Jharkhand Elections 2019: मलिकवा विदेश गेल हलथिन कमावे...यहां पलायन का दंश झेल रही बड़ी आबादी Bagodar Ground Report
Jharkhand Assembly Election 2019 बगोदर से ज्यादातर लोग मजदूरी के लिए विदेशों में ट्रेवल वीजा पर जाते हैैं और वहां कानूनी पेचीदगी समेत अन्य समस्याओं से दो-चार होते हैैं।
बगोदर से प्रदीप सिंह। Jharkhand Assembly Election 2019 बगोदर के माहुरी गांव की प्रमिला देवी दिन में न जाने कितनी बार इस आस में सड़क निहारती हैैं कि उसके पति आते दिख जाएं। डेढ़ साल से ज्यादा हो गया पति का मुंह देखे। तीन बच्चों को देखने और पालने के साथ-साथ पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके ही कंधे पर थी। उसने उम्मीद भी नहीं छोड़ी है। पति हुलास महतो अफगानिस्तान में बिजली केबुल का काम करने गए थे। वहां तालिबानी आतंकियों ने उन्हें अगवा कर लिया। प्रमिला बच्चों के साथ दिल्ली-रांची का दौर लगा चुकी है। अभी भी हार नहीं मानी है उसने। बातचीत में संकोच करती है, बार-बार यही कहती हैैं-मलिकवा विदेश गेल हलथिन कमावे (पति विदेश में कमाने गए हैैं)।
दरअसल बगोदर के कई गांवों में दर्जनों प्रमिला अपने पतियों की राह तक रही हैैं। ज्यादातर लोग मजदूरी के लिए विदेशों में ट्रेवल वीजा पर जाते हैैं और वहां कानूनी पेचीदगी समेत अन्य समस्याओं से दो-चार होते हैैं। विस्थापन का यह सिलसिला 1970 के दशक से आ रहा है। विदेशों में मजदूरी करने गए कई लोगों की लाशें आती हैैं तो हाहाकार भी मचता है। सरकार भी मुआवजा बांटती हैं लेकिन विस्थापन का यह सिलसिला थमता नहीं है।
जरमुन्ने पश्चिम के उपमुखिया शंकर पटेल इसे लोगों की विवशता से भी देखते हैैं। उनका कहना है कि क्षेत्र में रोजगार की कमी लोगों को बाहर जाने पर विवश करती है। इससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया है। ऐसा कोई घर नहीं है, जहां का एक न एक व्यक्ति विदेश में नहीं है। एजेंट के माध्यम से लोग जाते हैैं और अक्सर परेशानी में फंसते हैैं। इसका समाधान यही है कि रोजगार की गुंजाइश यहां पैदा की जाए। सिर्फ खेती के सहारे जिंदगी तो कटने से रही।
राजनीति को भी प्रभावित करता है विस्थापन-पलायन का मुद्दा
जीटी रोड के किनारे फैले इलाके में बड़े पैमाने पर विकास कार्य हो रहा है और इसके लिए जमीन की भी आवश्यकता है। लेकिन जमीन अधिग्रहण में मुआवजे की प्रक्रिया और राशि निर्धारण पर जिच राजनीतिक मुद्दा भी बना है। बगोदर और इसके समीप का धनवार भाकपा माले का प्रभाव क्षेत्र रहा है। पूर्व विधायक विनोद कुमार सिंह कहते हैैं कि सरकार की नीतियों का बुरा असर दिख रहा है। पुनर्वास और मुआवजे के नाम पर लोगों को कुछ नहीं मिल रहा है। लोगों में इसे लेकर आक्रोश है। इसका खामियाजा भुगतना होगा।
मौजूदा विधायक नागेंद्र महतो को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। चुनावी सीन धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहा है। जीटी रोड के किनारे बसे इस क्षेत्र में निर्माण कार्य बड़े पैमाने पर हो रहा है। व्यापार भी बढ़ा है लेकिन चुनाव में स्थानीय मुद्दों पर ही आर-पार होगा। अजीत राज्य सरकार के कामकाज से खुश हैैं तो किसान रणधीर कहते हैैं कि मोदीजी ने बहुत काम किया है। हमलोगों को योजनाओं का लाभ मिल रहा है।
धनवार में संशय की स्थिति
बगोदर से सटे धनवार की भौगोलिक स्थिति भी एक जैसी है। विस्थापन और पलायन बड़े पैमाने पर है। पिछले चुनाव में भाकपा माले ने यहां से बाजी मारी। राजकुमार यादव के पाले में यह सीट गई, लेकिन इस दफा उलटफेर की गुंजाइश है। हालांकि चुनावी तस्वीर फिलहाल स्पष्ट नहीं है। इंतजार में पल बीत रहे हैैं। पिछले चुनाव में हारने वाले भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मण प्रसाद सिंह ने यहां खूब पसीना बहाया है। हालांकि भाजपा ने अभी तक अपने उम्मीदवार का एलान नहीं किया है।
रविंद्र राय की भी यहां से प्रबल दावेदारी है। झाविमो से बाबूलाल मरांडी पिछली दफा यहां से दूसरे स्थान पर रहे। हैवीवेट प्रत्याशियों की मौजूदगी चुनाव परिणाम पर असर डालेगी। खोरीमहुआ के पास धान की फसल कटवा रहे किसान रामानंद यादव कहते हैैं-चुनाव में वोट किसे देना है, यह तय हो चुका है। बहुत कुछ बदल गया है सर। अब पहले वाली बात नहीं रही। जो काम करेगा उसी को वोट करेंगे। जातपात पर अब वोट नहीं। उनके साथी भी हां में हां मिलाते हैैं।