Jharkhand Assembly Election 2019: भाजपा में भितरघात की आशंका बढ़ी, अपनों से चुनौती का खतरा Insight Report
पार्टी के बढ़ते कुनबे से भितरघात की आशंका बढ़ी है। दूसरे दलों से टिकट की आस में भाजपा में आए लोगों और पार्टी के खुद के दावेदारों में इन दिनों एक प्रतिस्पद्र्धा सी देखी जा रही है।
रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Assembly Election 2019 - भाजपा का बढ़ता कुनबा विपक्षी दलों पर जहां मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहा है वहीं, यह विधानसभा चुनाव के दौरान खुद उसके लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। दूसरे दलों से भाजपा में टिकट की आस में आए लोगों और पार्टी के खुद के दावेदारों में इन दिनों एक प्रतिस्पद्र्धा सी देखी जा रही है, जिससे कुछ सीटों पर भितरघात की आशंका बढ़ गई है। सीधे शब्दों में कहें तो चुनाव के दौरान भाजपा को खुद से भी बड़ी चुनौती मिल सकती है।
यहां हालिया भाजपा में शामिल हुए पांच विधायकों और उनसे जुड़े हुए विधानसभा क्षेत्रों की चर्चा लाजिमी है। कुणाल षाडंगी झामुमो छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। वे बहरागोड़ा से विधायक हैं और इस बार भी उस क्षेत्र से प्रबल दावेदार। इस क्षेत्र में भाजपा का खुद का जनाधार भी है और उसके अपने दावेदार भी। जाहिर है इनमें टकराव होना तय है। टिकट की घोषणा होने के साथ ही कुछ खुलकर बगावत कर सकते हैं तो कुछ असहयोगात्मक रवैया अख्तियार कर सकते हैं।
यहां पिछला चुनाव पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिनेशानंद गोस्वामी ने भाजपा से लड़ा था। गोस्वामी के अलावा इस क्षेत्र से समीर मोहंती व कई अन्य भी मजबूत दावेदार हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र में भी देखी जा सकती है। भानु प्रताप शाही के पार्टी में शामिल होने से अनंत प्रताप देव जैसे पूर्व भाजपा प्रत्याशी को फौरी तौर पर झटका लगा है। वहीं, बरही में मनोज यादव के शामिल होने से उमाशंकर अकेला को।
लोहरदगा में सुखदेव भगत के शामिल होने से सहयोगी दल आजसू के तेवर तल्ख देखे जा रहे हैं। हालांकि अभी तक यह तय नहीं है कि यह सीट भाजपा के पास रहेगी या आजसू के पास। इसके अलावा तमाम अन्य सीटें हैं जहां से भाजपा के दावेदारों को दूसरे दलों से पार्टी में शामिल होने वाले लोगों के झटका लगा है। पांकी से शशिभूषण मेहता भी इनमें से एक हैं।
हालांकि इस सीट पर फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है। पार्टी में टिकट की घोषणा से पूर्व भाजपा में इस विषय पर चर्चा से हर कोई कतरा रहा है। लेकिन टिकट की घोषणा के बाद भाजपा की यह आंतरिक कलह सतह पर आनी तय है। जाहिर है भाजपा को भी इस बात का एहसास है और वह अभी से इस आंतरिक टकराव को टालने की जुगत में जुट गई है।