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जब एक वोट से गिरी थी अटल की सरकार, जानें लोकतंत्र के पर्व में 'कीमत एक वोट की'

भारतीय राजनीति में कई ऐसे बड़े दिग्गज हैं जो एक वोट से चुनाव हार गए। 1917 में सरदार पटेल भी मात्र एक वोट से अहमदाबाद म्यूनसिपल कारपोरेशन का चुनाव हार गए थे।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 10:02 AM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 10:02 AM (IST)
जब एक वोट से गिरी थी अटल की सरकार, जानें लोकतंत्र के पर्व में 'कीमत एक वोट की'
जब एक वोट से गिरी थी अटल की सरकार, जानें लोकतंत्र के पर्व में 'कीमत एक वोट की'

संजय कुमार सिंह। रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी, बदहाली, मच्छर, डेंगू, मलेरिया, महामारी, अपराध, प्रदूषण, बिजली, पानी, सड़क... तमाम छोटी-बड़ी समस्याओं के लिए हम सिस्टम पर अंगुली उठाते आए हैं। क्या हमने कभी गौर किया कि यह सिस्टम आखिर है क्या चीज? जिस पर सारा दोष मढ़कर हम किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं, वह सिस्टम आखिर किसने बनाया है? कौन है इन सब झमेलों का दोषी? जनाब, ये सारा किया धरा किसी और का नहीं खुद आपका ही होता है। चौंकिए नहीं। असल कुसूरवार कोई और नहीं खुद आप होते हैं। जी हां, यह सिस्टम आप ही बनाते हैं। वह तंत्र जिसे हम लोकतंत्र कहते हैं, उसमें यदि खामियां दिखें तो समझ लीजिए कि कुसूरवार खुद आप हैं।

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यह तंत्र आपकी एक अंगुली के इशारे पर बनता और बिगड़ता है। लिहाजा, किसी और पर अंगुली उठाने से पहले खुद की जवाबदेही तय करें। जब अंगुली उठाएं तो पूरी जिम्मेदारी से उठाएं। सोच-समझ कर, सूझ-बूझ कर पूरी सर्तकता से उस बटन को दबाएं, जो हमारे अपने तंत्र यानी लोकतंत्र की बेहतरी तय करती हो। सोच-समझ कर वोट करें। अपने और देश के असल मुद्दों पर गौर करें। राजनीति को समझें। राजनीतिक दलों को जानें। उनकी नीति और नीयत पर मंथन करें। और फिर, सभी चुनें-सही चुनें।

एक वोट से गिरी अटल सरकार

मामला 1999 का है, जब तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने अपनी पार्टी को एनडीए से अलग कर लिया था। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार संकट में आ गई। उसे विश्वास मत साबित करने को मजबूर होना पड़ा था। दरअसल, 1998 के आम चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। गठबंधन से एनडीए ने केंद्र में सरकार बनाई थी। लगभग 13 महीने बाद अप्रैल, 1999 में जयललिता की पार्टी एआइएडीएमके ने वाजपेयी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। सरकार के अल्पमत में आने के बाद राष्ट्रपति ने सरकार को अपना बहुमत साबित करने के लिए कहा। 17 अप्रैल 1999 को जब लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई, सरकार एक वोट से हार गई और सरकार गिर गई। माना जाता है कि उस समय ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरधर गमांग ने सरकार के खिलाफ वोट दिया था। वह ठीक दो माह पहले, 18 फरवरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे, लेकिन उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया था।

एक वोट से टूटी जोशी की आस:

चुनाव में हार-जीत के अजब-गजब इतिहास में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी का भी नाम शुमार है। वह भी महज एक वोट से विधायक बनने से चूक गए थे। 2008 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में वह अपनी किस्मत आजमा रहे थे। उनके मुकाबले कल्याण सिंह चौहान मैदान में थे। उस समय जोशी के पास मुख्यमंत्री पद प्राप्त करने का अच्छा मौका था। लेकिन जब परिणाम आए तो चौहान को 62,216 और जोशी को 62,215 वोट मिले। इससे उनके सियासी सपने पर पानी फिर गया। बताया जाता है कि उनकी मां, पत्नी और चालक ने मतदान नहीं किया था। यदि इन सब ने मतदान किया होता तो जोशी अपने घर के मत से ही आसानी से चुनाव जीत जाते।

मोहाली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन:

स्थानीय चुनावों में भी प्रत्याशियों को एक वोट से हार का सामना करना पड़ा है। 2015 के मोहाली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में कांग्रेस के कुलविंदर कौर रांगी सिर्फ एक वोट से जीते थे। उनके सामने निर्मल कौर मैदान में थे।

2017 के बीएमसी चुनाव में उलटफेर:

