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हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक जमीन तलाशते सियासी वारिस

परिवारवाद को लेकर भले ही सियासी दल आलोचनात्मक रुख दिखाते रहे हों, लेकिन हिमाचल में पुत्रों को राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में आगे बढ़ाना ही मकसद है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 09 Nov 2017 12:47 PM (IST)Updated: Thu, 09 Nov 2017 12:56 PM (IST)
हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक जमीन तलाशते सियासी वारिस
हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक जमीन तलाशते सियासी वारिस

संदीप शर्मा

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हिमाचल प्रदेश में आज विधानसभा चुनावों के लिए मतदान हो रहे हैं। दो राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के इर्द-गिर्द रहने वाली राज्य की सियासत में इस बार अलग तरह की तस्वीर नजर आ रही है। इस बार इन दोनों दलों के लिए न सिर्फ चुनाव जीतना जरूरी है बल्कि प्रदेश में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए राजनीतिक उत्तराधिकारी की खातिर जमीन तैयार करने का भी दबाव काम कर रहा है। परिवारवाद इस चुनाव का सत्य है।बहरहाल हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह चौरासी के होने वाले हैं। अगर इस बार विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस को बहुमत दिलाने में कामयाब रहे तो छठवीं बार उनका पहाड़ी राज्य का मुख्यमंत्री बनना तय है, लेकिन कहा जा रहा है कि इस कीर्तिमान से ज्यादा अहम है पुत्र विक्रमादित्य के लिए सियासी जमीन तैयार करना। विक्रमादित्य अभी हिमाचल युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। 28 वर्षीय युवा नेता शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं। वीरभद्र ने यह सीट अपने पुत्र के लिए ही खाली छोड़ी थी।

पार्टी के साथ ही पुत्र दृष्टि से यह चुनाव वीरभद्र सिंह के लिए काफी मायने रखती है। अगर चुनावी मैदान में वीरभद्र सिंह विजय पताका फहराने में कामयाब रहे तो अगले पांच साल में वह बेटे को हिमाचल की राजनीति में स्थापित कर सकने में सक्षम होंगे। ऐसा नहीं है कि जीएस बाली, सुखविंदर सिंह सुखु, कौल सिंह ठाकुर और विद्या स्टोक्स सरीखे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह की इस मंशा से अनभिज्ञ थे। शायद इसलिए चुनाव के दौरान इन खेमों से विरोध के सुर उठते रहे। परंतु वीरभद्र के राजनीतिक कौशल की दाद देनी होगी कि उन्होंने किसी भी विरोधी को अपनी मंशाओं पर हावी नहीं होने दिया।

दूसरी तरफ अगर भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में विजयी हुई तो प्रेम कुमार धूमल तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे। भाजपा के नए राजनीतिक पैमानों के अनुसार धूमल की राजनीतिक आयु अभी शेष है। पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार इस लिहाज से निश्चित उम्र के पड़ाव को पार कर चुके हैं। हालांकि शांता कुमार कांगड़ा की 15 विधानसभा सीटों पर अब भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। फिलहाल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और हिमाचल प्रदेश से राज्य सभा सांसद जगत प्रकाश नड्डा को भी पहले मुख्यमंत्री पद का सशक्त दावेदार माना जा रहा था। 1मगर सारी अटकलों पर तब विराम लगा जब भाजपा ने परंपरा के इतर चुनाव से पहले प्रेम कुमार धूमल का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार के तौर पर घोषित कर दिया।

सवाल यह उठता है कि अखिर ऐसी कौन सी ऐसी परिस्थितियां बनीं कि भाजपा को अपनी इस परंपरा को तोड़ना पड़ा। कहा जा रहा है कि धूमल के पुत्र और सांसद अनुराग ठाकुर ने दिल्ली में अपने पिता के पक्ष में जो माहौल तैयार किया, यह सब उसी का नतीजा है। अनुराग ठाकुर हमीरपुर से सांसद और भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वह बीसीसीआइ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनकी राजनैतिक साख, कौशल और अनुभव से प्रदेश और पार्टी के भीतर जिस प्रकार उनकी छवि बन रही है, वह पार्टी में विरधी खेमे के लिए भविष्य में एक बड़ी चुनौती बनेगी। बहरहाल, हिमाचल की जनता अभी से दो पुत्रों अनुराग ठाकुर और ठाकुर विक्रमादित्य के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की भविष्यवाणी कर रही है।

अगर यह भविष्यवाणी सच साबित होती है तो प्रदेश में ऐसा पहली बार होगा जब कोई मुख्यमंत्री का पुत्र मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल होगा। इन्हीं राजनैतिक संभावनाओं की जमीन वर्तमान में तैयार हो रही है। हिमाचल के अन्य मुख्मंत्रियों के वारिस कभी ऐसा राजनीतिक रसूख नहीं बना पाए कि उन्हें राज्य की जनता ने भविष्य के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर आंका हो। प्रदेश के पहले और चार बार मुख्यमंत्री रह चुके डॉ. यशवंत सिंह परमार के पुत्र की स्थिति यह है कि इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें टिकट तक नहीं दिया। कहा जा रहा है कि कुश परमार ने इस बार अपने पुत्र के लिए टिकट की मांग की थी। टिकट न मिलने पर उनके बेटे भाजपा में शामिल हो गए। कुश परमार तीन बार विधायक रह चुके हैं। महत्वपूर्ण पदों पर भी उनकी तोजपोशी कभी नहीं हुई है।

दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके ठाकुर राम लाला के पुत्र रोहित ठाकुर की स्थिति इस लिहाज से बेहतर है। वह अपनी पैतृक विधान सभा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं और वर्तमान में मुख्य संसदीय सचिव हैं। कांग्रेस पार्टी ने इस बार भी उन्हें ही जुब्बल-कोटखाई से उम्मीदवार बनाया है। यह वही विधानसभा क्षेत्र है जो गुडिया रेप कांड के कारण हाल के दिनों में खूब चर्चा में रहा। रोहित ठाकुर के लिए इस बार दोहरी लड़ाई है। पहला-गुडिया रेप केस के कारण नाराज स्थानीय लोगों को फिर से विश्वास में लेना और दूसरा सत्ता विरोधी लहर और भाजपा के मजबूत उम्मीदवार नरेंद्र बरागटा को शिकस्त देना। यदि रोहित ठाकुर इन चुनौतियों से पार पा गए तो पार्टी के भीतर उनके कद, पद और प्रतिष्ठा में अवश्य इजाफा होगा। बहरहाल इसके लिए चुनाव नतीजों का इंतजार करना होगा।

पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में हिमाचल प्रदेश से लोकसभा सांसद शांता कुमार राजनीति में परिवारवाद का व्यावहारिक रूप से विरोध करते रहे हैं। भाजपा में पनप रहे परिवारवाद का कई बार उन्होंने मुखरता से विरोध किया है। कर्नाटक चुनाव के दौरान उन्होंने भाजपा नेता और कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री वी.एस. येदियुरप्पा पर तीखी पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि भारतीय जनात पार्टी पहले कार्यकर्ताओं की पार्टी हुआ करती थी जो अब तीव्रता से पुत्र, पुत्रियों और रिश्तेदोरों की पार्टी बनती जा रही है। लोकतंत्र पर परिवारतंत्र हावी है। इन्हीं राजनीतिक आदर्शो के चलते उन्होंने अपने परिवार को राजनीति से दूर रखा। शांता कुमार की तीन बेटियां और एक बेटा है और कोई भी राजनीति में नहीं है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कॉलर हैं)


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