अमेठी के साथ वायनाड से क्यों चुनाव लड़ रहे हैं राहुल गांधी? ये हैं पांच मुख्य कारण
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी क्यों अपनी सुरक्षित सीट अमेठी के आलावा वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं? भाजपा तो हार का डर बता रही है। चलिए जानते हैं इसके पीछे की हकीकत...
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। अमेठी के सांसद और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट से नामांकन भरा है। ऐसे में आप भी जानना चाहेंगे कि आखिर कांग्रेस की सुरक्षित सीट मानी जाने वाली अमेठी के अलावा राहुल इस बार वायनाड से चुनाव क्यों लड़ रहे हैं? क्यों वह अमेठी और वायनाड दो सीटों पर दांव खेल रहे हैं? चलिए जानते हैं इसके पीछे कारण...
1. वामदलों पर सियासी वार
केरल वामदलों का गढ़ है और पश्चिम बंगाल का गढ़ छिन जाने के बाद केरल वामपंथियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बना हुआ है। वामदल सैद्धांतिक तौर पर भाजपा के साथ जाने से बचते हैं, लेकिन उन्हें कांग्रेस का साथ भी रास नहीं आता है। यूपीए-1 के दौरान समर्थन देकर बाद में वामदलों ने हाथ खींच भी लिए थे। ऐसे में वामदलों पर दबाव बनाने के लिए राहुल वायनाड की सीट पर दांव खेल रहे हैं। उनके नामांकन से वामपंथी खेमे में हड़कंप तो मचा है। इसीलिए वामदलों ने नामांकन से पहले कांग्रेस अध्यक्ष पर अपना सियासी हमला और भी तेज कर दिया था। केलपटृटा में भाकपा चुनाव कार्यालय में दैनिक जागरण से चर्चा करते हुए वाम नेता डी. राजा ने कहा कि राहुल को वायनाड से चुनाव लड़ाने का कांग्रेस का फैसला अदूरदर्शी ही नहीं बल्कि भाजपा की सांप्रदायिक सियासत के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करता है।
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2. दक्षिण में पार्टी को मजबूती देना
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केरल की 20 में से 8 सीटें मिली थीं। कर्नाटक की 28 में से 9 सीटों पर पार्टी को जीत मिली थी। तमिलनाडु में कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पायी थी। यानी दक्षिण भारत के तीन बड़े राज्यों की कुल 87 सीटों में से कांग्रेस की झोली में 17 सीटें आयी थीं। हालांकि, यह प्रदर्शन देश के बाकी हिस्सों से बेहतर ही कहा जाएगा, क्योंकि अन्य सभी राज्यों से मिलाकर कांग्रेस को सिर्फ 27 सीटें ही मिली थीं और कांग्रेस पार्टी 44 सीटों पर सिमट गई थी। ऐसे में राहुल गांधी अपनी पार्टी को दक्षिण भारत में मजबूती देने के लिए खुद वहां पहुंचे हैं।
3. राहुल की अपनी चिंता
जी हां, आपने सही पढ़ा... राहुल की अपनी चिंता। राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस महासचिव बनाया है और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी है। अमेठी इसी पूर्वी उत्तर प्रदेश में है। अगर राहुल गांधी अमेठी से एक बार फिर चुनाव जीत जाते हैं तो इसे प्रियंका गांधी की सफलता के तौर पर भी देखा जाएगा। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष चाहेंगे कि वह खुद अपने दम पर जीतकर आएं, ताकि कांग्रेस में जो लोग दबी जुबान उनकी जगह प्रियंका गांधी को नेतृत्व सौंपने की बात कहते हैं उन्हें जवाब दिया जा सके। वे चाहेंगे कि वायनाड से वह प्रियंका की मदद के बिना जीत हासिल करके अपने को साबित करें। वैसे प्रियंका पिछले चुनावों में भी राहुल गांधी के लिए अमेठी में प्रचार करती रही हैं।
4. अमेठी में स्मृति फैक्टर
पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा नेता स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी और राहुल गांधी एक लाख 7 हजार 903 वोटों से जीत गए थे। इसके बाद से ही स्मृति ईरानी लगातार अमेठी पर नजर गड़ाए हुए हैं। वह अमेठी के विकास को लेकर पिछले 5 साल से राहुल गांधी पर हमलावर हैं। राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने पर उन्होंने इसे अमेठी की जनता के साथ धोखा करार दिया है। भाजपा और स्मृति ईरानी का कहना है कि राहुल गांधी अमेठी में हार के डर से वायनाड भाग गए हैं।
5. अमेठी के लोगों का कांग्रेस पर कम होता भरोसा
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से सांसद हैं। अमेठी को कांग्रेस की परंपरागत और सुरक्षित सीट माना जाता है। Lok Sabha Election 2019 में भी वह वायनाड के अलावा अमेठी से मैदान में हैं। अमेठी में पिछली बार की तरह इस बार भी राहुल गांधी को कांग्रेस नेता स्मृति ईरानी टक्कर दे रही हैं। साल 2014 के आम चुनावों में स्मृति ने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। दोनों के बीच वोटों का अंतर सिर्फ 107903 था। जबकि 2009 के चुनाव में राहुल गांधी 3 लाख 70 हजार से ज्यादा मतों से जीते थे। 2004 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस वक्त राहुल गांधी दो लाख 90 हजार से ज्यादा वोटों से विजयी रहे थे। यही नहीं 1999 के चुनाव में सोनिया गांधी ने तीन लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से अमेठी में जीत दर्ज की थी।
ये है अमेठी सीट का इतिहास
अमेठी लोकसभा सीट का इतिहास देखें तो 1967 के लोकसभा चुनाव में यह अस्तित्व में आयी थी और उसी वक्त से यहां कांग्रेस का कब्जा है। इतने वर्षों के इतिहास में कुल 15 बार चुनाव हो चुके हैं और अब तक सिर्फ दो ही बार इस सीट पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है। आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप सिंह ने इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को यहां से मात दी थी। इसके बाद 1980 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने यह सीट हासिल कर ली। साल 1998 में भारतीय जनता पार्टी के डॉ. संजय सिंह ने कांग्रेस नेता सतीश शर्मा को पटखनी दी। 1980 से 81 तक संजय गांधी, 1981 से 1991 तक राजीव गांधी, 1991 से 1998 तक सतीश शर्मा, 1999 से 2004 तक सोनिया गांधी और 2004 से अब तक राहुल गांधी जैसे बड़े-बड़े कांग्रेस नेता इस सीट पर जीतते रहे हैं।