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Lok Sabha Election 2019: जब राय दा ने पेंशन को ना बोल टेंशन में डाल दिया बड़े-बड़े राजनीति के धुरंधरों को, जानिए

90 के दशक में लोकसभा में सांसदों के लिए वेतन और पेंशन का प्रस्ताव आया था। एके राय ने आपत्ति की। पश्चिम बंगाल के एक वामपंथी सांसद ने उनका साथ दिया वह भी उतनी गर्मजोशी से नहीं।

By mritunjayEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 12:51 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 12:51 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: जब राय दा ने पेंशन को ना बोल टेंशन में डाल दिया बड़े-बड़े राजनीति के धुरंधरों को, जानिए
Lok Sabha Election 2019: जब राय दा ने पेंशन को ना बोल टेंशन में डाल दिया बड़े-बड़े राजनीति के धुरंधरों को, जानिए

धनबाद, राजीव शुक्ला। राय दा यानी एके राय। उमर 84 साल। न आगे नाथ न पीछे पगहा। अटल बिहारी वाजपेयी की तरह विवाह नहीं किया। न जमीन न जायदाद न बैंक बैलेंस। अब बोलने की भी क्षमता नहीं। मगर जब बोलते थे तो उनकी गरज के आगे धनबाद के माफिया नतमस्तक हो जाते थे। क्योंकि वे जो बोलते थे, वही करते थे।

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90 के दशक में लोकसभा में सांसदों के लिए वेतन और पेंशन का प्रस्ताव आया था। एके राय ने आपत्ति की। पश्चिम बंगाल के एक वामपंथी सांसद ने उनका साथ दिया, वह भी उतनी गर्मजोशी से नहीं। एके राय ने तर्क दिया कि लोग सांसद को सेवा के लिए चुनते हैं, वे सेवक नहीं है जो उन्हें वेतन या पेंशन दिया जाय। एके राय की आपत्ति पर भी सदन में बहुमत की राय के आधार पर सांसदों को वेतन, फिर पेंशन देने पर सहमति बन गई। एके राय जुबान के पक्के। न वेतन लिया न पेंशन। पेंशन की राशि राष्ट्रपति कोष में डालने पर स्वीकृति दे दी। आज वे झरिया के नजदीक नुनूडीह में एक कॉमरेड के क्वार्टर में रहते हैं। बीमार हैं। जिन लोगों ने कभी ए के राय का सिर्फ भाषण सुना था, उनके कामकाज को देखा था। और कोई मतलब नहीं। वैसे नागरिक ए के राय के जीवन यापन के लिए आर्थिक सहयोग देते हैं, कुछ लोग उनकी सेवा करते हैं। 

धनबाद की पहचान कोयला माफिया की नगरी के नाते हैं। कोयलांचल में जब कोयला माफिया का बोलबाला था, उस दौर में ए के राय सांसद चुने गए थे। तीन बार। यह बात सत्य है कि ए के राय सार्वजनिक मंच से माओवादियों के कारनामे का समर्थन करते थे। फिर भी धनबाद के मजदूर उन्हें राजनीति के संत के नाते देखते हैं। संत जैसा जीवन है उनका। 15 वर्ष पहले पैरालिसिस का शिकार हो गए। मधुमेह के कारण सेहत गिरती गई। चेहरे पर तेज और समाजसेवा का जुनून आज भी उनकी आंखों में दिखता है। कमरे में एक तख्त, कुछ किताबें, अखबार और एक कोने में रखे हुए लाल झंडे ही जीवन भर की पूंजी हैं। जबसे सार्वजनिक जीवन में आए, तब से जमीन पर चटाई बिछा कर सोते रहे। खाने को कुछ भी मिल जाय, कोई आपत्ति नहीं। सिर्फ दही अनिवार्य। वामपंथ के प्रति इतना समर्पण कि आज बोल नहीं पाते, चलने में दिक्कत है। मगर जब कोई सामने दिख जाय तो खुद ब खुद लाल सलाम का इशारा करने के लिए हाथ उठ जाते हैं, बंधी हुई मुट्ठियों के साथ।  

माकपा नेताओं को कार में घूमने का किया था विरोधः एके राय ने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत माकपा से की थी। तब कुछेक नेता कार में घूमते थे। कुछ माकपा नेता भी कार की सवारी करते थे। एके राय ने अखबार में लेख लिख कर इस पर आपत्ति की। तर्क था कि जब बड़ी आबादी के पास न भोजन है न वस्त्र तो फिर वामपंथ को मानने वालों की यह जीवन शैली आदर्श नहीं हो सकती। एके राय को इस तथाकथित गलती के लिए पार्टी से नोटिस भेजी गई। ए के राय ने माकपा को अलविदा कह दिया। माक्र्सवादी समन्वय समिति बनाई। ऐसा दल जिसमें सभी दलों के बढिय़ा नेताओं के लिए जगह थी। एके राय की देखभाल करने वाले मासस कार्यकर्ता सबूर गोराई बताते हैं कि एके राय आदर्श पुरुष हैं। सांसद थे तब भी सामान्य डिब्बों में सफर करते थे। आदिवासियों के गांवों में जाते थे तो उनका हाल देख रो पड़ते थे। कहते थे कि इन गरीबों पर मुकदमा हो जाए तो पुलिस तुरंत पकड़ती है। माफिया के लिए वारंट निकलते हैं, तो भी धन बल के कारण आराम से घूमते हैं। 

बीमारी में भी कैडरों को छोड़ नहीं गए भाई के साथः सबूर गोराई कहते हैं, एके राय के तीन भाई और एक बहन है। पक्षाघात के कारण तबियत बहुत बिगड़ गई तो कोलकाता में रहने वाले भाई तापस राय आए। वे एके राय को कोलकाता ले जाना चाहते थे। दादा ने कैडरों को नहीं छोड़ा। कैडर भी उन पर जान छिड़कते हैं। रंजीत दाढ़ी बनाता है,  ललिता भोजन पकाती है, पुतुल और गुडिय़ा कपड़े धोती हैं। 

बंगलादेश में जन्म, यूनियन लीडर बने तो छोड़ दी नौकरीः कामरेड एके राय का जन्म 15 जून 1935 में बंगलादेश के राजशाही जिले के सापुरा गांव में हुआ था। 1961 में सिंदरी में भारत सरकार के उपक्रम पीडीआइएल (प्रोजेक्ट एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड) में नौकरी लगी। बतौर अभियंता। उसी कारखाने में मजदूरों के शोषण पर दुखी हो गए। नौकरी छोड़ दी। ट्रेड यूनियन बना लिया। ट्रेड यूनियन से सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने के बाद 1977, 80 व 89 में धनबाद के सांसद रहे। 1967, 69 व 72 में सिंदरी से विधायक रहे। ए के राय अब सियासत में कोई दखल नहीं रखते। फिर भी शिबू सोरेन, हेमंत, सोरेन, बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा समेत झारखंड के सारे बड़े नेता उनसे मिजाजपुर्सी करने और आशीर्वाद लेने आते रहते हैं। 


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