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बेहतर हुए भाजपा-आजसू के रिश्ते, विधानसभा चुनाव में भी होगा तालमेल

लोकसभा चुनाव में दोनों दलों में बेहतर तालमेल दिखा। दोनों दलों ने इस दौरान एक-दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा। अब आगे विधानसभा चुनाव में वे तय रणनीति पर काम करेंगे।

By Alok ShahiEdited By: Published: Wed, 22 May 2019 07:15 AM (IST)Updated: Wed, 22 May 2019 07:17 AM (IST)
बेहतर हुए भाजपा-आजसू के रिश्ते, विधानसभा चुनाव में भी होगा तालमेल
बेहतर हुए भाजपा-आजसू के रिश्ते, विधानसभा चुनाव में भी होगा तालमेल

रांची, राज्य ब्यूरो। लगभग हरेक नीतिगत मामले में भाजपा से अलग राय रखने वाली आजसू पार्टी के सुर लोकसभा चुनाव में मतदान की समाप्ति के बाद बदल गए हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि छह माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भी दोनों दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। मंगलवार को आजसू पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं ने भी इसके स्पष्ट संकेत दिए। स्वयं आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने भी लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के सहयोग पर उत्साह दिखाए हैं।

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गौरतलब है कि भाजपा ने दरियादिली दिखाते हुए लोकसभा चुनाव में आजसू पार्टी की मांग पर सिटिंग सीट दी। गिरिडीह पर भाजपा का कब्जा रहते हुए पार्टी ने यह सीट गठबंधन धर्म के तहत आजसू पार्टी के लिए छोड़ दी। इस सीट से आजसू पार्टी ने मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी को खड़ा किया। चौधरी आजसू पार्टी में नंबर दो की पोजिशन रखते हैं और उन्होंने अपेक्षा के मुताबिक प्रतिद्वंद्वी झामुमो के प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी है।

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लोकसभा चुनाव के दौरान नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार अभियान में भाजपा और आजसू पार्टी के बीच तालमेल दिखा। भाजपा के प्रमुख नेताओं ने गिरिडीह में हर जगह सक्रियता बनाए रखी। स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी अपनी मौजूदगी दिखाई। संगठन का सक्रिय सहयोग भी आजसू पार्टी को मिला। आजसू पार्टी ने भी सहयोग में कोई कसर नहीं छोड़ी।

प्रभावी कुर्मी समुदाय पर पकड़ रखने वाले आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने हर जगह अपनी मौजूदगी दिखाई। वे प्रमुख प्रत्याशियों के नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान मौजूद रहे। इसके अलावा एनडीए की सभाओं में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। यही नहीं, उन्हें भाजपा आलाकमान से भी संपर्क बनाये रखा। भाजपा की अपेक्षा के मुताबिक आजसू पार्टी ने अपना सहयोग मुहैया कराया।

दरअसल भाजपा द्वारा खुले मन से आजसू पार्टी को स्वीकारने से ऐसी स्थिति पैदा हुई। इससे पूर्व नीतिगत मसलों को लेकर दोनों दलों के बीच रिश्ते मधुर नहीं थे। गोमिया और सिल्ली उपचुनाव का परिणाम पक्ष में नहीं आने से भी आजसू पार्टी नाराज थी। कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों दलों के बीच तालमेल नहीं हो पाएगा लेकिन भाजपा ने आजसू से तालमेल हमेशा कायम रखा।

यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में दोनों दलों के बीच गठबंधन में जहां कामयाबी मिली वहीं आजसू पार्टी को लोकसभा तक पहुंचने का एक मौका भी मिला। अगर इसमें सफलता मिली तो आजसू का क्षेत्रीय दलों में रुतबा बढ़ेगा और भाजपा के साथ उसका गठबंधन भी मजबूत होगा।

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