Lok Sabha Election 2019: रांची में भाजपा धर्मसंकट में, अपने कर रहे घेराबंदी
Lok Sabha Election 2019. टिकट कटने से नाराज निवर्तमान सांसद रामटहल चौधरी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे तो रांची में इस बार मुकाबला रोेचक होगा।
रांची से प्रदीप सिंह। Lok Sabha Election 2019 - हरिश्चंद्र सिंह मुंडा 12 पड़हा (बड़े गांवों) के राजा हैं। आदिवासियों की स्वशासन प्रणाली में अहम रोल अदा करने वाले इस शख्सियत ने साठ के दशक से लेकर मोदी लहर तक में हुए चुनाव को देखा है। नामकुम से सटे एक गांव में इमली के एक विशाल पेड़ के नीचे उनकी बैठकी जमी है। चर्चा हो रही है चुनाव पर।
देखते ही बड़ी गर्मजोशी से मिलने को आगे बढ़ते हैं। अपने साथियों से परिचय कराते हैं। चुनाव का हाल पूछते ही कहते हैं-जोड़ा बैल का भी जलवा हमने देखा है सर। अब फूल का जमाना है। उस वक्त जनसंघ का निशान था दीया। हमलोग खूब नारे लगाते थे। इस बार तो जनसंघ के जमाने से झंडा ढो रहे रामटहल चौधरी को भाजपा ने टिकट ही नहीं दिया है। देखिए, वे क्या करते हैं? सुना है चुनाव तो हर हाल में लड़ेंगे।
भाजपा के कब्जे वाली रांची संसदीय क्षेत्र में भाजपा ही सबसे ज्यादा धर्मसंकट में है। यही वजह है कि एनडीए गठबंधन की 14 में से 11 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का एलान हो चुका है लेकिन रांची पर अभी भी पेच फंसा हुआ है। संभव है कि यह जल्द स्पष्ट भी हो जाए लेकिन यह साफ हो चुका है कि निवर्तमान सांसद रामटहल चौधरी को पार्टी टिकट नहीं देगी। वजह है उनकी बढ़ती उम्र, लेकिन उन्होंने इस फार्मूले को नकार दिया है।
रामटहल आक्रामक तरीके से चुनाव मैदान में कूदने की घोषणा कर चुके हैं। कहते हैं-निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे हम। संगठन को पूरा जीवन दिया है हमने। बिना पूछे टिकट काट दिया तो इसका अंजाम भी भुगतना पड़ेगा पार्टी को।
रामटहल चौधरी के सख्त तेवर भाजपा की मुश्किल बढ़ाने को काफी है। इसकी वजह है रांची संसदीय क्षेत्र का जातीय समीकरण। महतो (कुड़मी) वोटर की बहुसंख्य आबादी के बूते ही रामटहल आक्रामक हैं।
भाजपा को उनके कद के बराबर का प्रत्याशी मिला तो चुनौती कुछ कम होगी। लेकिन ज्यादा नया प्रत्याशी जातीय समीकरण के आगे टिक नहीं पाएगा। बागी के तौर पर मैदान में रामटहल के उतरने का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को ही उठाना पड़ेगा। अरगोड़ा के कुमार सुमन कहते हैं-रामटहल का बागी तेवर कांग्र्रेस को फायदा पहुंचाएगा। सुबोधकांत सहाय की पैठ भीतर तक है। कोई नया प्रत्याशी इतनी जल्दी रांची संसदीय क्षेत्र की चौहद्दी को भी नहीं समझ पाएगा।
गांव और शहर के तेवर अलग-अलग
रांची संसदीय क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति विषम है। इलाका जमशेदपुर के कपाली तक सटा है। ईचागढ़, चांडिल, नीमडीह, सिल्ली का क्षेत्र पश्चिम बंगाल की सीमा को छूता है। मनोहर दास गोस्वामी 'गोसाईं राजाÓ हैं। इलाके के ज्यादातर गांवों में इनकी गहरी पैठ है। यहां पूजापाठ एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठान बगैर इनकी मौजूदगी के संपन्न नहीं होते। राजनीतिक बातों में इनकी ज्यादा रुचि नहीं। बहुत कुरेदने पर कहते हैं कि ऊपर से देखने में माहौल भले ही शांत दिख रहा है लेकिन भीतर ही भीतर लोग मन बना रहे हैं।
गांवों की स्थिति बहुत सुधरी नहीं है। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक हैं। लेकिन यह कहते हैं-ऊपर के लोग ठीक हैं। लेकिन नीचे के लोगों के कारण गुस्सा ज्यादा है। इन लोगों के कारण खेल बिगड़ सकता है। गांव के वोट सार्वजनिक तौर पर सलाह-मशविरे से तय होते हैं। इसमें ज्यादा दखलंदाजी नहीं होती। समीप खड़े मगन भी हां में हां मिलाते हैं। वहीं मौजूद बीएसएफ से रिटायर जवान कहते हैं-बहुत कुछ होना बाकी है। नेता लोग आएंगे तब न हमलोग उनसे पूछेंगे। चुनाव में एक बार चेहरा दिखता है जी उनका। हमलोग को ये लोग बुरबक समझता है।
कांग्रेस निकल गई प्रचार में आगे
कांग्रेस ने रांची संसदीय क्षेत्र से पूर्व केंद्रीयमंत्री सुबोधकांत सहाय को प्रत्याशी घोषित किया है। वे अपने टिकट को लेकर कभी संशय में नहीं रहे और काफी पहले से चुनावी रणनीति पर गंभीरता से अमल कर रहे हैं। उनका चुनावी वार रूम सक्रिय है और वे आम लोगों के मुद्दों पर भाजपा की घेराबंदी कर रहे हैं। वे विधानसभावार प्रभावी लोगों से मिल रहे हैं और लगातार उनकी बैठकों में भी शिरकत कर रहे हैं। सुबोधकांत सहाय का ज्यादा फोकस ग्र्रामीण क्षेत्र पर है।
2014 का चुनाव परिणाम
भाजपा -रामटहल चौधरी - कुल 448729 वोट।
कांग्रेस-सुबोधकांत सहाय- कुल 249426 वोट।