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Lok Sabha Election 2019: भाजपा के बागी शॉटगन ने खामोशी से थाम लिया कांग्रेस का हाथ

बिहार के पटना साहिब से भाजपा ने इस बार शत्रुघ्न को लोकसभा का टिकट नहीं दिया तो उन्होंने अपनी वर्षों पुरानी पार्टी को छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने का निर्णय लिया है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 08:00 AM (IST)Updated: Wed, 27 Mar 2019 08:01 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019:  भाजपा के बागी शॉटगन ने खामोशी से थाम लिया कांग्रेस का हाथ
Lok Sabha Election 2019: भाजपा के बागी शॉटगन ने खामोशी से थाम लिया कांग्रेस का हाथ

नई दिल्ली, संजय कुमार सिंह।  जनाब, राजनीति बहुत बेवफा होती है। वह कब और किस मोड़ पर दगा दे देगी, पता नहीं चलता। दूर से चमक बिखेरने वाली राजनीति इतनी स्याह होती है कि स्वयं इसे जी रहा पात्र भी इससे अनजान रहता है। शायद राजनीति इसी का नाम है। बॉलीवुड में नाम कमाकर राजनीति में पैर जमाने वाले बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा के सितारे फिलहाल अभी गर्दिश में हैं। सबको ‘खामोश’ करने की आदत अब स्वयं उन पर भारी पड़ गई है।

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उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत 1984 में हुई, जब उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। पार्टी ने उनके व्यक्तित्व और दमदार आवाज की वजह से उन्हें चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी सौंप दी। उन्हें पहली राजनीतिक कामयाबी 1996 में मिली जब बिहार से राज्यसभा सदस्य चुना गया। इसके बाद एनडीए के शासनकाल में 2002 में दूसरी बार राज्यसभा के लिए चुना गया। वाजपेयी उनके काम से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने सिन्हा को अपने कैबिनेट में जगह दी। उन्हें 2003 में भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। इसके अगले ही साल जहाजरानी मंत्री बना दिया गया। फिलहाल वह पटना साहिब से सांसद हैं।

जेपी आंदोलन से थे प्रभावित
शत्रुघ्न सिन्हा के जीवन पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन आंदोलन, संगत और उनके व्यक्तित्व का काफी प्रभाव पड़ा। वह 1974 में जयप्रकाश नारायण के संपर्क में आए थे, जिसके बाद वह जन आंदोलन से जुड़ गए। यह वही जन आंदोलन था जिसने भारतीय राजनीति को कई बड़े नेता दिए। लेकिन शत्रुघ्न ने अभिनय की राह पकड़ी।

आडवाणी खेमे में थी अच्छी दखल
अटल-आडवाणी युग में शत्रुघ्न सिन्हा की खूब चलती थी। वह पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के बहुत ही करीबी समझे जाते थे। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव के पहले विपक्ष में बैठी भाजपा सांगठनिक रूप से बदलाव के दौर से गुजर रही थी और गुजरात से निकलकर नरेंद्र मोदी की अगुआई में एक नया नेतृत्व केंद्रीय राजनीति में सक्रिय हो रहा था। तब शत्रुघ्न ने इसका पुरजोर विरोध करते हुए आडवाणी के पक्ष में आवाज बुलंद की थी।

नहीं बदला पाला
आखिरकार भाजपा में बड़े स्तर पर बदलाव हुआ। अटल-आडवाणी युग की समाप्ति हो गई और भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी पर नरेंद्र मोदी के चहेते अमित शाह की ताजपोशी हुई। इस बीच भाजपा में अंदरखाने खूब खींचतान मची। कुछ वरिष्ठ नेताओं ने आडवाणी को छोड़कर नए नेतृत्व का रुख कर लिया, लेकिन शत्रुघ्न ने पाला नहीं बदला। 2014 में भाजपा ने मोदी को आगे कर चुनाव लड़ा और उसे बड़ी कामयाबी मिली।

मोदी मंत्रिमंडल में जगह न मिलने की टीस
मोदी के पीएम बनने के बाद मंत्रिमंडल में कई नए-पुराने चेहरों को जगह मिली, लेकिन शत्रुघ्न को मंत्रिमंडल से बाहर रखा गया। इसके बाद तो उन्होंने सरकार, खासकर पीएम मोदी के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया। खुले मंचों से वह अपनी ही सरकार की आलोचना करते पाए गए। साथ ही भी कहते रहे कि पीएम मोदी हमारे पुराने मित्र हैं। मैं उनकी नहीं, उनकी नीतियों की आलोचना करता हूं।

पहले ही कर ली थी पार्टी बदलने की तैयारी
2019 के लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही शत्रुघ्न को लग गया था कि अब उनकी दाल भाजपा में गलने वाली नहीं है। इसलिए, उन्होंने राजद और कांग्रेस से अपनी नजदीकी बढ़ा दी थी। पटना साहिब सीट से जब भाजपा ने रविशंकर प्रसाद को टिकट दे दिया तो उन्होंने ने भी अपने पत्ते खोलते हुए कांग्रेस से चुनाव मैदान में उतरने का निर्णय ले लिया।


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