Lok Sabha Election 2019: सांसद का हो रहा चुनाव, गोड्डा में विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर
गोड्डा लोकसभा क्षेत्र की छह विस सीटों में से चार भाजपा के पास है। इसमें महागामा से अशोक भगत गोड्डा से अमित मंडल देवघर से नारायण दास और मधुपुर से राज पालिवार शामिल हैं।
गोड्डा, विधु विनोद। संताल परगना की एक मात्र सामान्य सीट गोड्डा में इस बार भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है। पार्टी के केंद्रीय व प्रदेश नेतृत्व की ओर से यहां लगातार कैंपेन कर अपने सीटिंग विधायकों को टास्क दिया जा रहा है। सीएम रघुवर दास इसकी मॉनीटरिंग कर रहे हैं। पूरे देश में सर्वाधिक समय तक चुनाव प्रचार का दौर भी यहीं चला है। चुनाव की अधिसूचना जारी हुए दो माह से अधिक का समय हो चला है।
इस बीच सीएम ने तीन राउंड में विधायकों के साथ गुफ्तगू कर उन्हें कर्तव्यबोध का अहसास कराया है। दुमका और देवघर में सीएम ने कैंप कर इन विधायकों को मोदी फैक्टर पर जनता से मिलने और अधिक से अधिक गांवों में चौपाल लगाकर जनता का विश्वास हासिल करने की रणनीति तैयार की है। यह भी निर्देश है कि पार्टी के लोस प्रत्याशी के साथ संबंधित विस क्षेत्र में प्रचार के दौरान वहां के विधायक की मौजूदगी जरूरी है। बीते एक माह से इसी रणनीति के तहत भाजपा का प्रचार भी चल रहा है।
छह में से चार सीटें भाजपा के पास : गोड्डा लोकसभा क्षेत्र की छह विस सीटों में से चार भाजपा के पास है। इसमें महागामा से अशोक भगत, गोड्डा से अमित मंडल, देवघर से नारायण दास और मधुपुर से राज पालिवार शामिल हैं।
वहीं पोड़ैयाहाट और जरमुंडी विस क्षेत्र में क्रमश: जेवीएम के प्रदीप यादव और कांग्रेस के बादल पत्रलेख वर्तमान में विधायक हैं। पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव पर महागठबंधन ने दांव खेला है। उन्हें गोड्डा लोस से महागठबंधन का साक्षा प्रत्याशी बनाकर निर्वतमान सांसद सह भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे के खिलाफ उतारा गया है। महागठबंधन के घटक दलों की गोलबंदी ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी है। इसमें मुस्लिम, यादव और संथाल का समीकरण महागठबंधन के साथ जाता दिख रहा है। यही समीकरण भाजपा की बैचेनी बढ़ा रहा है।
तीन दशक में सिर्फ दो गैर भाजपा प्रत्याशी ने ही चखा जीत का स्वाद : गोड्डा संसदीय चुनाव के इतिहास में बीते तीस वर्षों में अब तक सिर्फ दो गैर भाजपा प्रत्याशी ने ही यहां जीत का स्वाद चखा है। इस सीट पर भाजपा की जीत की नींव वर्ष 1989 में जनार्दन यादव ने रखी। उसके बाद जगदंबी प्रयाद यादव यहां से लगातार तीन बार सांसद बने। हां, 1991 मेंं जनार्दन यादव को रोककर झामुमो के सूरज मंडल ने यहां फतह किया। सूरज मंडल के बाद गैर भाजपा प्रत्याशी में फुरकान अंसारी थे, जिन्होंने 2004 में यहां के सीटिंग भाजपा सांसद प्रदीप यादव को करीब तीस हजार वोट से पराजित किया था। सबसे मजेदार पहलू यह है कि वर्तमान में भाजपा को कड़ी टक्कर देने वाले जेवीएम प्रत्याशी प्रदीप यादव वर्ष 2002 में तत्कालीन भाजपा सांसद जगदंबी प्रसाद यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में 33 फीसद वोट लाकर भाजपा के टिकट पर ही सांसद बने थे। बाद में बाबूलाल मरांडी के भाजपा से अलग होकर नई पार्टी बनाने के बाद प्रदीप यादव ने भी भाजपा को अलविदा कह दिया था। प्रदीप यादव के भाजपा छोडऩे के बाद पार्टी ने यहां से निशिकांत दुबे को उतारा था। दुबे ने 2009 और 14 के आम चुनाव में जीत हासिल कर भाजपा की सांगठनिक ताकत भी बढ़ाई।
चुनाव को लेकर भाजपा की रणनीति स्पष्ट है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच साल के कार्यों के आधार पर भाजपा कार्यकर्ता गांव गांव जाकर लोगों से समर्थन मांग रहे हैं। चारों ओर मोदी की सुनामी है। कहीं भी महागठबंधन भाजपा से आगे नहीं है। सीएम रघुवर दास भी लगातार चुनाव प्रचार में हैं। सभी विधायक संताल में भाजपा की सांगठनिक ताकत को बढ़ाने में जुटे हुए हैं। भाजपा को सभी विधान सभा क्षेत्रों में लीड मिलेगी।
- राज पालिवार, श्रम मंत्री सह मधुपुर विधायक।
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