लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 15 राज्य की 117 सीट पर तय होगा दिग्गजों का भविष्य
यह 2019 के लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा और हाई प्रोफाइल चरण भी है। सबसे ज्यादा 117 सीटों पर इस चरण में वोट पड़ेंगे। भाजपा अध्यक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष भी मैदान में हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 23 अप्रैल यानी मंगलवार को तीसरे चरण के लिए 15 राज्यों की 117 लोकसभा सीटों के लिए मतदान हो रहा है। तीसरा चरण पूरा होते-होते 303 सीटों पर मतदान संपन्न हो चुका होगा। कुल मिलाकर इस चरण के पूरा होते ही राजनीतिक पार्टियां अपना समीकरण सटीक बिठाने की जुगत में भिड़ जाएंगी। यह 2019 के लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा और हाई प्रोफाइल चरण भी है। सबसे ज्यादा 117 सीटों पर इस चरण में वोट पड़ेंगे। हाईप्रोफाइल इसलिए क्योंकि भाजपा अध्यक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष भी मैदान में हैं। अमित शाह गुजरात के गांधीनगर से चुनाव लड़ रहे हैं तो राहुल गांधी केरल के वायनाड से। शाह पहली बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं। फिलहाल वह राज्यसभा सदस्य हैं। इसके अलावा मुलायम सिंह मैनपुरी से, जयाप्रदा रामपुर से, वरुण गांधी पीलीभीत से, महबूबा मुफ्ती अनंतनाग से अपना संसदीय भाग्य आजमा रही हैं। इसमें वो सीटें भी शामिल हैं जिनपर किन्हीं वजहों से मतदान पूर्व में रद कर दिया गया था।
उप्र: गठबंधन का इम्तिहान
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में आयोग ने उप्र में अपना दायरा बढ़ाया है। पहले के दो चरण में जहां आठ-आठ सीटों पर वोट पड़े थे, वहीं इस बार दस संसदीय क्षेत्रों में मतदाता प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे। यह चरण इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें कई बड़े चेहरे हैं, सपा में रिश्तों की खींचतान है और आजम व जयाप्रदा की रोचक लड़ाई भी है। तीसरे चरण में गठबंधन की असली ताकत का भी इम्तिहान है। अपनी 24 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर मायावती और मुलायम ने एक मंच पर आकर अपनी ताकत का अहसास भी कराया है। मैनपुरी में यह गठजोड़ मुलायम को कितना आगे ले जाएगा, यह देखने की बात होगी। इसके साथ ही रोचक मुकाबला फीरोजाबाद में भी देखने को मिलेगा जहां भतीजे अक्षय यादव के सामने चाचा शिवपाल होंगे। सुलतानपुर से सीट बदलकर पीलीभीत से लड़ रहे वरुण गांधी पर भी सबकी निगाहें होंगी जिनके सामने अपनी मां मेनका गांधी की प्रतिष्ठा बचाए रखने का सवाल है। रामपुर में दो बार सांसद रहीं जयाप्रदा पर आजम के अमर्यादित हमलों ने चुनाव को भावनात्मक रंग दिया है।
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बरेली में 2009 को छोड़कर 1989 से 2014 तक जीते केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार के सामने आठवीं बार जीतने की चुनौती है तो एक तिहाई से अधिक मुस्लिम वोटर वाले मुरादाबाद में भाजपा के कुंवर सर्वेश सिंह, सपा के एसटी हसन और कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। एक बड़ी लड़ाई संभल में भी देखने को मिलेगी, जहां शफीकुर्रहमान बसपा से गठबंधन के साथ फिर मैदान में है। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के घर एटा में उनके पुत्र राजवीर सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। बदायूं में मुलायम के भतीजे धर्मेन्द्र यादव के खिलाफ पूर्व सांसद सलीम शेरवानी कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हैं। यहां भाजपा ने प्रदेश के मंत्री स्वामीप्रसाद मौर्य की पुत्री संघमित्रा मौर्य को मैदान में उतारा है। आंवला संसदीय सीट पर भाजपा के धर्मेंद्र कश्यप के सामने पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है।
बिहार: शरद के लिए परीक्षा