2017 में मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) के चुनाव में वार्ड नंबर 220 पर कड़ा मुकाबला हुआ था। यह सीट पहले शिवसेना के सुरेंद्र बगलकर के खाते में गई। लेकिन बाद में जब भाजपा प्रत्याशी अतुल शाह की मांग पर दोबारा मतगणना हुई तो दोनों के मत बराबर निकले। दोनों को 5,946 वोट मिले। अंत में लॉटरी प्रक्रिया के तहत शाह को विजयी घोषित किया गया।

एआर कृष्णामूर्ति :

2004 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एआर कृष्णामूर्ति भी सिर्फ एक वोट से हार गए थे। वह जनता दल सेक्युलर से चुनाव मैदान में थे। जबकि उनके खिलाफ धु्रवनारायण कांग्रेस से थे। कृष्णामूर्ति को 40,751 वोट और उनके प्रतिद्वंद्वी धु्रवनारायण को 40,752 प्राप्त हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने चालक को वोट देने से रोक दिया था। यदि चालक ने वोट किया होता तो, तस्वीर कुछ दूसरी होती।

एंड्रयू जॉनसन:

एंड्रयू जॉनसन अमेरिका के 17वें राष्ट्रपति थे। उन पर कार्यालय अधिनियम के कार्यकाल के उल्लंघन का आरोप लगाया गया। उन्हें अमेरिकी सीनेट में दो-तिहाई वोट की जरूरत थी और उन्हें सिर्फ एक वोट के कारण बहुमत प्राप्त हुआ। वह पहले राष्ट्रपति थे जिन पर महाभियोग चला और वह बच गए।

कंजरवेटिव हेनरी ड्यूक:

ब्रिटेन के इतिहास में कंजरवेटिव हेनरी ड्यूक ने सबसे कम मार्जिन से जीत हासिल की थी। प्रारंभ में सेंट मौर कॉमन्स आगे चल रहे थे, लेकिन अंतिम परिणाम में हेनरी ड्यूक को 4777 और कॉमन्स को 4776 वोट मिले और इस प्रकार कंजरवेटिव एक वोट से हेनरी ड्यूक चुनाव में विजयी रहें।

रदरफोर्ड बी हेस:

1876 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में हेस और टिल्डेन दो उम्मीदवार खड़े हुए थे। शुरुआती चुनाव में टिल्डेन 2,50,000 के वोटों के अंतर से जीते थे। लेकिन जब अंतिम मतों की गिनती हुई तो हेस को 185 और टिल्डेन को 184 वोट मिले। जिससे हेस ने राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता। वह अमेरिका के 19वें राष्ट्रपति बने थे।

रान्डेल लूथी:

1994 में ब्रिटेन में रिपब्लिकन पार्टी के रैंडल और निर्दलीय लैरी कॉल में स्पीकर बनने के लिए चुनाव हुए। इसमें रांडेल लूथी सिर्फ एक वोट से जीतकर संसद के स्पीकर के रूप में चुने गए।

डेमोक्रेट चार्ल्स बी स्मिथ:

न्यूयॉर्क के लिए 1910 के कांग्रेस जिला चुनावों के दौरान स्मिथ को 20685, जबकि उनके प्रतिद्वंदी को 20684 वोट प्राप्त हुए। और सिर्फ एक वोट के अंतर से स्मिथ विजेता बन गए।

यह भी हुआ एक वोट से

फ्रांस में राजशाही खत्म :

लोकतंत्र पाने के लिए संघर्षों की तमाम गाथाएं इतिहास में दर्ज हैं। 1875 में एक वोट ने फ्रांस की सत्ता का स्वरूप ही बदल दिया। एक वोट की जीत से ही फ्रांस में नेपोलियन राजशाही की वापसी का फैसला खारिज हुआ था और लोकतंत्र बरकरार रहा।

हिटलर बना नाजी दल का मुखिया:

जर्मनी जिस तानाशाह के राज से होकर गुजरा, उसकी तानाशाही की बुनियाद भी एक ही वोट से रखी गई थी इसलिए एक वोट की ताकत को जर्मनी के लोगों से बेहतर शायद ही कोई जानता होगा। 1923 में एडॉल्फ हिटलर एक वोट के अंतर से ही नाजी दल के मुखिया बना था।

अमेरिका की भाषा बदली:

1776 में एक वोट की बदौलत ही अमेरिका में जर्मन की जगह अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला।

जब पटेल हारे एक वोट से

1917 में सरदार पटेल अहमदाबाद म्यूनसिपल कारपोरेशन का चुनाव मात्र एक वोट से हारे थे।

बढ़ जाएगा प्रति मतदाता खर्च:

एक अनुमान के मुताबिक, खर्च के मामले में इस बार का चुनाव अमेरिका के चुनाव को भी पीछे छोड़ सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव में आयोग ने प्रति मतदाता लगभग 46 रुपये से अधिक खर्च किया था। इस बार यह खर्च और बढ़ सकता है। चुनाव आयोग के अनुसार, 1952 का लोकसभा चुनाव सबसे सस्ता चुनाव था। इसमें हर मतदाता पर 60 पैसे खर्च हुए थे जबकि 2009 में हर मतदाता पर 12 रुपये का खर्च हुआ। 1952 के आम चुनावों में सरकार ने कुल 10.45 करोड़ रुपये खर्च किए जबकि 2009 के चुनावों में कुल 1483 करोड़ रुपये खर्च किए गए। 2004 के आम चुनाव कराने में सरकारी खजाने पर 1114 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा।

यह वोट सामान्य नहीं होता...

