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भाजपा को उम्मीद इस बार भी उनके फायरब्रांड नेता अनंत हेगड़े अच्छे-खासे अंतर से चुनाव जीतेंगे

50 वर्षीय अनंत हेगड़े भाजपा के फायरब्रांड नेता माने जाते हैं। राजनीति में उनका उभार ही 15 अगस्त 1994 को हुबली के ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने की घटना से हुआ।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 10:36 AM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 10:36 AM (IST)
भाजपा को उम्मीद इस बार भी उनके फायरब्रांड नेता अनंत हेगड़े अच्छे-खासे अंतर से चुनाव जीतेंगे
भाजपा को उम्मीद इस बार भी उनके फायरब्रांड नेता अनंत हेगड़े अच्छे-खासे अंतर से चुनाव जीतेंगे

ओमप्रकाश तिवारी, कारवार। कर्नाटक के हरे-भरे सागर तटीय उत्तर कन्नडा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के केंद्रीय कौशल विकास राज्यमंत्री व पांच बार के सांसद अनंत हेगड़े के सामने इस बार भी कोई बड़ी चुनौती नजर नहीं आ रही क्योंकि जनता दल (सेक्युलर) का यहां कोई जनाधार नहीं है और कांग्रेस से जद (स) उम्मीदवार आनंद अस्नोटिकर को कोई सहारा नहीं मिल पा रहा है।

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50 वर्षीय अनंत हेगड़े भाजपा के फायरब्रांड नेता माने जाते हैं। राजनीति में उनका उभार ही 15 अगस्त, 1994 को हुबली के ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने की घटना से हुआ। इस घटना के बाद ही सिर्फ 28 वर्ष की उम्र में उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार लोकसभा का टिकट दिया और वह तबसे पांच बार लोकसभा में भाजपा से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस बीच सिर्फ एक बार 1999 में वह कांग्रेस की नेता मार्गेट अल्वा से हारे, वह भी बहुत कम मतों के अंतर से। उनकी प्रखर हिंदुत्व की भावना को दर्शाने वाले उनके बयान अक्सर चर्चा में रहते हैं। उनके हिंदुत्ववादी समर्थकों के बीच उनकी लोकप्रियता का एक कारण यह भी है।

1996 तक कांग्रेस का गढ़ रहे उत्तर कन्नडा क्षेत्र में हिंदुत्व का उभार 1990 में इस क्षेत्र से गुजरी लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा एवं 1991-92 में मुरली मनोहर जोशी द्वारा निकाली गई एकता यात्रा के समय से ही हो गई थी। लेकिन भाजपा की जड़ें गहरी हुईं यहां के समुद्रतटीय कस्बे भटकल में 1993 में, करीब आठ महीने चले सांप्रदायिक दंगों के बाद। इन घटनाओं से उपजे धु्रवीकरण के बीच ही भाजपा ने युवा अनंत हेगड़े को इस क्षेत्र के नेतृत्व का मौका देकर जो अपनी जड़ें जमाईं, तो आजतक उसे कोई हिला नहीं सका है। 2014 में उनसे 1,40,700 मतों से हारी कांग्रेस ने इस बार यह सीट समझौते में जद(स) को दी, तो जद(स) ने कारवार विधानसभा क्षेत्र से पिछला चुनाव हार चुके आनंद अस्नोटिकर को टिकट दे दिया।

इस क्षेत्र में जद (स) का कोई पारंपरिक आधार नहीं है। अस्नोटिकर पूरी तरह से कांग्रेस के भरोसे हैं। लेकिन कांग्रेस से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है। कर्नाटक के राजस्वमंत्री आरवी देशपांडे इसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले हालियाल विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर उनके पुत्र प्रशांत ने ही लड़ा था। इस बार कांग्रेस द्वारा यह सीट जद(स) को दे दिए जाने से वह नाराज हैं। इसलिए पूरे क्षेत्र का कांग्रेस कार्यकर्ता शांत बैठा है। क्षेत्र की आठ में से पांच विधानसभा सीटें भाजपा के पास होना भी अनंत हेगड़े को मजबूती प्रदान करती हैं। क्षेत्र की ज्यादातर आबादी मराठी और कोंकणी भाषी है। जिस पर महाराष्ट्र और गोवा की राजनीति का प्रभाव है। यह गणित भी भाजपा के पक्ष में जाता है।

लेकिन ऐसा नहीं कि इतने लंबे समय से क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हेगड़े के विरुद्ध कोई शिकायत ही न हो। क्षेत्र के लोगों के संपर्क में न रहना, उनसे सबसे बड़ी शिकायत है। इस क्षेत्र में आ रही कुछ बड़ी परियोजनाओं में स्थानीय लोगों का समायोजन न हो पाना एवं विस्थापित लोगों के पुनर्वास की उचित व्यवस्था न होना दूसरी बड़ी शिकायत है। क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति का संकट भी लोगों को परेशान करता है। लेकिन दूसरी ओर मोदी सरकार के कार्यकाल में जमीनी स्तर पर हुए उच्च्वला, मुद्रा योजना, आयुष्मान भारत योजना एवं प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे काम अब हेगड़े के भी काम आ रहे हैं। क्षेत्र के तीन विधानसभा क्षेत्र सागरतटीय हैं। जहां मछुवारों की बड़ी आबादी है। हाल ही में पीएम द्वारा पुन: सरकार आने पर इस समुदाय के लिए विशेष सुविधाओं की घोषणा ने लोगों की बांछें खिला दी हैं। इसलिए भाजपा को उम्मीद है कि अनंत हेगड़े इस बार भी अच्छे-खासे अंतर से चुनाव जीतेंगे।


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