Jharkhand Assembly Election 2019: जंगलों ने चुकाई खनन क्षेत्रों के विकास की कीमत, इस बार वोट झारखंड के लिए
Jharkhand Assembly Election 2019. झारखंड में इससे निपटने के लिए पिछले चार वर्षों में क्षतिपूर्ति वन रोपण के तहत चार करोड़ से अधिक के पौधे लगाए गए।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड जैसे झाड़-जंगल वाले राज्यों में विकास और पर्यावरण का रिश्ता व्यूतक्रमानुपाती है। स्पष्ट है विकास को गति देने की कीमत पर्यावरण को किसी न किसी रूप में चुकानी ही पड़ेगी। विकास और पर्यावरण का यह आपसी टकराव झारखंड में निरंतर जारी है। खनन क्षेत्र के विकास की कीमत तो झारखंड के जंगलों ने चुकाई ही है।
आधारभूत संरचना के क्षेत्र मेें किए जा रहे कार्यों का भी असर यहां देखने को मिल रहा है। सड़क, बिजली, पानी व सिंचाई के संसाधनों के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों को रोका नहीं जा सकता। ऐसे में जरूरत है बीच का रास्ता अख्तियार करने की, पर्यावरण के अनुकूल संतुलित विकास की। झारखंड उन राज्यों में शुमार किया जाता है, जिस पर प्रकृति ने भरपूर स्नेह लुटाया है। यहां धरती के नीचे भरपूर प्राकृतिक संपदा है। देश की कुल खनिज संपदा का लगभग 40 फीसद झारखंड में है।
33 फीसद कोयला भंडार के साथ-साथ लौह अयस्क, बॉक्साइट व अन्य खनिज संपदा धरती के नीचे दबी हुई हैं। वहीं, धरती के ऊपर पर्याप्त वन संपदा है। लगभग 33 फीसद वन क्षेत्र। खनन क्षेत्र को गति देने के लिए जब खनन कार्य किया जाता है, तो इसका सीधा असर वन क्षेत्रों में पड़ता है। यही वजह है कि झारखंड में तेजी से सघन वन क्षेत्र कम होता जा रहा है। अब यह घटकर 2598 वर्ग किमी के दायरे में पहुंच गया है, जो कि राज्य के कुल वनावरण का महज दस फीसद है।
राज्य में वनों का प्रतिशत कम नहीं है, लेकिन सघन वन क्षेत्र की गिरावट की भरपाई नहीं हो सकती। यह एक मुश्किल स्थिति है। झारखंड में कोई भी सरकार आए, उसे विकास और पर्यावरण के बीच के द्वंद्व से जूझना ही होगा। संतुलित विकास की अवधारणा पर जोर देना होगा, नहीं तो आने वाली कई पीढिय़ों को इसका खामियाजा भुगतना होगा। हालांकि, संतोषजनक पहलू यह है कि इसके बावजूद झारखंड के वन क्षेत्र में गिरावट नहीं आई है।
वन भूमि अपयोजन के प्रस्ताव को लेकर वन एवं पर्यावरण विभाग की नीति ने विकास के पैमाने और पर्यावरण में कम से कम अब तक तो संतुलन बरकरार रखा ही है। झारखंड में पिछले चार वर्षों में राज्य की आधारभूत संरचना के विकास में, जिसमें राजमार्ग, रेल, हवाई अड्डा, विद्युत संचरण परियोजना एवं अन्य से संबंधित कुल 88 परियोजनाएं शामिल हैं, वन भूमि के अपयोजन की स्वीकृति दी गई है। इसके बदले में क्षतिपूर्ति वन रोपण के तहत चार करोड़ से अधिक के पौधे लगाए गए हैं।
वायु प्रदूषण की स्थिति
झारखंड में हालात दिल्ली सरीखे तो नहीं हैं, लेकिन वायु प्रदूषण शहरी के साथ-साथ खनन क्षेत्रों में मानकों से कहीं अधिक निकल गया है। प्रदूषण विभाग की दीपावली की रिपोर्ट भी हमें सचेत करती है। रांची जैसे क्षेत्रों में वायु प्रदूषण सामान्य से छह गुना अधिक पाया गया। धनबाद में तो यह रिकार्ड स्तर तक पहुंच गया।
