है।
बाईपास : लोहरदगा और गुमला दोनों जगहों पर बाईपास का निर्माण पूरा नहीं हुआ है। गुमला में बाईपास निर्माण पर कार्य शुरू हुआ है लेकिन एक तिहाई से अधिक कार्य अभी बाकी है। जबकि लोहरदगा में बाईपास निर्माण अभी शुरू ही नहीं हुआ है।
राज्यस्तरीय मुद्दे
रोजगार व पलायन : रोजगार व पलायन यहां की बड़ी समस्या है। युवाओं के पास रोजगार न होने से वे बड़े पैमाने पर पलायन कर रहे हैं।
गरीबी व पिछड़ापन : लोहरदगा में गरीबी व पिछड़ापन है। आर्थिक गतिविधियां स्थानीय व्यवसाय और बाक्साइट माइंस पर ही निर्भर हैं। अधिकांश बाक्साइट खदानें बंद पड़ी हैं।
सिंचाई संसाधनों का अभाव : पूरे राज्य की तरह लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में भी सिंचाई के संसाधनों का अभाव है। यहां खेतों से दो फसल सिर्फ भंडरा जैसे कुछ प्रखंड में ही ली जा रही है।
स्थानीय मुद्दे
पेयजल का अभाव : लोहरदगा में पेयजल आपूर्ति योजनाएं लटकी पड़ी है। ग्रामीण आबादी हैंडपंप, कुओं और नदियों पर ही निर्भर है। हालांकि गुमला में 14वें वित्त आयोग की राशि से जलापूर्ति सुविधाएं बहाल की गई हैं।
प्रदूषण : बाक्साइट खनन से बड़े पैमाने पर क्षेत्र में प्रदूषण फैल रहा है। बाक्साइट की गाडिय़ां लोहरदगा शहर से होकर गुजरती हैं। बाक्साइट व कोयले के डंपिंग यार्ड से आम जनों को खासी परेशानी हो रही है।
उच्च शिक्षा : लोहरदगा में उच्च शिक्षा की कमी खटकती है। यहां एमएलए कालेज को स्नातक की मान्यता नहीं मिल सकी है। बीएस कालेज में स्नातकोत्तर की पढ़ाई तो हो रही है लेकिन सभी विषयों की नहीं।
चमरा बड़ा फैक्टर
लोहरदगा में मुख्य मुकाबला तो भाजपा और कांग्रेस के बीच ही दिखता है लेकिन चमरा लिंडा भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्शाते रहे हैं। पिछले चुनाव में तृणमूल कांग्रेस से चुनाव लड़े थे और उन्हें एक लाख से अधिक वोट मिले थे। 2009 के चुनाव में तो चमरा लिंडा दूसरे स्थान पर थे।