मतदान में आगे, सत्ता में पीछे महिलाएं
जैसे-जैसे महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ती जा रही है, वे अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक हो रही हैं ।
शिमला, रविंद्र शर्मा। प्रदेश में सरकार चुनने में महिलाएं पुरुषों से कहीं आगे रहती हैं लेकिन इसके बावजूद सत्ता की डोर उनके हाथों से आज भी दूर नजर आती है। आखिर क्यों महिलाएं विधानसभा की चौखट नहीं लांघ पा रही हैं जबकि प्रदेश की आधी आबादी महिलाओं की है। किसे विधानसभा में पहुंचाना और किसे बाहर का रास्ता दिखाना यह तय करने के लिए पुरुषों के मुकाबले करीब एक लाख महिलाएं इस बार के विधानसभा चुनाव में मताधिकार का प्रयोग करने के लिए घरों से बाहर निकली हैं।
जैसे-जैसे महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ती जा रही है, वे अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक हो रही हैं लेकिन इसके बावजूद विधानसभा की चौखट को पार करना अधिकतर महिलाओं के लिए आज भी सपना ही है। पिछले नौ विधानसभा चुनाव के दौरान मैदान में उतरी महिला प्रत्याशियों में से आधे से अधिक की जमानत जब्त हो गई है
यानी प्रदेश के मतदाताओं ने महिला प्रत्याशियों को सिरे से नकार दिया।
1972 के विधानसभा चुनाव के दौरान सात महिलाओं ने भाग्य आजमाया था। उस दौरान मतदाताओं ने चार महिलाओं को विधानसभा की चौखट तक पहुंचाया था जबकि इस दौरान वोट डालने वाली महिलाओं का आंकड़ा भी पुरुषों के मुकाबले काफी कम था। इसके विपरीत वर्ष 2012 में विधानसभा चुनाव के दौरान 34 महिलाएं चुनावी अखाड़े में उतरी थीं, लेकिन मात्र तीन महिला प्रत्याशी ही विधानसभा की चौखट पार कर पाई थीं। इस विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक संख्या में मतदान किया था। इतना ही पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक महिला प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त हुई थी। इस बार केवल 19 महिलाएं ही चुनावी मैदान में उतरीं हैं जिनका भाग्य नौ नवंबर को ईवीएम में बंद हो चुका है।
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