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यूपी और बिहार की तर्ज पर दिलचस्प हुआ कर्नाटक चुनाव

कर्नाटक का चुनाव प्रचार खत्म हो गया। खत्म होने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस की ओर से दावे भी लगभग एक जैसे ठोके गए।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 10 May 2018 11:24 PM (IST)Updated: Fri, 11 May 2018 09:18 AM (IST)
यूपी और बिहार की तर्ज पर दिलचस्प हुआ कर्नाटक चुनाव
यूपी और बिहार की तर्ज पर दिलचस्प हुआ कर्नाटक चुनाव

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे जो भी हों, वह राजनीतिक रूप से बहुत अहम होगा और उसका असर राष्ट्रीय होगा यह सर्वविदित है। लेकिन इस बार चुनाव ने यह तय कर दिया है कि बेंगलूरु की तरह अब कर्नाटक भी देश की जनता की याददाश्त से नहीं जाएगा। कर्नाटक के इतिहास में शायद यह पहला ऐसा चुनाव होगा जिसमें केंद्रीय नेताओं की न सिर्फ बड़ी मौजूदगी रही बल्कि मुद्दे भी प्रादेशिक से ज्यादा राष्ट्रीय रहे। हर पल विधानसभा चुनाव में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की आहट सुनी जाती रही। कर्नाटक के मठ मंदिर का जादू गुजरात के मुकाबले ज्यादा सुना और देखा गया। और कुछ गुजरात की तर्ज पर ही अंतिम वक्त तक लड़ाई भी मुकाबले की दिखती रही। वस्तुत: पहली बार कर्नाटक का चुनाव राष्ट्रीय फलक पर वह ध्यान और रुतबा हासिल करने में सफल रहा है जो सामान्यता उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अति राजनीतिक हिंदी प्रदेशों के चुनाव में होता है।

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कर्नाटक का चुनाव प्रचार खत्म हो गया। खत्म होने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस की ओर से दावे भी लगभग एक जैसे ठोके गए। हर दाव आजमाए गए। हालांकि पिछली बार कर्नाटक का चुनाव भी चर्चा में था क्योंकि भाजपा के मुख्यमंत्री रहे बीएस येद्दयुरप्पा ने अलग पार्टी बनाकर बगावत कर दी थी। लेकिन इस बार भाजपा और उससे भी ज्यादा कांग्रेस का दाव इस चुनाव पर लगा है। यही कारण है कि दोनों की ओर से हर नुस्खे आजमाए गए। यह सामान्य ज्ञान है कि अगले चार पांच महीने में होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव से पहले कर्नाटक क्यों अहम है। यहां भी लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच है और आने वाले तीन राज्यों में भी।

2014 के बाद से अब तक कांग्रेस ऐसी लड़ाई में हर जगह हारी है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह जीतना जहां अपने नैतिक बल के लिए जरूरी है वहीं विपक्ष के क्षेत्रीय दलों की ओर से फेडरल फ्रंट को लेकर हो रही कवायद को थामने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। दरअसल, कर्नाटक और उसके बाद आने वाले राज्यों में कांग्रेस की स्थिति ही बताएगी कि विपक्षी दल कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकारेंगे भी या नहीं। कांग्रेस का हाथ दूसरे विपक्षी दल मजबूत करेंगे या उसे अलग थलग। जाहिर है कि चुनाव न लड़ते हुए भी कई दूसरे क्षेत्रीय दलों की भी कर्नाटक पर नजरें लगी रहीं और उनके समर्थकों की भी। चूंकि कर्नाटक दक्षिण का प्रवेश द्वार है लिहाजा सुदूर दक्षिण में पड़ने वाले इसके असर से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। 


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