बिहार की पांच सीटों पर 23 अप्रैल को तीसरा महामुकाबला है। इस चरण के चुनाव में सबसे चर्चित सीट है मधेपुरा। यहां लालटेन थामकर शरद यादव अपने राजनीतिक जीवन का एक अलग लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके मुकाबले हैं पप्पू यादव। राजग ने भी दिनेश चंद्र यादव को मैदान में उतारा है। तीसरे दौर में झंझारपुर, सुपौल, अररिया, मधेपुरा और खगड़िया में मतदान होना है। लोकसभा चुनाव के लिए तीसरे चरण के चुनाव प्रचार का शोर रविवार शाम थम गया। सोमवार को प्रत्याशी मतदाताओं के घर-घर जाकर समर्थन की अपील करेंगे। तीसरे चरण में कुल 82 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं। इसमें झंझारपुर में 17, सुपौल में 20, खगड़िया में 20, अररिया में 12 और मधेपुरा में 13 प्रत्याशी हैं। पांच संसदीय क्षेत्रों में कुल मतदाताओं की संख्या 88 लाख 21 हजार 956 है। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 46 लाख 22 हजार 718 है जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 42 लाख 8 हजार 986 है। वहीं थर्ड जेंडर की संख्या 252 है।
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तीसरे चरण में मधेपुरा में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन रही है। इस सीट पर राजद के शरद यादव, जदयू के दिनेश चंद्र यादव और मौजूदा सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के बीच मुकाबला में हैं। बाकी चार सीटों पर आमने-सामने की लड़ाई की स्थिति है। झंझारपुर में जदयू के रामप्रीत मंडल और राजद के गुलाब यादव के बीच टक्कर होगी। हालांकि निर्दलीय देवेंद्र प्रसाद यादव भी मुकाबले में तीसरा कोण बनाने की कोशिश में हैं। सुपौल में जदयू के दिलेश्व कामत और कांग्रेस की रंजीत रंजन आमने सामने होंगी।
जम्मू-कश्मीर: कांटे का मुकाबला
दक्षिण कश्मीर की अनंतनाग-पुलवामा संसदीय सीट पर देशभर की निगाहें टिकी हुई हैं। यहां सुरक्षा कारणों से तीन चरणों में मतदान होना है। अनतंनाग- पुलवामा आतंकवाद का गढ़ माने जाते हैं। कुल 18 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इनमें पीडीपी से महबूबा मुफ्ती, कांग्रेस से गुलाम अहमद मीर, नेशनल कांफ्रेंस से हसनैन मसूदी और भाजपा से सोफी युसूफ शामिल हैं। मुख्य मुकाबला पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के बीच है। तीनों राष्ट्रीय मुद्दों सेल्फ रूल, स्वायत्तता, 370, 35ए को खूब उछाल रहे हैं।
2014 के संसदीय चुनाव में 28.84 फीसद मतदान हुआ था। इसमें पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने नेशनल कांफ्रेंस के मिर्जा महबूब बेग को 65,417 मतों से हराया था। तब कांग्रेस ने उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं उतारा था। इस बार हालात अलग है। इस बार कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष मीर को उम्मीदवार बनाया है जोकि काफी समय से इस संसदीय क्षेत्र में सक्रिय हैं। 2016 में महबूबा मुफ्ती के त्यागपत्र देने के बाद से खाली पड़ी है। इस सीट पर उपचुनाव की अधिसूचना जारी हुई थी, लेकिन मतदान से कुछ दिन पहले ही सुरक्षा कारणों से चुनाव रद कर दिए थे। 23 अप्रैल को अनंतनाग, 29 अप्रैल को कुलगाम और छह मई को शोपियां-पुलवामा में मतदान होगा। यहां कुल मतदाता 13,97,272 हैं। शनिवार को अनतंनाग में अद्र्धसैनिक बलों की 100 और कंपनियां पहुंच गई हैं। 80 कंपनियां अतिरिक्त तैनात करने की योजना है।
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अल्पसंख्यक खेवनहार
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में बंगाल की पांच से चार सीटों पर अल्पसंख्यक मतदाता स्पष्ट रूप से निर्णायक भूमिका में हैं, जबकि बालुरघाट सीट पर भी उनका मत जीत हार का अंतर बन सकता है। पांचों सीट पर तृणमूल, भाजपा, कांग्रेस, वाममोर्चा व अन्य दलों व निर्दलीय समेत कुल 61 प्रत्याशियों में से 11 प्रत्याशी करोड़पति हैं। सत्ताधारी दल तृणमूल के लिए पांचों सीट आसान नहीं रही है। 2014 में जीती बालुरघाट सीट को छोड़ कोई सीट टीएमसी के पास नहीं है। कांग्रेसी दिग्गज एबीए गनीखान चौधरी का गढ़ रहा मालदा 2008 में दो लोकसभा सीट उत्तर मालदा व दक्षिण मालदा में विभक्त हुआ। उत्तर मालदा से एबीए की भांजी मौसम नूर व दक्षिण से उनके भाई अबू हासेम खान चौधरी कांग्रेस के सांसद चुने गए थे। लेकिन इस बार मौसम नूर ने पाला बदल लिया है। वह मालदा उत्तर से तृणमूल की प्रत्याशी हैं। इधर कांग्रेस की पारंपरिक सीट जंगीपुर से पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। वह यहां के वर्तमान सांसद भी है।
