कांग्रेस का रास्ता पकड़कर पूर्व सांसद सुरेश चंदेल ने करवाई किरकरी
Ex MP Suresh chandel not get congress Ticket पूर्व सांसद सुरेश चंदेल ने कांग्रेस का रास्ता पकड़कर पुराने दौर में लौट आने की कोशिश में अपनी किरकिरी करवा ली।
बिलासपुर, जेएनएन। Loksabha Election 2019, पूर्व सांसद सुरेश चंदेल ने कांग्रेस का रास्ता पकड़कर पुराने दौर में लौट आने की कोशिश में अपनी किरकिरी करवा ली। विधानसभा चुनाव में टिकट कटने के बाद से चंदेल ने पहले भाजपा में अपनी जगह बनाने के लिए कई दिनों तक रणनीतिक दबाव बनाया। वह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तक के आश्वासन को ठुकराकर कांग्रेस मुख्यालय में अपने दिन फिरने की उम्मीद लगाकर खड़े हुए। यहां कई दिनों तक उनकी एंट्री के लिए चलते रहे प्रयासों पर कई पक्षों की पैरवी के बावजूद कांग्रेस हाईकमान भी उन्हें लेने के लिए तैयार नहीं हुआ और टिकट पर भी ठेंगा दिखा दिया।
कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उन्हें पार्टी की गुटीय लड़ाई में अपने स्कोर फिट करने की कोशिशों में एक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया जहां से न वह अपने घर में ससम्मान वापसी की स्थिति में हैं और न ही कांग्रेस में जा सकते हैं। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र ही नहीं पूरे हिमाचल में चंदेल भाजपा के बड़े नेताओं में शुमार रहे हैं। वह आरएसएस व एबीवीपी के कॉडर से निकले हुए नेता हैं। उन्होंने बतौर संगठन मंत्री रहते हिमाचल में भाजपा का विस्तार करने में अहम भूमिका निभाई थी। चंदेल के समय जयराम ठाकुर, सतपाल सत्ती सहित कई नेताओं ने प्रदेश में अहम पदों पर जगह बनाई।
भाजपा का नियम था संगठन मंत्री रहते किसी भी नेता को टिकट नहीं दिया जाएगा। इसे दरकिनार कर भाजपा ने उन्हें सांसद का टिकट दिया गया और वह लगातार तीन बार सांसद बने। इस दौरान वह पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे। 'ऑपरेशन दुर्योधनÓ में वह ऐसे फंसे कि कांग्रेस उन्हें अब भी अुर्जन नहीं बना पाई। खैर, भाजपा ने सभी आरोपों को दरकिनार कर 2012 में उन्हें टिकट दिया लेकिन पांच हजार मतों से हार गए। इसके बाद वह सदर विधानसभा क्षेत्र में विपक्ष की भूमिका में प्रमुख नेता के रूप में रहे। जब टिकट की बारी आई तो पार्टी ने सर्वे का हवाला देकर जेपी नड्डा के करीबी रहे सुभाष ठाकुर को टिकट दे दिया और वह जीत गए।
प्रदेश में भाजपा सरकार बनने पर भी पार्टी ने उन्हें तवज्जो नहीं दी, लिहाजा लोकसभा चुनाव नजदीक आते देख उन्होंने कांग्रेस नेताओं से मुलाकात बढ़ा दी। उन्हें मनाने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती, जेपी नड्डा व अमित शाह तक ने प्रयास किया और पार्टी न छोडऩे का आग्रह किया। लेकिन चंदेल ने इसे ठुकरा दिया और कांग्रेस में शामिल होने की ओर बढऩे लगे। कांग्रेस के हिमाचल व दिल्ली के नेताओं ने पार्टी हाईकमान के समक्ष उन्हें भाजपा के खिलाफ तुरुप के पत्ते के रूप में पेश किया। लेकिन पार्टी की गुटीय लड़ाई में चंदेल कांग्रेस में जाने की बजाय इस्तेमाल होते रहे। एक पक्ष उन्हें कांग्रेस में ले जाने में लगा रहा और दूसरा पक्ष धकियाने में लगा रहा। अंतिम समय तक चंदेल को आश्वासन ही मिलते रहे।
कांग्रेस ने ऐन मौके पर चंदेल के आने को पार्टी काडर को नुकसान मानकर रामलाल ठाकुर को चुनाव मैदान में उतार दिया। भाजपा में नीचे से ऊपर तक सभी पक्षों के आग्रह को ठुकराने के बाद और कांग्रेस में दरवाजे बंद होने पर चंदेल के लिए भाजपा में बने रहने की स्थिति इससे भी खराब हो गई जिस हालात में वह पहले घुटन महसूस कर रहे थे।
अभी भाजपा में ही हूं। कांग्रेस की ओर से आश्वासन मिले थे कि पार्टी में टिकट के साथ शामिल करेंगे लेकिन यह नहीं हो पाया है। इसकी क्या वजह रही यह तो कांग्रेस ही बेहतर बता सकती है। तुरंत आगे का निर्णय लेने की बजाय कुछ दिन अपने पक्ष के लोगों से ङ्क्षचतन करने के बाद ही कोई फैसला करूंगा। -सुरेश चंदेल, पूर्व सांसद।