Jharkhand Assembly Election 2019: नक्सलियों का टूटा तिलिस्म, राष्ट्रवाद की बही हवा Kolebira Ground Report
Jharkhand Assembly Election 2019. विकास योजनाओं के मूर्त रूप लेने व नक्सलियों के खात्मे से लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा है।
सिमडेगा से उत्तम नाथ पाठक। Jharkhand Assembly Election 2019 - कभी नक्सलियों व उग्रवादियों के गढ़ माने जाने वाले सिमडेगा, कोलेबिरा, गुमला, लोहरदगा में अब हालात बदल रहे हैं। दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के प्रथम व द्वितीय चरण में होने वाले चुनाव में जंगल और पहाड़ों में इस बार भी नक्सलवाद पर राष्ट्रवाद के हावी होने के संकेत मिल रहे हैं। यह संकेत गांव-गांव में विकास योजनाओं के धरातल पर उतरने और लोगों में नक्सलियों व उग्रवादियों का खौफ कम होने से दिख रहे हैं।
इन बातों का आभास कोलेबिरा उपचुनाव और बीते लोकसभा चुनाव में भारी मतदान से भी हुआ है। गुमला, सिमडेगा जिले के रायडीह, सुसान, करंगागुड़ी, जारी, कोरेंद्रा, कोलेबिरा में नक्सलियों की एक आवाज पर लोग घरों में बंद हो जाते थे और लोकतंत्र के महापर्व में भाग नहीं लेते थे। कुरसेग के फिरोज अली बोले कि नक्सलियों व उग्रवादियों के खात्मे के बाद विधि व्यवस्था बेहतर हुई है। हमलोग अब बिना खौफ के जी रहे हैं। कोलेबिरा के प्रहलाद लोहरा कहते हैं नक्सली खुले आम दिनदहाड़े हथियार लेकर गांव में बेधड़क घूमते थे।
चुनाव के समय तो सीधे पोस्टर चिपका वोट बहिष्कार का आदेश दे जाते थे। अब कई उग्रवादी मारे गए या गिरफ्तार कर लिए गए। उनका कैडर टूट गया है। अब हालात पहले से सुधरे हैं। सिमडेगा के फरसाबाड़ी के सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि हालात अब बदले हैं, गांवों में विकास पहुंच रहा है, लेकिन हमारे यहां अभी काफी कमी रह गई है। स्थानीय नेताओं के कारण। फरसाबाड़ी में पीएम आवास योजना का घर लोगों को नहीं मिला। मुखिया कहते हैं, इस गांव का नाम नहीं है।
उनकी बात का समर्थन पास खड़ी महिला मंडल चलाने वाली दीप्ति, सुरेना समेत अन्य महिलाएं भी करती हैं। योजना तो काफी अच्छी अच्छी चल रही है। स्थानीय नेता सिर्फ जाति देखकर लाभ दिलवाते हैं। इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में जातीय समीकरण भी काफी अहम हैं। सिमडेगा में 53 फीसद ईसाई, 20 फीसद सरना तीन फीसद मुस्लिम व मूलवासी 27 फीसद मूलवासी हैं। भाजपा के टिकट पर सिमडेगा से विमला प्रधान 2014 में लगातार दूसरी बार विधायक बनीं थी।
उन्होंने पूर्व मंत्री एनोस एक्का की पत्नी झापा उम्मीदवार मेनन एक्का को हराया था। इससे पूर्व 2009 में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे नियेल तिर्की को हराया था। उससे पूर्व 2005 में नियेल तिर्की ने भाजपा उम्मीदवार निर्मल कुमार बेसरा को हराया था। बेसरा यहां से संयुक्त बिहार के समय से ही पूर्व में विधायक रह चुके हैं। इस बार भाजपा ने निर्मल कुमार बेसरा के बेटे श्रद्धानंद बेसरा को मैदान में उतारा है।
श्रद्धानंद बेसरा भाजपा एसटी मोर्चा के महामंत्री हैं। वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े रहे हैं। क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे हैं। गठबंधन के तहत कांग्रेस ने इस सीट पर नियेल तिर्की को टिकट न देकर सिकरियाटांड़ पंचायत के मुखिया भूषण बाड़ा को मैदान में उतारा है। इस सीट पर भाजपा व कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला रहा है। इस बार झापा ने पूर्व एडीजी रेजी डुंगडुंग को मैदान में उतारा है।
सिमडेगा में भाजपा के एक नेता नाम नहीं छापने के शर्त पर कहते हैं कि भाजपा के वोट का बिखराव होने की संभावना कम है, लेकिन अगर ईसाई वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो भाजपा की जीत की राह थोड़ी कठिन होगी। भाजपा को झापा व सेंगल प्रत्याशियों से उम्मीद है कि कहीं वे अच्छे वोट लाने में कामयाब रहे तो उसे फायदा मिल सकता है। झाविमो के मोहन बड़ाइक से भी थोड़ी चिंता है कि कहीं वो भाजपा के वोट बैंक में सेंध न लगा दें।
कोलेबिरा विधानसभा सीट ईसाई बहुल क्षेत्र है कांग्रेस के विक्सल एन कोंगाड़ी झामुमो-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार हैं। उनके सामने एनोस एक्का की बेटी आइरीन एक्का हैं। एनोस एक्का जमानत पर अभी जेल से बाहर निकल चुके हैं। वो भी इस चुनाव में पूरी ताकत के साथ जुटेंगे। एनोस एक्का को सजा होने पर उनकी सदस्यता रद होने के बाद हुए उपचुनाव में विक्सल एन कोंगाड़ी ने यहां से जीत दर्ज की थी।
इस सीट पर झापा का प्रभाव रहा है। कांग्रेस भी यहां सीधी टक्कर में रही है। भाजपा के तरफ से पूर्व में यहां से उम्मीदवार रहे बसंत सोरेन के साथ सूजन मुंडा, शिवराज बड़ाइक, सूरजन बड़ाइक और डा महेंद्र भगत भी टिकट की दौड़ में है। यहां भाजपा को अपने कैडर वोटरों से आस है। वहीं सेंगल पार्टी अनिल कंडुलना ताल ठोके हुए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में अनिल कंडुलना तकरीबन 21000 वोट के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे। इस बार भी वो पूरा जोर लगा रहे हैं। बदलते झारखंड में अब इन क्षेत्रों में जमकर वोटिंग होती है।
जातीय समीकरण
गुमला, सिमडेगा जिले में जातीय समीकरण भी काफी अहम हैं। गुमला में सरना 45 से 50 फीसद के करीब हैं। ईसाई 25 फीसद, मुस्लिम 3 फीसद और मूलवासी 20 फीसद के करीब हैं। बिशुनपुर में 60 फीसद सरना, ईसाई 12 फीसद, मूलवासी 26 फीसद के करीब हैं। सिमडेगा में सरना 20 फीसद ईसाई 53 फीसद 3 फीसद मुस्लिम मूलवासी 24 फीसद हैं। कोलेबिरा तकरीबन 65 फीसद से अधिक ईसाई। इनमें बड़ी संख्या वैसे आदिवासी हैं जिन्होंने धर्मांतरण किया है।