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Jharkhand Election 2019: धंधा हो गया मंदा, बाहर न जाएं तो क्या करें Koderma Ground Report

Jharkhand Election 2019 कोडरमा के डोमचांच क्षेत्र में रोजगार की आड़ में अवैध कारोबार चल रहा है। कभी यह इलाका ब्रितानी हुकूमत के दौरान आंदोलन का केंद्र था।

By Alok ShahiEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 09:47 AM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 09:55 AM (IST)
Jharkhand Election 2019: धंधा हो गया मंदा, बाहर न जाएं तो क्या करें Koderma Ground Report
Jharkhand Election 2019: धंधा हो गया मंदा, बाहर न जाएं तो क्या करें Koderma Ground Report

कोडरमा के डोमचांच क्षेत्र से अनूप कुमार। Jharkhand Election 2019 औद्योगिक नगरी डोमचांच जिस तरह भौगोलिक दृष्टिकोण से कोडरमा विधानसभा क्षेत्र का केंद्र है, उसी तरह राजनीतिक दृष्टिकोण से भी यह क्षेत्र का केंद्रबिंदु है। स्वाधीनता संग्राम के दौरान भी डोमचांच आंदोलन का केंद्रबिंदु रहा था। सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रितानी हुकूमत की गोली से यहां तीन लोग शहीद हो गए थे। डोमचांच के शहीद चौक पर स्थित शहीद स्मारक शहादत के साथ-साथ यहां की राजनीतिक चेतना का भी प्रतीक है। आजादी के बाद भी यहां से जब-जब राजनीतिक बवंडर उठा, व्यापक प्रभाव छोड़ गया।

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वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में सत्ता के खिलाफ यहां से एक बवंडर उठा तो राजद के 25 वर्षों से चली आ रही सत्ता उसके हाथ से फिसल गई थी। तब यहां से भाजपा प्रत्याशी नीरा यादव को निर्णायक लीड मिली थी। यहां पड़े करीब 42 हजार वोटों में 25 हजार अकेले भाजपा के झोली में गए थे। तब भी मुद्दा पत्थर-क्रशर के कारोबार पर प्रशासनिक डंडा चलना था, लेकिन इस मुद्दे को हवा मिली तो राजनीतिक बदलाव जरूर हुए, लेकिन हालात वही रहे। ऐसे में एकबार फिर इस मुद्दे को हवा देने की कोशिश जारी है।

इससे पहले वर्ष 2005 में लोगों ने बदलाव की कसक में यहां से निर्दलीय प्रत्याशी को खड़ा किया और उसकी झोली में 17 हजार वोट डाल दिए थे। हालांकि इससे लोगों का मकसद हल नहीं हो पाया था। यहां बह रही चुनावी बयार का अनुभव कर पूरे क्षेत्र की स्थिति का आकलन किया जा सकता है। फिलहाल तीन ओर बह रही यहां की हवा प्रत्याशियों को बेचैन कर रही है। 23 पंचायतों का यह प्रखंड जिले का सबसे बड़ा प्रखंड है। इससे पांच पंचायतों को काटकर एक नगर पंचायत क्षेत्र भी हाल में बनाया गया है। यानी इलाका कुछ शहरी है, कुछ कस्बाई व कुछ सुदूर ग्रामीण भी। कभी यह माइका उद्योग का महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। लेकिन आज यहां रोजगार का सबसे बड़ा साधन पत्थर के खदान व इससे जुड़े स्टोन क्रशर यूनिट है। जंगली क्षेत्र में कुछ-कुछ माइका, फेल्सफर व अन्य चमकीले पत्थरों को भी वैध-अवैध खनन होता है। वन क्षेत्र से घिरा होने के कारण यहां क्रशर व पत्थर उद्योग पर वन एवं पर्यावरण विभाग के साथ जिला प्रशासन की नजर होती है। कारोबार ही ऐसा है जिसमें नियम कानूनों का पालन जरूरी है, लेकिन कारोबारियों के साथ समस्या इसके पालन में है। प्रदूषण विभाग के नियमों के पालन, माइनिंग चालान लेकर नियम से खनन व व्यापार यहां घाटे का सौदा हो जाता है।