530 किमी बढ़ा वन क्षेत्र
भारतीय वन सर्वेक्षण, देहरादून की रिपोर्ट बताती है कि झारखंड में पिछले चार सालों में वन क्षेत्र में 530 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। सैटेलाइट इमेज के आधार पर आधारित स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2013 और 2017 के बीच वन क्षेत्र में 37,300 हेक्टेयर की वृद्धि हुई है।
राज्य में 2013 के मुकाबले 2017 में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 0.47 फीसद वन बढ़े हैं। राज्य के वनों एवं वृक्षावरण बढ़कर राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का 33.21 प्रतिशत हो गया है। राज्य के वनों का ग्रोइंग स्टॉक 2013 की रिपोर्ट के अनुसार 15.97 करोड़ घन मीटर था, जो वर्ष 2017 में बढ़कर 18.2 करोड़ घन मीटर हो गया। इसमें लगभग 14 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
शुरू हुई नदियों को जीवन देने की कवायद
राज्य की नदियों को पुनर्जीवित करने की पहल गत वर्ष शुरू की गई थी। इस योजना के तहत वन विभाग ने पहली बार वनों के किनारे वृहद पैमाने पर पौधारोपण का निर्णय लिया था। गत वर्ष नदियों के किनारे 134 किमी में पौधारोपण का कार्य किया गया था, वहीं इस वर्ष 274 किमी पौधारोपण किया जा रहा है। हालांकि, जुलाई में हुई कम वर्षा का असर नदी तट रोपण पर भी देखा गया।
वनों के बाहर वृक्षों का विस्तार
वन क्षेत्र के बाहर आम जनों की भागीदारी से वृक्षों के विस्तार की योजना शुरू की गई है। वर्ष 2016-17 में शुरू मुख्यमंत्री जन वन योजना के तहत अब तक कुल 6.605 लाख पौधे लगाए गए। इस योजना के तहत लाभुक की पौधारोपण की राशि का 75 फीसद भुगतान राज्य सरकार के स्तर से किया जा रहा है। पिछले तीन सालों में 5.29 करोड़ रुपये का अनुदान मुख्यमंत्री जन वन योजना के तहत किया गया है, इससे 1823 किसान लाभांवित हुए हैं।
बारिश का वनरोपण पर भी पड़ा असर
झारखंड में मानसून की बेरुखी का असर सिर्फ खेतों पर ही देखने को नहीं मिला है। वनरोपण की मुहिम को भी बारिश ने झटका दिया है। यही कारण है कि विगत चार वर्ष में सबसे कम पौधे इस वर्ष लगाए गए। औसतन 2.5 करोड़ से अधिक पौध वन विभाग के स्तर से वन क्षेत्र व सड़कों के किनारे लगाए जाते हैं। जबकि, इस बार यह आंकड़ा 1.69 करोड़ के करीब ही थम गया है।
रोपित पौधों की संख्या
वर्ष - रोपित पौधों की संख्या
2015-16 2.67 करोड़
2016-17 2.61 करोड़
2017-18 2.75 करोड़
2018-19 2.37 करोड़
2019-20 1.69 करोड़
- निजी जमीन पर वनों की खेती को बढ़ावा देने के लिए 6.60 लाख पौधे लगाए गए हैं। इस योजना के तहत पौधारोपण की कुल लागत का 75 फीसद व्यय अनुदान के रूप में सरकार के स्तर से दिया जाता है। इस योजना के अंतर्गत 5.29 करोड़ रुपये का अनुदान अब तक दिया गया है।
- लंबे समय से लटकी नियुक्ति की प्रक्रिया को वन विभाग के स्तर से तेज किया गया है। 37 वर्षों के बाद 1978 वनरक्षी की नियुक्ति की गई।
- वनों में रहने वाले वनवासियों को पट्टे वितरित किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पलामू के संबोधन में इसका जिक्र किया था। लगभग एक लाख पट्टे स्वीकृत किए गए, इनमें 60 हजार का निपटारा भी कर दिया गया।