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Lok sabha Election 2019 : बीहड़ों से निकलकर 'बैंडिट क्वीन' ने जनमानस में बनाई पैठ

यमुना-चंबल के दुर्गम बीहड़ों में पली बढ़ी फूलन देवी ने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि बंदूक छोड़कर उनका सियासी सफर इतना शानदार भी हो सकता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 07 Apr 2019 08:02 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 10:24 AM (IST)
Lok sabha Election 2019 : बीहड़ों से निकलकर 'बैंडिट क्वीन' ने जनमानस में बनाई पैठ
Lok sabha Election 2019 : बीहड़ों से निकलकर 'बैंडिट क्वीन' ने जनमानस में बनाई पैठ

मीरजापुर [सतीश रघुवंशी]। चुनाव हर पांच वर्ष पर आते हैं और नए-नए प्रत्याशियों के चेहरे भी सामने आते हैं। मगर, इनमें से कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो वर्षों तक जनता के जेहन में बसे रहते हैं। इन्हीं में एक जनपद की सांसद रहीं दस्यु सुंदरी फूलन देवी का भी नाम है, जिन्होंने चुनाव जीत कर जनता के बीच अपनी अलग छवि बनाई। इसी बीच उनकी जीवनी पर बनी फिल्म 'बैंडिट क्वीन' प्रदर्शित हुई जिसने फूलन को जनपद के घर-घर में मशहूर कर दिया। आज भी लोग उस दौर की चर्चा में फूलन देवी के व्यक्तित्व का उदाहरण देना नहीं भूलते हैं। यमुना-चंबल के दुर्गम बीहड़ों में पली बढ़ी फूलन देवी ने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि बंदूक छोड़कर उनका सियासी सफर इतना शानदार भी हो सकता है। दस्यु सुंदरी फूलन देवी जब मीरजापुर से चुनाव लडऩे पहुंची तो उनकी पहचान बीहड़ की एक खूंखार डकैत से ज्यादा कुछ नहीं थी। उनके चर्चे, किस्से, किंवदंतियां गांवों में खूब सुनाई जाती थीं।

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गांवों में लगता था वीसीआर : जब वह 1996 में मीरजापुर-भदोही से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी बनीं तो यहां की जनता ने उन्हें जीत का तोहफा दिया। इसी बीच 26 जनवरी 1996 में फूलन की जीवनी पर आधारित बहुचर्चित फिल्म बैंडिट क्वीन रीलिज हुई और उनकी असल कहानी लोगों के बीच आई। उस समय सोशल मीडिया का जमाना नहीं था लेकिन गांवों में टीवी में वीसीआर लगाकर लोग बैंडिट क्वीन फिल्म देखते थे।

सहानुभूति की लहर पर सवार : इस फिल्म के रिलीज होने के बाद फूलन के साथ हुआ अत्याचार भी लोगों के सामने आया जिसकी वजह से जनता के बीच उनके प्रति सहानुभूति पैदा हुई। इस फिल्म के बाद फूलन लोगों के दिलों पर राज करने लगीं और उन्होंने सांसद होने के बाद भी कई ऐसे काम किए जिससे लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। इसी का नतीजा रहा कि वर्ष 1999 के चुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने उन्हें दोबारा प्रत्याशी घोषित किया। इस दौरान उन्होंने लगभग एक लाख मतों से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह मस्त को दोबारा शिकस्त दी। उनके संसदीय कार्यकाल के दौरान उनकी सहजता और सर्वसुलभ होने की चर्चा आज भी लोगों की जुबां पर है।

दो बार चुनी गईं सांसद : फूलन देवी मीरजापुर-भदोही से दो बार सांसद चुनी गईं। 80 के दशक में फूलन देवी का नाम शोले के गब्बर सिंह से भी ज्यादा मशहूर हुआ। 1983 में आत्मसमर्पण करने वाली फूलन 1994 तक जेल में रहीं। इसके बाद सपा ने मीरजापुर-भदोही लोकसभा सीट से उन्हें उतारा और वह जीतीं। उनके बारे में बताते हुए पुराने नेता कहते हैं कि वह स्वभाव से बहुत चिड़चिड़ी थीं लेकिन उनका भी एक मानवीय पक्ष रहा जो कभी-कभी झलकता था। सांसद बनने के बाद वे कई बार आम महिला की तरह अस्पतालों में पहुंच जातीं और वहां का निरीक्षण करतीं थीं।

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