Jharkhand Election 2019: वोट खरीदने के लिए ऐसे बहाए जा रहे पैसे, खेल से भी 'खेल' रहे प्रत्याशी
Jharkhand Assembly Election 2019 चुनाव आयोग की आंखों में धूल झोंककर किस तरह चुपके चुपके वोट खरीदने के लिए पैसे बहाए जा रहे हैं। पढ़ें खास रिपोर्ट...
खास बातें
- 30 करोड़ अनुमानित खर्च कर चुके हैं प्रत्याशी चुनाव घोषणा के तीन माह पूर्व से अब तक
- 02 बकरे या भेड़ पंद्रह से बीस किलो के एक आयोजन में बांटते हैं प्रत्याशी या उनके एजेंट
- 20 मुर्गे कम से कम एक फुटबॉल मैच के दौरान शामिल खिलाडिय़ों में होते हैं वितरित
- गांवों में आदिवासी युवाओं के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय है फुटबॉल
- गांवों में आसानी से उपलब्ध हो जाती है हडिय़ा, पिलाने पर कोई रोक नहीं
- खिलाडिय़ों को नकद के अलावा ड्रेस और खेल सामग्री भी कराते हैं मुहैया
दैनिक जागरण के 243 संवाददाताओं ने झारखंड की 81 विधानसभा क्षेत्रों के 243 गांवों की एक साथ पड़ताल की। यह जानने की कोशिश की कि चुनाव का अर्थतंत्र कैसा है? चुनाव आयोग की आंखों में धूल झोंककर किस तरह चुपके चुपके वोट खरीदने के लिए पैसे बहाए जा रहे हैं। पढ़ें खास रिपोर्ट...
रांची, जेएनएन। चुनाव में वोट पाने के लिए सिर्फ मांस-भात, हडिय़ा, शराब ही नहीं बंटती, गांव के युवा मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए प्रत्याशी और उनके एजेंट खेल से भी 'खेल' करते हैं। यूं तो यह सिलसिला वर्ष भर जारी रहता है, लेकिन चुनाव की घोषणा से तीन माह पहले गांवों में इसकी बाढ़-सी आ जाती है। गांव के खेल मैदान गुलजार हो उठते हैं। खिलाडिय़ों की ड्रेस चमक उठती है। झारखंड विधानसभा चुनाव के द्वितीय चरण में जिन 20 सीटों पर सात दिसंबर को मतदान होना है, उन इलाकों में भी इस बार यह 'खेल' खूब खेला गया है।
बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिमी, , सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, खरसावां, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, तमाड़, तोरपा, मांडर, सिसई, सिमडेगा, कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र के कई गांवों में पड़ताल के दौरान यह बात सामने आई कि युवाओं को लुभाने के लिए संभावित प्रत्याशियों ने लाखों रुपये खर्च कर फुटबॉल व तीरंदाजी जैसे कई खेलों का आयोजन कराया। खुद इसमें अतिथि बनकर मौजूद रहे। इनाम के रूप में खिलाडिय़ों को बकरा, ट्रॉफी, ड्रेस आदि बांटे गए। इतना ही नहीं, खेल देखने पहुंचे दर्शकों के लिए खेल मैदान के पास ही हडिय़ा की दुकानें भी निशुल्क करा दी गईं।
विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद भी यह खेल जारी है। बस अंतर यह आया है कि खेल मैदान में प्रत्याशी अतिथि देव बनकर 'अवतरित' नहीं हो रहे हैं। पर्दे के पीछे से युवा वोटरों को खुश कर रहे हैं। उधर, कोडरमा, बरही, बडग़ांव, रामगढ़, मांडू, हजारीबाग, सिमरिया, रांची, सिल्ली आदि विधानसभा क्षेत्र भी इस 'खेल' से अछूते नहीं हैं। कई विधानसभा क्षेत्रों में तो इस खेल के लिए कई प्रत्याशी और विधायक कुख्यात रहे हैं।
उनके इलाके में किसी से पूछ लीजिए- यहां खेल का फाइनेंसर कौन है? युवा खिलाडिय़ों की जुबान सच उगल देगी। चेहरों को तुरंत बेनकाब कर देगी। चाईबासा, सरायकेला, ईचागढ़, चक्रधरपुर के युवा वोटर बताते हैं कि चुनाव लड़ रहे दलीय व निर्दलीय प्रत्याशियों में शायद ही कोई ऐसा हो जिसने युवा वोटरों को पक्ष में करने के लिए पैसा देकर फुटबॉल मैच का आयोजन नहीं कराया होगा।
फुटबॉल मैच पर सबसे अधिक करते हैं खर्च
समूचे झारखंड में आदिवासी युवाओं के बीच फुटबॉल ज्यादा लोकप्रिय है, इसलिए यहां इसी खेल से प्रत्याशी 'खेलना' पसंद करते हैं। सिमडेगा के अजय गोराई कहते हैं कि इस खेल में चूंकि पूरा गांव इनवॉल्व होता है, इसलिए प्रत्याशियों या नेताओं को लगता है कि उनकी अच्छी ब्रांडिंग होगी। युवा उनके साथ जुड़ जाएंगे। वहीं, झरिया के खिलाड़ी अजीत सिंह और गढ़वा क्षेत्र के दशरथ गागराई बताते हैं कि ऐसा लंबे समय से होता आ रहा है। चुनावी मौसम में ऐसे आयोजनों की संख्या बढ़ जाती है। यह सबको पता है कि प्रत्याशी ऐसा क्यों करते हैं।
इनाम में बांटते हैं बकरा, भेड़, मुर्गा
लिट्टीपाड़ा के सुजीत मंडल व जामताड़ा विधानसभा क्षेत्र के दिलीप सोरेन खिलाड़ी हैं। बताते हैं कि प्रत्याशी या नेता विजेता खिलाडिय़ों को इनाम में नकद के अलावा बकरा, भेड़ व मुर्गा भी देते हैं। विजेता को यदि 12 किलोग्राम का बकरा या भेड़ दिया जाता है, तो द्वितीय स्थान पानेवाले को दस या आठ किलो का। वहीं अन्य खिलाडिय़ों को मुर्गा दिया जाता है। यह आयोजन के बजट पर निर्भर करता है। इस तरह के एक आयोजन पर कम से कम डेढ़ से दो लाख रुपये खर्च किए जाते हैं।
प्रत्याशियों तक ऐसे पहुंचते हैं खिलाड़ी
चुनाव पूर्व संभावित प्रत्याशी के एजेंट से खिलाड़ी संपर्क साधते हैं। एजेंट उससे बात करता है। संभावित प्रत्याशी खुद पैसे देता है या किसी चहेते ठेकेदार के पास रेफर कर देता है। पैसा मिलते ही खेल टीम संभावित प्रत्याशी को आयोजन में अतिथि बना देती है।
चुनाव में पिछले दरवाजे से पानी की तरह पैसा बहाया जाता है। चुनाव की घोषणा से पूर्व ही यह खेल शुरू हो जाता है। चुनाव आयोग की निगरानी के बावजूद कोई ऐसा तंत्र नजर नहीं आ रहा जो इसे रोक सके। सामाजिक जागरूकता से ही यह रुकेगा। जीएस रथ, पूर्व डीजीपी, झारखंड।