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Lok Sabha Election 2019: भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशी भी कुशाक बकुला की राह पर

वर्ष 1967 से 1977 तक कांग्रेस की टिकट से लद्दाख के सांसद रहे बौद्ध धर्म गुरु कुशाक ने मंगोलिया व रूस में बौद्ध धर्म को मजबूत किया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 30 Apr 2019 02:37 PM (IST)Updated: Tue, 30 Apr 2019 02:37 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशी भी कुशाक बकुला की राह पर
Lok Sabha Election 2019: भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशी भी कुशाक बकुला की राह पर

जम्मू, राज्य ब्यूरो। अपना नया सांसद चुनने के लिए तैयारी कर रहे लद्दाखियों के दिलों में आज भी रिनपौचे कुशाक बकुला के लिए विशेष जगह है। दो बार लोकसभा के सांसद रहे कुशाक ने देश और लद्दाख को विदेशों में भी पहचान दिलवाई। वह मंगोलिया में बौद्ध धर्म गुरु के रूप में पूजे जाते हैं तो रूस के लोगों ने उन्हें आज तक याद रखा है। लद्दाख को यूनियन टेरेटरी बनाने की मांग के भी वह जनक थे।

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यही कारण है कि आज लद्दाख से सांसद बनने के लिए चुनाव मैदान में उतरे भाजपा उम्मीदवार जामियांग सीरिंग नाम्गयाल व कांग्रेस के रिगजिन स्पालबार भी रिनपौचे कुशाक बकुला में बहुत विश्वास रखते हैं। दोनों उम्मीदवार लद्दाख को यूनियन टेरेटरी बनाने की मांग को लेकर लोगों के बीच हैं। वे कुशाक के पदचिन्हों पर ही चल रहे हैं।

वर्ष 1967 से 1977 तक कांग्रेस की टिकट से लद्दाख के सांसद रहे बौद्ध धर्म गुरु कुशाक ने मंगोलिया व रूस में बौद्ध धर्म को मजबूत किया। लद्दाख के शाही परिवार के वंशज कुशाक को दलाई लामा ने बहुला को बौद्ध धर्म गुरुबकुला अरहट का 19वां अवतार बताया था।

देश की मजबूती में योगदान

कुशाक ने राजनीतिक रास्ता अपनाकर लद्दाख के विकास व देश की मजबूती की दिशा में सराहनीय योगदान दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें आधुनिक लद्दाख का रचियता बताया था तो आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने उन्हें आचार्य बकुला कहकर श्रद्धासुमन अर्पित किए थे। कुशाक जम्मू कश्मीर संविधान सभा के सदस्य, राज्यमंत्री, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य व दो बार सांसद रकर सराहनीय कार्य किया। उनका निधन 86 साल की आयु में 4 नवंबर 2003 को हुआ था।

मंगोलिया में भारत के राजदूत

कुशाक ने मंगोलिया व रूस में तिब्बतियों के वंशजों से जुड़े होने का सुबूत देकर धर्म का प्रचार प्रसार किया। वर्ष 1962 में कुशाक ने सेना को लद्दाख के पैथुब मठ को सैन्य अस्पताल में तब्दील करने की इजाजत दी थी। जब कश्मीर के एक वर्ग ने जनमत संग्रह का मुद्दा उठाया तो बकुला ने स्पष्ट कर दिया था कि लद्दाख भारत का हिस्सा रहेगा। देश में अनुसूचित, जाति, जनजाति के उत्थान के लिए बहुत काम किया। वर्ष 1988 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। बाद में लद्दाख के एयरपोर्ट को उन्हें समर्पित किया गया था।


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