कारोबारी कहते हैं, यदि शत प्रतिशत नियमों का पालन करके चले तो व्यापार करना मुश्किल है। समय-समय पर सरकार व प्रशासन के द्वारा इनके कारोबार पर डंडा चलता है तो ठीकरा क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों पर फोड़ते हैं। वैसे आज भी कारोबार ज्यादा अवैध तरीके से ही चल रहा है। पूरे जिले में अब्रख की एक भी खदान का लीज नहीं है, लेकिन निर्यात के आंकड़े देखें तो सालाना करीब 200 करोड़ का अबरख विदेशों में एक्सपोर्ट हो रहा है। पत्थरों के खदान माइंस सेफ्टी के नियमों के विरुद्ध चल रहे हैं। गहराई चार-चार सौ फीट तक पहुंच गई है। गत माह एक खदान में चाल धंसने की घटना में तीन लोगों की मौत हो गई। लाश निकालने के लिए एनडीआरएफ की टीम को कई दिनों तक मशक्कत करनी पड़ी।

खदानों में अवैध तरीके से वैगन ड्रिल व हेवी ब्लास्टिंग व क्रशर के धूल से पूरा इलाका धूल-धूसरित रहता है, लेकिन कारोबार से जुड़े लोगों को इससे कोई परेशानी नहीं, क्योंकि मामला उनके रोजगार से जुड़ा है। बीते करीब एक दशक से इस कारोबार में प्रशासन की सख्ती, सरकार के कड़े नियमों, एनजीटी के कड़े नियमों के कारण लगातार गिरावट आ रही है।

कारोबार से जुड़े डोमचांच तेतरियाडीह निवासी नीलकंठ सह कहते हैं खदान व क्रशर लगातार बंद हो रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में कारोबार अब सिमटकर 25 फीसद में आ गया। पत्थर का उत्पादन कम होने से लोग गिरिडीह के पत्थर खदानों से बोल्डर लाकर यहां के क्रशरों में पिसते हैं। इससे आमदनी कम हो गई है। एनजीटी के नियमों की सख्ती के कारण भी कई क्रशर बंद हो गए। खदान भी एक के बाद एक बंद होते जा रहे हैं। हालांकि नीलकंठ सिंह यह मानते हैं कि एनजीटी, प्रदूषण, वन अधिनियम को शिथिल करना किसी भी जनप्रतिनिधि के लिए संभव नहीं है। कारोबार से अलग विकास की बात करते हुए वे कहते हैं कि यहां विकास के कई अच्छे कार्य भी हुए हैं, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता।

वहीं डोमचांच बाजार निवासी दवा विक्रेता गुरुदेव प्रसाद कहते हैं, इलाके में सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार के क्षेत्र में आयी मंदी और पलायन है। वे मानते हैं विकास के कई बड़े कार्य पांच वर्षों के भाजपा शासन में हुए हैं, लेकिन स्थानीय प्रतिनिधि लोगों से वैसा जुड़ाव नहीं बना पाई।

डोमचांच चौक पर ही क्रशर व्यवसायी मनोहर प्रसाद शर्मा और उनके पुत्र रोशन शर्मा का भी दर्द धंधे में आई मंदी को लेकर है। रोशन कहते हैं मंदी तो जो है सो है ही, ऑनलाइन दाखिल खारिज जैसे मामलों में भी काफी परेशानी लोगों को होती है। ऑनलाइन व्यवस्था से काम जल्दी होने के बजाय और देर होती है। इससे भ्रष्टाचार भी बढ़ गया है। काराखूंट निवासी महादेव यादव कहते हैं अभी यहां की हवा तीन ओर बह रही है, लेकिन आनेवाले दिनों में हवा का रुख किधर करवट लेता है, यह कहना मुश्किल है।


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