LokSabha Election 2019: तब चुनाव प्रचार में बैलगाड़ी ही थी शान की सवारी
परमेश्वर लाल बताते हैं कि उस समय कार्यकर्ता घर से सत्तू चूड़ा मूढ़ी नमक एवं गुड़ को पोटली बांधकर प्रचार के दौरान अपने साथ रखते थे। बैटरी वाली बाइक लेकर गीत गाते थे।
मधुपुर, बालमुकुंद शर्मा।1980 के दशक तक पार्टियां ऐसे लोगों को प्रत्याशी बनाती थीं, जो शिक्षित, सामाजिक और जन सरोकार से ताल्लुक रखता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब धनबल और प्रपंच वाले के साथ अंगूठा छाप लोगों को भी पार्टी प्रत्याशी बना रही है जो लोकतंत्र के लिए खतरा है। मैंने कोलकाता में पहली बार 1957 में कांग्रेस को वोट दिया था। तब प्रचार-प्रसार पैदल साइकिल एवं बैलगाड़ी से होता था। आवागमन का रास्ता नहीं होने के कारण प्रत्याशी गांव के चौपाल पर बैठकर मुखिया और गांव के सम्मानित को बुलाकर बात कर लिया करते थे। ये कहना है मधुपुर के प्रसिद्ध उद्योगपति सह समाजसेवी कुंडूबंगला मोहल्ला निवासी 83 वर्षीय परमेश्वर लाल गुटगुटिया का। जो पहले और अब के चुनाव में आए बदलाव को दैनिक जागरण से साझा कर रहे थे।
सत्तू और नमक की पोटली बांधकर जाते थे प्रचार करने : परमेश्वर लाल बताते हैं कि उस समय कार्यकर्ता घर से सत्तू, चूड़ा, मूढ़ी, नमक एवं गुड़ को पोटली बांधकर प्रचार के दौरान अपने साथ रखते थे। बैटरी वाली बाइक लेकर गीत गाते थे। उस समय बैनर, पोस्टर, होर्डिंग, कट आउट का प्रचलन नहीं के बराबर था। उस वक्त मैं कोलकाता में ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था। उस समय के चुनाव के दौर में तामझाम बिल्कुल ही नहीं था। परमेश्वर कहते हैं कि 1957 से लेकर अब तक सभी लोकसभा व विधानसभा के चुनावों में अपना मतदान सभी कामकाज छोड़कर दिया। उस वक्त के लोकसभा चुनाव में यही कोई कुल एक लाख रुपए से भी कम खर्च होते थे। जबकि विधानसभा चुनाव में 25 से 30 हजार रुपए खर्च होते थे। बताया कि कोलकाता के कल्याणी में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल का भाषण सुनने गए थे, जो बेहद ही प्रभावशाली था।
उस वक्त नहीं होता था व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप : वर्तमान समय के चुनावी क्रम पर नाराजगी जाहिर करते हुए परमेश्वर कहते हैं कि उस वक्त व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप नहीं चलता था। नेता और प्रत्याशी से लेकर कार्यकर्ता काफी शालीन स्वभाव के थे। पार्टी की नीति को लेकर नेता एवं कार्यकर्ता आम जनता के बीच में जाते थे। आज राजनीति में गिरावट क्षोभ का विषय है। परमेश्वर गुटगुटिया इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेई के समय हुए मतदान के बारे में खुलकर चर्चा करते हैं। शब्द बाण मर्यादित और शालीन रहती थी। लेकिन अब भाषा मर्यादा वाला नहीं रह गया।पहले के नेता निश्स्वार्थ भाव से जनता की सेवा करते थे। लेकिन वर्तमान में सभी नेता स्वार्थी हो गए है। चुनाव में पीठासीन पदाधिकारी के तौर पर कार्य किया। पहले लोग इतने जागरूक नहीं थे। जिससे मात्र 35 से 40 प्रतिशत ही मतदान मतदाता करते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है।