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Loksabha Election 2019: बस्तर में न्याय या राष्ट्रवाद नहीं वनाधिकार बना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिले बस्तर में पहले चरण पर मतदान है। यहां के आदिवासियों का भाजपा और कांग्रेस के मुद्दे से कोई लेना देना नहीं है। इनका प्रमुख चुनावी मुद्दा वनाधिकार है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 03:41 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 03:41 PM (IST)
Loksabha Election 2019: बस्तर में न्याय या राष्ट्रवाद नहीं वनाधिकार बना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा
Loksabha Election 2019: बस्तर में न्याय या राष्ट्रवाद नहीं वनाधिकार बना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा

रायपुर, अनिल मिश्रा। बस्तर में लोकसभा चुनाव के पहले वनाधिकार बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। भाजपा का राष्ट्रवाद या कांग्रेस का न्याय यहां काम नहीं कर रहा है। आदिवासी इलाकों में इस बात की चिंता साफ दिख रही है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बेदखल कर दिया तो कहां जाएंगे। फिलहाल भले ही कोर्ट ने बेदखली के अपने आदेश पर रोक लगा रखी है, मामला खत्म नहीं हुआ है।

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बस्तर में पहले चरण में 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपने-अपने मुद्दे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस छत्तीसगढ़ में किसानों की कर्ज माफी, धान का समर्थन मूल्य बढ़ाने की याद दिला रही है और लोकसभा में कांग्रेस की घोषणा न्याय योजना के तहत गरीबों को 72 हजार सालाना देने के वादे का प्रचार कर रही है।

दूसरी ओर भाजपा सर्जिकल स्ट्राइक और राष्ट्रवाद के साथ ही किसान सम्मान निधि की बात कर रही है। किसान सम्मान निधि को लेकर राजनीति भी हो रही है क्योंकि छत्तीसगढ़ में समय पर डाटा न भेजने से अधिकांश किसानों को सम्मान निधि की पहली किस्त नहीं मिल पाई। भाजपा और कांग्रेस के मुद्दों से अलग आदिवासी अपनी जमीन की चिंता में डूबे हैं। आदिवासी इलाकों में यही सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होने जा रहा है।

काबिज हैं पर अधिकार नहीं

बस्तर के सुदूरवर्ती गांवों में आदिवासियों की जमीनें पीढ़ी दर पीढ़ी बिना कागजात के हस्तांतरित होती आई हैं। कई गांवों में भूमि के पट्टे बने तो वह भी गांव के किसी एक ही व्यक्ति के नाम पर हैं जबकि खेती सारा गांव करता है। जमीन का बड़ा हिस्सा वनभूमि में शामिल है। 2006 में कानून आने के बाद आदिवासियों को वनाधिकार पट्टा मिलने की उम्मीद थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के बेदखली के आदेश के बाद लोग आशंकित हैं। सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश पर स्टे लगने से पहले आदिवासी इलाकों में जमकर विरोध प्रदर्शन भी हुआ था।

हमारी जमीन बच जाए बस

सुकमा जिले के नक्सल प्रभावित इलाके में लोग प्रत्याशियों को नहीं पहचानते। वे पार्टियों का चुनाव चिन्ह जानते हैं बस। आदिवासी कहते हैं कि जो भी पार्टी यह आश्वासन दे कि हमारी जमीन कोई नहीं लेगा उसे वोट देंगे। यहां प्रधानमंत्री मोदी की उज्जवला, आवास योजना की भी चर्चा है। हालांकि वनाधिकार ज्यादा बड़ा मुद्दा है।  


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