लोगों को अपने एक वोट की कीमत की ताकत जानने के लिए अपनी सोच बदलनी होगी। आपका एक वोट देश को नई गति दे सकता है। कभी-कभी हम सोचते हैं कि क्या हमारे एक वोट से कोई विधायक, सांसद, कोई पार्टी जीत जाएगी, कोई सरकार बन जाएगी, मुख्यमंत्री बन जाएगा, जरा सोचने का तरीका बदलिए। आपके एक वोट की ताकत क्या है इसका शायद आपको अंदाजा नहीं होगा, आपके एक वोट ने हिन्दुस्तान में हर वर्ष 90 हजार करोड़ की चोरी को रोकने का काम किया है। आपके एक वोट की ताकत देखिए, फर्क ऐसा होता है। यह किसी को राजगद्दी नहीं देता है, आपका वोट देश बदलता है। आपका वोट आपके सपनों को साकार करता है। आपका वोट आपके सपनों का भविष्य बनाता है। यह वोट सामान्य नहीं होता।

-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, नवंबर 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान रैली में

लोकतंत्र के लिए चार अनुरोध...

देश में संसदीय चुनाव की घोषणा होने के बाद पीएम मोदी ने एक-एक वोट की कीमत समझाई थी। उन्होंने ‘लोकतंत्र के लिए चार अनुरोध’ शीर्षक से ब्लॉग में लिखा कि मतदान हमारे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक है। मोदी ने लिखाहमारा वोट देश की विकास यात्रा में हमारी भागीदारी का संकल्प है। मताधिकार का प्रयोग कर हम देश के सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने में अपना योगदान देते हैं। प्रधानमंत्री ने ये चार अनुरोध जनता से किए।

1. वोटर कार्ड गर्व का विषय:

वोटर कार्ड होना हर एक के लिए गर्व का विषय हो। आपने अपने आपको वोटर के रूप में रजिस्टर नहीं किया है तो जल्द से जल्द इस कार्य को पूरा करें। 2019 का चुनाव बहुत ही खास है, क्योंकि 21वीं सदी में जन्म लेने वाले युवाओं को वोट करने का अवसर प्राप्त होगा। मुझे विश्वास है कि जिन युवाओं को वोट देने का अधिकार है और अब तक खुद को रजिस्टर नहीं कर पाए हैं, वे जल्द से जल्द ऐसा करेंगे और हमारे महान लोकतंत्र को और मजबूत करेंगे।

2. नाम की जांच मतदाता सूची में अच्छे से कर लें:

समय रहते एक बार फिर से मतदाता सूची को देखें और ये जांच लें कि उसमें आपका नाम दर्ज है या नहीं। आप अपने राज्य के इलेक्शन कमीशन की वेबसाइट पर जाकर भी मतदाता सूची में अपने नाम की जांच कर सकते हैं।

3. मतदान से पहले या फिर बाद में जाएं:

चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी है। आने वाले दिनों की योजना इस तरह बनाएं कि आप मतदान के दिन उपलब्ध हों। अगर आपने गर्मी की छुट्टी में बाहर जाने की योजना बनाई है तो मतदान से पहले या फिर बाद में जाएं। अगर आपके वोट डालने की जगह और आपके काम करने की जगह अलग-अलग है तो वोट डालने के लिए आप जा पाएं, यह अभी से सुनिश्चित करें। आपका एक वोट राष्ट्र का भविष्य तय करेगा, इसलिए जरूरत पड़े तो वोट डालने के लिए छुट्टी भी लें।

4. दूसरों को भी प्रेरित करें:

परिवार के सदस्यों और साथियों को भी मतदान के लिए प्रेरित करें। जरूरत पड़े तो मतदान के दिन वोट देने के लिए उन्हें साथ लेकर जाएं। मतदान का मतलब है, मजबूत लोकतंत्र और एक मजबूत लोकतंत्र से ही विकसित भारत बनेगा।

लोकतंत्र की आत्मा कोई मशीनी यंत्र नहीं है, जिसे उन्मूलन के द्वारा समायोजित किया जा सके। इसके लिये हृदय के परिवर्तन की आवश्यकता है, भाईचारे की भावना को बढ़ाने की आवश्यकता है।

-महात्मा गांधी


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