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Analysis: कितना कारगर होगा कांग्रेस का लिंगायत कार्ड और झंडे का दांव

2008 में लिंगायतों ने ही येद्दयुरप्पा के नेतृत्व में कर्नाटक में भाजपा की पहली सरकार बनवाई थी

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 29 Mar 2018 09:53 AM (IST)Updated: Thu, 29 Mar 2018 09:56 AM (IST)
Analysis: कितना कारगर होगा कांग्रेस का लिंगायत कार्ड और झंडे का दांव
Analysis: कितना कारगर होगा कांग्रेस का लिंगायत कार्ड और झंडे का दांव

अनंत मित्तल। कर्नाटक में ऐन विधानसभा चुनाव के मौके पर कांग्रेस की सिद्धरमैया सरकार ने लिंगायतों को अलग पंथ की मान्यता देकर बड़ा सियासी दांव चला है। इसके प्रस्ताव को राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद केंद्र सरकार के अनुमोदन के लिए भेजा जा चुका है। इससे पहले राज्यध्वज को मंजूरी देकर भी राज्य सरकार केंद्र के अनुमोदन के लिए भेज चुकी है। यह ध्वज पूर्व मैसूरू रियासत का ध्वज है। सिद्धरमैया पर भ्रष्टाचार से लेकर हिंदुओं के दमन का आरोप लगा रही भाजपा अब उन्हें हिंदू मत बांटने की साजिश का जिम्मेदार भी ठहरा रही है।

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सत्ता पर भाजपा की दावेदारी लिंगायतों के भारी समर्थन पर ही टिकी है, क्योंकि उसके मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येद्दयुरप्पा खुद भी लिंगायतों के कद्दावर नेता हैं। लिंगायतों को भाजपा हमेशा वृहद हिंदू समाज में बनाए रखने की हिमायती रही है, लेकिन लिंगायत खुद को अलग पंथ बताते आए हैं। इसीलिए राज्य सरकार द्वारा लिंगायत मतावलंबियों को अलग पंथ का दर्जा देने की सिफारिश करने से उनके वोट बंटने और कांग्रेस के प्रति रुझान बनने के आसार जताए जा रहे हैं।

राज्य में लिंगायतों की आबादी करीब 17 फीसद है। हाल तक लिंगायतों को ही राज्य में सबसे बड़ा जातीय समूह माना जाता था। अब करीब 24 फीसद आबादी के साथ दलित सबसे बड़े जातीय समूह माने जा रहे हैं। इसी से प्रभावित होकर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेकुलर ने बहुजन समाज पार्टी से चुनावी समझौता किया है। दूसरी तरफ येद्दयुरप्पा और अमित शाह ने दलितों के घर खाना खाकर उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश की है। दलित वोटों पर तीसरे मजबूत दावेदार सिद्धरमैया हैं, जिन्हें दलित-पिछड़ी जातियों के ‘अहिंद’ समीकरण के सहारे राज्य में कांगेस की दोबारा सरकार बनने की उम्मीद है।

हालांकि किसी समुदाय को अलग पंथ का दर्जा देने का अंतिम अधिकार केंद्र सरकार को है। राज्य सरकारें इसके लिए केवल अपनी अनुशंसा केंद्र को भेज सकती हैं। लिंगायत समुदाय को अलग पंथ का दर्जा मिलने के बाद इसे मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 25-28) के तहत अल्पसंख्यक दर्जा भी मिल सकता है। फिलहाल मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन पंथों को अल्पसंख्यक दर्जा हासिल है। उससे लिंगायतों के शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थानों के दर्जे के तहत कुछ विशेषाधिकार हासिल हो जाएंगे। कर्नाटक के दो प्रभावशाली जातीय समूहों में शामिल लिंगायत वर्षों से अपनी पहचान हिंदुओं से अलग बताते आए हैं। दूसरा बड़ा समूह वोकलिग्गा हैं। लिंगायतों का कहना है कि बासवन्ना ने लिंगायत की स्थापना ही हिंदुओं के बीच बारहवीं सदी में प्रचलित कुरीतियों से लड़ने के लिए की थी।

बहरहाल मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने राज्य के लिए अलग झंडा, कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देने, महादायी नदी के पानी में राज्य का हिस्सा मांगने जैसे मसलों पर जोर दिया हुआ है। उन्होंने स्कूलों में कन्नड़ को अनिवार्य विषय बनाने, कन्नड़ माध्यम छात्रों को राज्य की प्रशासनिक सेवा में पांच फीसद आरक्षण देने और सरकारी अस्पतालों के कार्ड कन्नड़ भाषा में छापने का फैसला कर कन्नड़ अस्मिता को चुनावी औजार बनाने की शुरुआत की है।

सिद्धरमैया के दांव को नाकाम करने के फेर में प्रधानमंत्री उन्हें कमीशनखोर, सीधा रुपैया, हत्या-अपराध को बढ़ावा देने वाला, केंद्र से मिली राशि के दुरुपयोग और किसानों को खुदकुशी के लिए मजबूर करने वाला बता रहे हैं। उन्होंने भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येद्दयुरप्पा को किसान का बेटा बताकर राज्य की जनता से उन्हें जिताने का अनुरोध किया है। अब देखना है कि मतदाता किसको सत्ता की चाबी सौंपते हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं


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