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माकपा को सियासी टीस दे रही सबरीमाला की आस्था पर चोट, लोकसभा चुनाव 2019 में दिखा था असर

कांग्रेस और भाजपा के बढ़ते हमलों को थामने के लिए विजयन अब कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पुनर्विचार याचिका पर फैसला देने के बाद सभी राजनीतिक दलों और लोगों से राय मशविरा कर सहमति से सबरीमाला पर वह आगे कदम उठाएंगे।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 25 Mar 2021 10:49 PM (IST)Updated: Thu, 25 Mar 2021 10:49 PM (IST)
माकपा को सियासी टीस दे रही सबरीमाला की आस्था पर चोट, लोकसभा चुनाव 2019 में दिखा था असर
सबरीमाला मंदिर की धार्मिक आस्था पर चोट का जख्म

संजय मिश्र, सबरीमाला। सबरीमाला मंदिर की धार्मिक आस्था पर चोट का जख्म केरल के चुनाव में सत्ताधारी वामपंथी गठबंधन को गंभीर टीस देता नजर आ रहा है। सूबे में चुनाव अभियान का पारा चढ़ने के साथ ही सबरीमाला बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है और एलडीएफ सरकार इस मोर्चे पर घिरती नजर आ रही है। दिलचस्प यह भी है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश पर निषेध की आस्थागत परंपरा का पुरजोर समर्थन करते हुए माकपा पर आक्रामक हमले कर रहे हैं। 

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केरल के चुनाव में सबरीमाला मुद्दा बना अहम, कांग्रेस और भाजपा इस मुद्दे पर दिख रहे एकमत 

कांग्रेस ने महिलाओं के प्रवेश पर निषेध को लेकर जहां प्रस्तावित कानून का मसौदा जारी कर रखा है वहीं, भाजपा ने भी अब अपने चुनाव संकल्प में कानून बनाने का वादा किया है। सबरीमाला पर इस दोहरे सियासी वार ने एलडीएफ की अगुवा माकपा को सियासी बैकफुट पर ला खड़ा किया है। इसीलिए अभी तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल कराने की बात कहने वाले मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के सुर भी रक्षात्मक हो गए हैं। 

दोतरफा आक्रामक घेरेबंदी से बैकफुट पर एलडीएफ, माकपा की चुनावी चिंता बढ़ी 

कांग्रेस और भाजपा के बढ़ते हमलों को थामने के लिए विजयन अब कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पुनर्विचार याचिका पर फैसला देने के बाद सभी राजनीतिक दलों और लोगों से राय मशविरा कर सहमति से सबरीमाला पर वह आगे कदम उठाएंगे। सबरीमाला मंदिर में विशेष आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश रोकने के लिए प्रस्तावित कानून का मसौदा जारी कर चुकी कांग्रेस इसे विजयन का धोखा बता रही है। कांग्रेस का कहना है कि माकपा के नेता केवल चुनाव तक ऐसी गोल-मोल बात कर रहे हैं, मगर असलियत में विजयन और माकपा महासचिव सीताराम येचुरी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हैं।

मुद्दे को बार-बार उठा रही कांग्रेस

केरल में कांग्रेस के सबसे दिग्गज नेता पूर्व रक्षामंत्री एके एंटनी ने तो माकपा पर सीधा हमला करते हुए कहा कि जब लोग चुनाव में वोट डालने जाएंगे, तब सबरीमाला में पुलिस के सहारे दो महिलाओं को मंदिर में प्रवेश दिलाने का दृश्य नहीं भूलेंगे और अयप्पा के भक्त विजयन को कभी माफ नहीं करेंगे। कांग्रेस के पूर्व सीएम ओमान चांडी और नेता विपक्ष रमेश चेन्नीथला से लेकर पार्टी के तमाम छोटे-बड़े नेता सबरीमाला की आस्था पर चोट को हर जगह बार-बार उठा रहे हैं और माकपा के लिए इसका ठोस जवाब देना मुश्किल हो रहा है। 

भाजपा ने भी घेरेबंदी कड़ी की

केरल की राजनीति में तीसरे विकल्प की जगह तलाश रही भाजपा भी सबरीमाला पर माकपा की घेरेबंदी में कसर नहीं छोड़ रही। साथ ही, पार्टी ने अपने चुनावी वादे के सबसे अहम संकल्पों में सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर निषेध की परंपरा कायम रखने का एलान किया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को कोच्चि के अपने चुनावी रोड शो के दौरान साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबरीमाला में माकपा सरकार ने जिस तरह का अहंकार दिखाया, उसका केरल के चुनाव पर असर तो पड़ेगा ही। 

मंत्री जता चुके हैं खेद

माकपा सरकार के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कार्यान्वयन की हुई कोशिश के दौरान 2018 में सबरीमाला और आसपास हिंसा भी हुई थी। चुनाव में इस मुददे के उठने की आशंका को देखते हुए केरल के देवस्वम मंत्री (मंदिर मामले के मंत्री) इस पर खेद जता चुके हैं पर कांग्रेस और भाजपा दोनों माकपा के खिलाफ अपनी सियासी बौछार कम करने की जगह बढ़ाते जा रहे हैं। माकपा की चुनावी चिंता इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में माकपा को सूबे की 20 में से 19 सीटों पर करारी शिकस्त मिली थी और सबरीमाला की आस्था पर एलडीएफ सरकार के रुख को इसकी सबसे बड़ी वजह माना जाता है। 

सबरीमाला में स्थानीय स्तर पर लोगों में विशेषकर महिलाओं के बीच भी एलडीएफ सरकार के रुख को गैर-वाजिब माना जा रहा है। सबरीमाला इलाके के कोनी विधानसभा के पुंगाव की अंजू जो पारिवारिक वजहों से दिल्ली में नर्स की नौकरी छोड़ यहां लौट आयी हैं, वह परंपरा की हिमायत करते हुए कहती हैं कि सरकार को जबरदस्ती से बचना चाहिए था। कुछ इसी तरह की बात यहां के इलानकुलूर की ललिता और सुभद्रा भी कहती हैं कि यहां इसे अधिकार नहीं, आस्था की निगाह से देखा जाना चाहिए था।


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