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Jharkhand Assembly Election 2019: लगातार गिर रहा राजद का ग्राफ, प्रतिष्ठा वापस पाने की चुनौती

Jharkhand Election 2019. प्रथम चरण के चुनाव के लिए राजद ने दिए तीन उम्मीदवार। इनमें दो पूर्व विधायक। राज्य गठन के बाद से ही गिरता रहा है राजद की लोकप्रियता का ग्राफ।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 08:08 PM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2019 07:00 AM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: लगातार गिर रहा राजद का ग्राफ, प्रतिष्ठा वापस पाने की चुनौती
Jharkhand Assembly Election 2019: लगातार गिर रहा राजद का ग्राफ, प्रतिष्ठा वापस पाने की चुनौती

रांची, [विनोद श्रीवास्तव]। विधानसभा चुनाव 2014 में पूरी तरह से झारखंड में हाशिये पर आ चुकी लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के समक्ष खोई प्रतिष्ठा वापस पाने की चुनौती है। चुनौती बड़ी है, वह इसलिए भी क्योंकि राज्य गठन के बाद से ही झारखंड में राजद की लोकप्रियता का ग्राफ गिरने का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसे अबतक पाटा नहीं जा सका है। राज्य गठन से पूर्व अविभाजित बिहार में जहां झारखंड के सीमा क्षेत्र में राजद के नौ विधायक हुआ करते थे, वहीं 2005 में यह संख्या घटकर सात और 2009 में पांच रह गई थी।

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2014 के चुनाव में तो झारखंड से राजद का सूपड़ा ही साफ हो गया। बहरहाल महागठबंधन के सीट शेयरिंग फार्मूले के तहत राजद को सात सीटें मिली हैं। अब 2019 के चुनाव में राजद का प्रदर्शन क्या होगा, यह जनादेश तय करेगा। इससे इतर राजद ने प्रथम चरण के चुनाव के लिए तीन विधानसभा क्षेत्रों हुसैनाबाद से संजय सिंह यादव, चतरा से सत्यांनद भोक्ता तथा छतरपुर से विजय राम को प्रत्याशी बनाया है। विजय राम को छोड़कर शेष दोनों प्रत्याशी पूर्व में विधायक रह चुके हैं।

जिन तीन क्षेत्रों में राजद ने प्रत्याशी उतारे हैं, वह पूर्व में राजद का आधार क्षेत्र रहा है। इधर, राजद ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची भी शुक्रवार को जारी कर दी है। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, विधानसभाध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, सांसद मीसा भारती, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, विधायक तेज प्रताप यादव सरीखे नेता मतदाताओं को लुभाने आएंगे। अब वे झारखंड में मद्धिम पड़ी लालटेन की लौ को कितना प्रज्ज्वलित कर पाएंगे, वक्त बताएगा।

एक साल में तीन-तीन अध्यक्ष

झारखंड के विभिन्न राजनीतिक दलों में यह राजद ही है, जिसमें एक साल में तीन-तीन अध्यक्ष बदल गए। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी ने गत लोकसभा चुनाव से पूर्व पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया। राजद सुप्रीमो ने इस रिक्ति को भरने के लिए गौतम सागर राणा को इसकी कमान सौंप दी। राणा इससे पहले कि राजद को पटरी पर लाने की कवायद करते, प्रदेश युवा अध्यक्ष अभय कुमार सिंह को प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंप दिया गया।

विक्षुब्धों ने बनाया राजद लोकतांत्रिक

शीर्ष नेतृत्व द्वारा बिना किसी ठोस कारण के गौतम सागर राणा को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से उतारे जाने से क्षुब्ध राणा ने एक नया दल राजद लोकतांत्रिक का गठन कर लिया। लगभग तीन दशक का राजनीतिक अनुभव रखने वाले राणा द्वारा दल छोडऩे के साथ ही उनके सैकड़ों समर्थकों ने राजद से किनारा कर लिया। ऐसे में इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि विक्षुब्धों का एक खेमा राजद को छोटे स्तर पर ही सही नुकसान ही पहुंचाएगा।

दो-दो मंत्रियों के रहते सूपड़ा साफ

विधानसभा चुनाव 2014 की बात करें तो इस चुनाव ने झारखंड से राजद का सूपड़ा ही साफ कर दिया था। यह स्थिति तब हुई थी, जबकि झामुमो नीत हेमंत सोरेन की सरकार में राजद के कोटे से दो-दो मंत्री हुआ करते थे। अन्नपूर्णा देवी पर महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग का दारोमदार था, जबकि सुरेश पासवान राज्य के नगर विकास मंत्री हुआ करते थे। यह चुनाव कहीं न कहीं राजद की कमजोर सांगठनिक कमजोरी को चरितार्थ कर गया।


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