भाजपा के संबित पात्रा पर सबकी नजरें
तीसरे चरण में ओडिशा की छह संसदीय सीट संबलपुर, क्योंझर, ढेंकानाल, पुरी, कटक व भुवनेश्वर की सीटें शामिल है। पुरी लोकसभा सीट पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा पहली बार संसदीय चळ्नाव में ताल ठोक रहे हैं। बीजद ने वर्तमान सांसद पिनाकी मिश्र को पुन: अपना प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने सत्यप्रकाश नायक को मैदान में उतारा है। संबलपुर में भाजपा ने नीतिश गंगदेव को अपना उम्मीदवार बनाया है, बीजद ने नलिनीकांत प्रधान को तो कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शरत पटनायक को। क्योंझर में भाजपा के अनंत नायक, बीजू जनता दल की युवा नेता चंद्राणी मुर्मू तथा कांग्रेस के मोहन कुमार हेम्ब्रम मैदान में है। ढेंकानाल में बीजद के महेश साहू, भाजपा के रुद्रनारायण पाणि व कांग्रेस के अनुभवी नेता राजा कामाख्याप्रसाद सिंहदेव मैदान में है।
123 प्रत्याशी दिखा रहे दम
छत्तीसगढ़ की सात लोकसभा सीटों के लिए कुल 123 प्रत्याशी मैदान में है। इनके भाग्य का फैसला करीब सवा करोड़ वोटर करेंगे। इसके साथ ही राज्य के सभी 11 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। बस्तर समेत चार सीटों पर पहले और दूसरे चरण में मतदान हो चुका है। दुर्ग सीट कांग्रेस की प्रतिष्ठा से जुड़ी है क्योंकि 2014 में राज्य की 11 में से एक यही एक मात्र सीट थी जिस पर कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू विजयी हुए थे। वर्तमान में ताम्रध्वज प्रदेश सरकार के गृहमंत्री हैं। इसी क्षेत्र से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व एक अन्य मंत्री रुद्रगुरु भी चुन कर विधानसभा में पहुंचे हैं। जबकि सरगुजा संभाग की सभी विधानसभा सीटें कांग्रेस ने जीती थी। इस पर बार लोकसभा की सीटों को भाजपा से छीनने की चुनौती है। यहां मंत्री टीएस सिंहदेव की साख की भी परीक्षा होगी। वहीं जांजगीर में बसपा लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने का जोर लगा रही है।
ओडिशा में बीजद के गढ़ में भाजपा की दस्तक
बीजू जनता दल का गढ़ मानी जाने वाली ओडिशा की कटक लोकसभा सीट इस बार सबकी नजरों में है। बीजद की अंदरूनी उठा- पटक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता से मिल रही ताकत से राज्य में तेजी से विपक्ष की भूमिका में उतरी भाजपा ने इस सीट पर चुनाव को काफी दिलचस्प बना दिया है। मुकाबला यहां से पांच बार से लगातार सांसद रहे भृतहरि महताब और भाजपा के उम्मीदवार ओडिशा के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश मिश्रा के बीच है।
साढ़े तेरह लाख से अधिक वोटर वाले इस संसदीय क्षेत्र पर 1998 से बीजू जनता दल का कब्जा है। तभी से महताब लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। लेकिन इस बार नवीन पटनायक के नेतृत्व में चल रही राज्य सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार बढ़ रही लोकप्रियता महताब को कड़ी चुनौती दे रही है। स्थानीय और लोकसभा के लिए अलग अलग उम्मीदवारों को वोट देने की सोच के साथ दिख रहा बदलाव भी इस चुनाव में नए समीकरण बना रहा है।
