पटना [अरुण अशेष]। बिहार में राहुल गांधी की रैली के बाद बड़ा सवाल यह हैकि आखिर इससे कांग्रेस को क्या मिलेगा? इसका सही जवाब चुनाव के बाद मिलेगा, लेकिन उससे भी बड़ी चीज पार्टी को रैली की तैयारी के दौरान ही हाथ लग गई। वह है- एकजुटता। इतिहास गवाह है कि बिहार में कांग्रेस आपसी सिर फुटौव्वल नीति के कारण तबाह होती चली गई थी। ऐसे में यह एकजुटता बड़ी उपलब्धि है।
राज्य में कांग्रेस की सत्ता आपसी सिर फुटौव्वल के चलते गई थी। भागलपुर दंगा याद होगा। उस समय दो पूर्व मुख्यमंत्री उलझ गए थे। एक का आरोप था कि सत्ता से बेदखल करने के लिए दूसरे ने दंगा करवाया। खैर, संयोग से आज दोनों धरती पर नहीं हैं। मगर, बाद के दिनों में कांग्रेस के नेताओं ने सिर फुटौव्वल नीति का पालन पूरी निष्ठा से किया। सत्ता चली गई थी। प्रदेश अध्यक्ष का पद बचा था। सभी प्रदेश अध्यक्षों को जल्द ही विक्षुब्ध गुट का सामना करना पड़ता था। बेचारों को विरोधियों से लडऩे की कभी फुरसत ही नहीं मिली। आपस में लड़े। खप गए।
यह पहला मौका था, जब कांग्रेसियों ने एक होकर रैली की तैयारी की। प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक उनकी एकता दिखी। मुख्यालय स्तर पर नेतृत्व के दो केंद्र हैं। प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा और अभियान समिति के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह इनका नेतृत्व करते हैं। पहले का दौर रहता तो दोनोंं समानान्तर चलते। कहीं मेल नहीं होता। लेकिन रैली में दोनों साथ चले। एक दूसरे के इलाके में दखल नहीं दिया।
विधायक अनंत सिंह की अति सक्रियता को लेकर विवाद हो सकता था। इसे खूबसूरती से टाल दिया गया। इसका कुछ श्रेय कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल को भी दिया जा सकता है। उन्होंने समन्वयक की भूमिका ठीक ढंग से निभाई।
तीन राज्यों में जीत के जोश से कांग्रेसियों में बुरे दिन खत्म होने की उम्मीद भी जगी है। यही कारण है कि सभी विधायक और विधान परिषद सदस्य जी-जान से भीड़ जुटाओ अभियान में लग गए थे। खर्च करने में भी कंजूसी नहीं की। रैली में आने वालों की सुविधा का पूरा ख्याल रखा। इनके अलावा अगले लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दावेदारों ने भी रैली की कामयाबी में दिलचस्पी दिखाई।
कांग्रेस के लिए रैली का यही संदेश है कि एकजुटता कायम रही तो आगे भी कामयाबी मिलेगी। वरना, आपस में लड़कर तबाह होने का पुराना अनुभव तो है ही।

Edited By: Amit Alok