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लोकसभा चुनाव: महागठबंधन में पहले लिखी पटकथा पर सबने निभाई भूमिका, कई लगे ठिकाने

लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन में सीट बंटवारे के बाद जो पटकथा लिखी गई थी सबने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है। वहीं सीट बंटवारे में कई दिग्गज किनारे भी कर दिए गए। जानिए इस खबर में....

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 10:07 AM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 10:53 AM (IST)
लोकसभा चुनाव: महागठबंधन में पहले लिखी पटकथा पर सबने निभाई भूमिका, कई लगे ठिकाने
लोकसभा चुनाव: महागठबंधन में पहले लिखी पटकथा पर सबने निभाई भूमिका, कई लगे ठिकाने

पटना [अरुण अशेष]। महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो जाने के बाद कह सकते हैं कि इसके सभी घटक दल जय-जय की मुद्रा में हैं। कांग्रेस के साथ मिलकर राजद प्रमुख लालू यादव ने बड़ी होशियारी से सीटों का बंटवारा किया।

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सीट के साथ उम्मीदवार देने का पुराना फार्मूला एनडीए से अधिक महागठबंधन में कारगर हुआ। सबसे मुनाफे में कांग्रेस रही। पिछले चुनाव के नतीजे के आधार पर उसे 12 के बदले नौ सीटें दी गईं। सच यह है कि उसका 12 का कोटा पूरा कर दिया गया।

लालू प्रसाद ने नौ सीटें कांग्रेस को दी। तीन सीटें पार्टी नेताओं को दी। इनमें एक राज्यसभा की सीट भी है। उस इकलौती सीट की उम्मीद में कई कांग्रेसी खामोश हो गए। लोगों को पूरा प्रकरण अगर नाटकीय लग रहा है तो यह वाजिब ही है।

पटकथा के मुताबिक अभिनय हुआ। सबसे अपनी भूमिका का निर्वाह ढंग से किया। तभी तो खबरें बन जाती थी कि महागठबंधन बर्बाद हो रहा है। घटक दल के भोले कार्यकर्ता दुआ करने लगते थे कि सीटें भले ही एकाध कम हो जाएं, एकता में कोई कमी नहीं रहे। घटनाक्रम पर गौर करें तो पटकथा के  पहले से लिखे होने का सूत्र मिल जाएगा।

पूर्वी चंपारण से रालोसपा टिकट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आकाश और शिवहर से अहमद पटेल के खास फैसल की राजद से उम्मीदवारी नेताओं को दी गई सीटें हैं। आकाश का मामला पहले सलट गया। अखिलेश सिंह ने रालोसपा को कांग्रेस से जोडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

फैसल के मामले में पटकथा के अनुसार कौतुहल बनाकर रखा गया। अपने उम्मीदवार को लिए एक पात्र तेजप्रताप भी बने। हां, विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव अंत-अंत तक रामा सिंह के पक्ष में अड़े हुए थे। सूत्र बताते हैं कि अहमद पटेल की जुबान की इज्जत रखने के नाम पर फैसल को उम्मीदवार बनाया गया।

पटकथा में यह अंश भी शामिल था कि कांग्रेस को नौ सीटों पर राजी करने की जिम्मेवारी अखिलेश प्रसाद सिंह और अहमद पटेल लेंगे। दोनों की यह भूमिका भी शानदार रही। डॉक्टर मदन मोहन झा और सदानंद सिंह जैसे पुराने कांग्रेसी दर्शक दीर्घा में बैठकर इस या उस पात्र के पक्ष में ताली बजा रहे थे। कांग्रेस ही क्यों, दूसरे सहयोगी दलों के नेता की भूमिका ऐसी रही कि मूक दर्शक बने आम कार्यकर्ता उनकी नीयत पर संदेह नहीं कर पाए। 

कायदे से रालोसपा को चार सीटें ही मिली। पांचवी सीट कांग्रेस को देने की शर्त के साथ ही दी गई थी। यही हाल हम का हुआ। उसे तीन सीटें दी गईं। औरंगाबाद के उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद के नाम की सिफारिश राजद ने की थी। पार्टी के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। फिर उन्हें नालंदा के लिए उम्मीदवार चयन की छूट भी दी गई। यह अलग बात है कि वहां के उम्मीदवार भी राजद की पृष्ठभूमि के हैं।

अशोक आजाद राजद के पूर्व विधान परिषद सदस्य बादशाह प्रसाद आजाद के भतीजे हैं। उनके चयन में राजद की कोई भूमिका नहीं थी। ये जीतनराम मांझी की खोज हैं। वीआइपी का मामला जरूर थोड़ा अलग है। पार्टी के नेता मुकेश सहनी ने मर्जी से दो उम्मीदवार तय किए।

मुजफ्फरपुर के उम्मीदवार उनके रिश्तेदार बताए जाते हैं। जबकि मधुबनी के लिए हुई कड़ी प्रतिस्पर्धा में बद्री ऊर्फ राजू पूर्वे कामयाब हुए।  मधुबनी के लिए सहनी ने तेजस्वी उम्मीदवार के नाम पर विचार किया था। वैसे, मधुबनी के लिए घोषित वीआइपी उम्मीदवार भी राजद पृष्ठभूमि के हैं। 

निबट गए कई बड़े नेता

तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार घटक दलों के नेताओं ने अपने कांटे को ढंग से निकाल दिया। कांग्रेस में निखिल कुमार और डा. शकील अहमद के साथ नए बने कांग्रेसी कीर्ति आजाद ठिकाने लगा दिए गए। राजद के अली अशरफ फातमी और हम के महाचंद्र सिंह जैसे पुराने नेता भी ढेर हो गए। 


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