पिछले पांच लोकसभा चुनावों में महताब को यहां से जीतने में कभी किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है। 2014 के चुनाव में उन्होने अपने निकटकतम कांग्रेसी उम्मीदवार अपराजिता मोहंती को तीन लाख वोटों से अधिक के बड़े अंतर से हराया था। महताब को 5,26,085 वोट मिले थे। बीजू जनता दल के जन्म के बाद से ही इस सीट पर पार्टी का वोट प्रतिशत 50 फीसद से अधिक का बना हुआ है। महताब की अपनी लोकप्रियता भी क्षेत्र में उनके कद को मजबूती देती है। लेकिन इस बार स्थितियां कुछ अलग हैं। बीजू जनता दल के सूत्र बताते हैं कि महताब की उम्मीदवारी ही इस बार खतरे में थी। मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख नवीन पटनायक के साथ उनके संबंध पहले जैसे नहीं रहे हैं। लेकिन अंतिम वक्त तक कटक के लिए बीजद में कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं मिलने की वजह से पार्टी को अंतत: महताब के साथ ही चुनाव मैदान में उतरना पड़ा है। इसके विपरीत ओडिशा में भाजपा का ग्राफ निरंतर बढ़ रहा है। कटक में किराना की दुकान चलाने वाले सुरेश पांडा मानते हैं कि मोदी इस बार के चुनाव में ओडिशा में भी बड़ा फैक्टर हैं। पिछले सप्ताह भुवनेश्वर में हुई प्रधानमंत्री की सभा ने भी भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में नया उत्साह भरा है।
कटक संसदीय क्षेत्र में आने वाली सातों विधानसभा सीटों पर बीजद उम्मीदवारों का चयन भी पार्टी की संभावनाओं के लिए चुनौती पैदा कर रहा है। बांकी और चौदर-कटक विधानसभा सीट पर चिटफंड घोटाले के आरोपियों को टिकट मिलने को लेकर लोगों में काफी नाराजगी है। भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाकर इस मुद्दे को गरम बनाये हुए है। 85 फीसद से अधिक की साक्षरता दर वाली इस संसदीय सीट के मतदाता मुद्दों की समझ तो रखते ही हैं, राज्य और केंद्र के लिए अलग अलग उम्मीदवार चुनने की धारणा भी यहां जोर पकड़ रही है। हालांकि बीजद के चुनाव अभियान का काम देखने वाले सुजीत कुमार दावा करते हैं कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की लोकप्रियता और गरीबों को लेकर बनायी गई उनकी योजनाएं अंतत: महताब समेत पार्टी के सभी प्रत्याशियों के लिए मददगार साबित होगी।
खतरे में दिख रही पवार की सल्तनत
जिस बारामती लोकसभा संसदीय सीट के बारे में कभी शरद पवार परिवार के अलावा किसी और का नाम ख्वाब में भी नहीं आता था, वह आज खतरे में दिख रही है। यही नहीं, पड़ोस के मावल लोकसभा क्षेत्र से लड़ रही पवार परिवार की तीसरी पीढ़ी, यानी अजीत पवार के पुत्र पार्थ की स्थिति भी अच्छी नहीं है। बारामती से फिलहाल शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले दूसरी बार सांसद हैं। 1957 से अब तक यहां से सिर्फ दो बार गैरकांग्रेसी सांसद चुने गए हैं। बाकी कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। 1984 से अब तक सात बार स्वयं शरद पवार, एक बार उनके भतीजे अजीत पवार और दो बार पुत्री सुप्रिया सुले जीत चुकी हैं। लेकिन पवार परिवार के लिए खतरे की घंटी 2014 के लोकसभा चुनाव में ही बज गई थी। जब सुप्रिया की जीत का अंतर 2009 के 3,36,831 से घटकर पिछले चुनाव में करीब 80,000 पर आ गया था। भाजपा का मानना है कि तब यदि उसके सहयोगी दल आरएसपी के नेता महादेव जानकर अपने दल के चुनाव निशान पर लड़ने की जिद न कर कमल निशान पर लड़े होते तो प्रबल मोदी लहर में पिछली बार ही सुप्रिया सुले हार गई होतीं।
इस बार आरएसपी ने गलती सुधार ली है। इस बार कमल निशान पर ही आरएसपी की कंचन कुल सुप्रिया को चुनौती दे रही हैं। कंचन के पति इसी क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाले एक विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। बारामती लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाले छह में से तीन विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के विधायक हैं। जातीय गणित भी कंचन कुल के पक्ष में है। हालांकि सुप्रिया सुले न सिर्फ अपने क्षेत्र में लोगों के लिए उपलब्ध रहती हैं, बल्कि संसद में भी उनकी आवाज सुनाई देती है। इसके बावजूद लंबे समय से उनके परिवार के पास ही यह सीट होने के कारण सत्ताविरोधी लहर का भी सामना उन्हें करना पड़ सकता है। इस क्षेत्र में कांग्रेस का भरपूर सहयोग शरद के मिल रहा है।