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Jharkhand Election Results 2019: झारखंड की राजनीति में हाशिए पर आ गए बाबूलाल

Jharkhand Election Results 2019. भाजपा से अलग होने के बाद बाबूलाल ने जब झाविमो का गठन किया था तब भी उनकी पार्टी के अस्तित्व को लेकर कई सवाल उठाए गए थे।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 04:23 PM (IST)Updated: Sat, 25 May 2019 11:37 AM (IST)
Jharkhand Election Results 2019: झारखंड की राजनीति में हाशिए पर आ गए बाबूलाल
Jharkhand Election Results 2019: झारखंड की राजनीति में हाशिए पर आ गए बाबूलाल

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Election Results 2019 - कोडरमा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के परिणाम ने झारखंड की राजनीति में झाविमो को एक बार फिर हाशिए पर ला खड़ा कर दिया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी को मुंह की खानी पड़ी थी। इससे सबक लेते हुए उन्होंने इस बार  महागठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर अपनी किस्मत आजमाई, परंतु वे कामयाब नहीं रहे। और तो और गोड्डा फतह करने उतरे उनकी पार्टी के प्रधान सचिव प्रदीप यादव भी अपने मिशन में फेल हो गए। ऐसे में यह आशंका गहराती जा रही है कि झारखंड की पालीटिक्स से वे कहीं आउट न हो जाएं।

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  • अपनों से ही बेजार होते रहे झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल
  • झारखंड की राजनीति से कहीं आउट न हो जाएं बाबूलाल
  • कारवां बना भी, बिखरा भी, अब अस्तित्व का संकट 

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भाजपा से अलग होने के बाद बाबूलाल ने जब झाविमो का गठन किया था, उनकी पार्टी के अस्तित्व को लेकर कई सवाल उठाए गए थे। इससे इतर कुछ ही वर्षों में पंचायत से लेकर राज्य स्तर तक पर अपने संगठन को मजबूत करने में वे सफल रहे। अन्य दलों के बड़े नेताओं को भी झाविमो में उनका भविष्य नजर आने लगा। इस कालखंड में कई नेता झाविमो से जुड़े। 2009 के विधानसभा चुनाव में झाविमो के टिकट से 11 विधायक चुनकर आए। 2014 की मोदी लहर में भी झाविमो ने आठ विधायक दिए। इससे इतर बदली हुई परिस्थिति में बाबूलाल का कारवां बना भी और बिखरा भी।

यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बाबूलाल अपनों से ही बेजार होते रहे। इस कालक्रम में पार्टी के कई दिग्गज नेता उन्हें छोड़कर चले गए। 2014 में जिन आठ विधायकों ने झाविमो के टिकट पर जीत दर्ज की थी, उनमें से छह ने भाजपा का दामन थाम लिया। इस अवधि में पंचायत से लेकर जिला स्तर तक के कई पदधारियों ने बाबूलाल का साथ छोड़ दिया। ऐसे में झाविमो कमजोर होता चला गया। ऐसे में यह कहना कि जिस कोडरमा ने उन्हें 2004 में माथे पर बिठाया था, आज अगर उतारा है तो इसमें कहीं न कहीं सांगठनिक कमजोरी भी एक फैक्टर है।

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