Jharkhand Election 2019: दुनिया को मिला काला हीरा, हमारे हिस्से धूल और बीमारियां Simaria Ground Report
Jharkhand Assembly Election 2019. कोल परियोजनाओं से प्रतिवर्ष सीसीएल को करोड़ों नहीं अरबों का खांटी लाभ हो रहा लेकिन टंडवा प्रखंड की स्थिति और बदतर होते जा रही है।
सिमरिया के टंडवा से जुलकर नैन। Jharkhand Assembly Election 2019 - चतरा जिले का टंडवा औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित हो रहा है। सेंट्रल कोल फील्ड की यहां एक-दो नहीं, बल्कि पांच परियोजनाएं चल रही है। पिपरवार, अशोका एवं पूर्णाडीह के साथ-साथ आम्रपाली और मगध इसमें शामिल है। सिसई-वृंदा, संघमित्रा एवं चित्रगुप्त आदि कोल परियोजनाएं प्रस्तावित है। कोल परियोजनाओं से प्रतिवर्ष सीसीएल को करोड़ों नहीं, अरबों का खांटी लाभ हो रहा, लेकिन टंडवा प्रखंड की स्थिति और बदतर होते जा रही है।
विधानसभा चुनाव के समय भी इन मुद्दों की चर्चा हो रही है। लोग कहते हैं चाहे केंद्र की सरकार हो या राज्य की प्रतिनिधियों को हमारी समस्याओं पर गंभीरता से विचार करना होगा। एशिया की विख्यात कोल परियोजनाओं से आम लोगों को बहुत सरोकार नहीं है। कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेवारी (सीएसआर) की राशि विस्थापित एवं प्रभावित गांवों के विकास में खर्च नहीं हो रही है।
यही कारण है कि ग्रामीणों के हिस्से में अब तक धूलकण ही आए हैं। धूलकणों से वहां का वातावरण दूषित हो रहा है। वायुमंडल इतना प्रभावित हो गया है कि शुद्ध हवा मिलना मुश्किल है। पानी की शुद्धता भी प्रभावित हो गई है। नदी और नालों का अस्तित्व मिट रहा है। आब-ओ-हवा को प्रदूषित होने का दूष्यप्रभाव भी सामने आने लगा है। लोग नाना प्रकार के बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं।
यदि सरकारी डॉक्टरों की रिपोर्ट को मानें, तो कुल आबादी के करीब तीन प्रतिशत लोग यक्ष्मा, सांस, कान, आंख जैसे रोगों से पीडि़त हैं। और इसका कारण धूलकण है। सिमरिया के सियासत की जंग में भले ही यह मुद्दा नहीं बना हो, लेकिन लोगों के मन में सीसीएल के प्रति आक्रोश है। आम्रपाली और मगध के विस्थापित रैयत निराश हैं। प्रभावित एवं विस्थापित परिवारों को विश्वास था कि परियोजना को आने से उनकी स्थिति में सुधार होगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
हद तो तब हो गई, सीसीएल ने जिन 175 युवकों को दो वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों रांची में नियुक्ति पत्र दिलवाया था, उनमें से दर्जनों को अब तक योगदान नहीं कराया गया। आम्रपाली कोल परियोजना के प्रभावित उडसू गांव निवासी सोमर उरांव कहते हैं-चुनाव मुद्दाविहीन है। टंडवा की सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण है। कोयला के धूलकणों से इंसानी जिंदगियां बर्बाद हो रही है।
वातावरण पूरी तरह से दूषित हो गया है। कोल वाहनों के परिचालन से सड़क के आसपास के घरों में सुबह होते धूलकणों की परत बैठ जाती है। इसी गांव के तापेश्वर कुमार कहते हैं कि औद्योगिक विकास के नाम पर हम छले जा रहे हैं। मलाई सीसीएल के अधिकारी खा रहे हैं और हमारे जिम्मे बीमारियों को भेज रहे हैं। धूलकण जिंदगी का हिस्सा बन गया है।