Jharkhand Assembly Election 2019 : चांद निहार रहे कई मुन्ना, बड़का से छोटका तक Jamshedpur News
Jharkhand Assembly Election 2019. राम-राम की बेला में अब नेताजी किसकी पीठ पर हाथ रखेंगे यह भी देखने वाली बात होगी। उहापोह में एक बड़का मुन्ना का नाम उछल रहा।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। Jharkhand Assembly Election 2019 एक बड़े इलाके पर कब्जा जमाए नेताजी ने जैसे ही छतरी हटाई, कई मुन्ना चांद की ओर निहारने लगे। आनन-फानन में इन मुन्नों ने ट्रेन का टिकट भी खरीद लिया। हालांकि इनमें से कुछ को आरएसी का टिकट मिला है, जबकि अधिकांश वेटिंग लिस्ट में हैं। सबसे मजे की बात है कि कोई पैरवी खुलकर नहीं लगा रहा है। पैरवी चीज ही ऐसी है। यह दबे-छिपे किया जाता है।
राम-राम की बेला में अब नेताजी किसकी पीठ पर हाथ रखेंगे, यह भी देखने वाली बात होगी। खेमेबंदी के बावजूद इस उहापोह में एक बड़का मुन्ना का नाम उछल रहा है। बताते हैं कि सबका खेल खराब करने वाले नेताजी ने उन्हें आश्वस्त किया है कि तुम्हीं को रसगुल्ला मिलेगा। एक बार फिर मुन्ना रसगुल्ला के लिए तरसने लगा है। उसे पूरी उम्मीद है कि रसगुल्ले की जगह दूसरा कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा। हालांकि वह इसके लिए सशंकित भी है, तो आशान्वित भी। मुन्ना के कैंप में अभी तक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर क्या बात है। सिपाहियों की फौज तैयार है, लेकिन उन्हें हुक्म देने वाला कोई नहीं है। सिपाहियों को भी समझ में नहीं आ रहा है कि बात क्या है।
भाई-बेटा ने दुविधा में डाला
एक नेताजी बड़े परेशान हैं। उन्हें गुस्सा भी आ रहा है, लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। उनकी खीझ उस नेताजी पर ज्यादा है, जिन पर भरोसा करके पूरे परिवार का बायोडाटा बनवाया था। बनाया ही नहीं, जमा भी कर दिया। उन्हें गुमान था कि परिवार में किसी न किसी को तो कंफर्म टिकट मिल जाएगा, लेकिन नौबत ऐसी आई कि सभी वेटिंग में ही रह गए। अब उन्हें गुस्सा इस बात का आ रहा है कि नेताजी ने कम पढ़े-लिखे ऐसे आदमी को कंफर्म टिकट दे दिया, जो उनके बाद चाकरी करने आया था।
तपस्या हो रही बेकार
इतने दिनों की तपस्या बेकार होती दिख रही है। अब नेताजी यह सोचकर दुविधा में फंसे हैं कि बेटे के पीछे जाएं कि भाई को। भाई भी मुसीबत में काम आता है, जबकि बेटा भविष्य है। आखिर क्या करें। जो भी उनके घाव कुरेद रहा है, तो बस वनवे ट्रैफिक की तरह उसके सामने भड़ास निकाल रहे हैं। दूसरी ओर से कुछ सुन भी नहीं रहे हैं, सिर्फ बोले जा रहे हैं। हालांकि इसमें कोई नई बात नहीं है। उनके जानने वाले कहते हैं कि इनका यही रवैया शुरू से रहा है। जब बोलने लगते हैं तो किसी की नहीं सुनते। अब समझ में आया है कि जमाना बदल गया है। जीत के आधार पर ही टिकट मिलता है, पढ़ाई-लिखाई बाद में।