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हरियाणा में कहीं अपने ही तो नहीं बने BJP के लिए बहुमत से दूरी का कारण

Haryana assembly election 2019 फीके प्रदर्शन का अधिकारिक कारण जानने के लिए बैठकों के दौर शुरू हो चुके हैं। पार्टी के नेता भी हाईकमान तक ठोस सूचनाएं पहुंचा रहे हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 05 Nov 2019 10:06 AM (IST)Updated: Tue, 05 Nov 2019 10:15 AM (IST)
हरियाणा में कहीं अपने ही तो नहीं बने BJP के लिए बहुमत से दूरी का कारण
हरियाणा में कहीं अपने ही तो नहीं बने BJP के लिए बहुमत से दूरी का कारण

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। गगनचुंबी इमारत के लिए गहरी नींव जरूरी है। भाजपा अगर आसमान से जमीन पर पहुंची है तो नींव की फिक्र करना इसका बड़ा कारण रहा है। लक्ष्य आसमान छूने का था, मगर नींव कमजोर थी। यही वजह रही कि कल्पना का महल भरभराकर गिर गया। फीके प्रदर्शन का अधिकारिक कारण जानने के लिए बैठकों के दौर शुरू हो चुके हैं। पार्टी के नेता भी हाईकमान तक ठोस सूचनाएं पहुंचा रहे हैं।

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गौरतलब है कि जिनको चुनावी हार की पीड़ा है उनके लिए पार्टी की हार के कारण कुछ अलग है। जिन्हें टिकट से वंचित रहना पड़ा उनके लिए हार के कारण अलग है, लेकिन भाजपा के ही एक राष्ट्रीय पदाधिकारी द्वारा किया गया अपना आकलन भी तर्कसंगत है। जैसे-जैसे सूचनाएं आ रही है, वैसे ही कई चौंकाने वाले कारण भी सामने आते जा रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार पार्टी के कई बड़े दिग्गज नहीं चाहते थे कि बड़ी जीत हो, क्योंकि छोटी जीत में उनका हित छुपा हुआ था। किसी की इच्छा भाजपा को 45 पर रोकने की थी तो कोई 50 के आसपास सीटें चाह रहे थे। इस गणित में बड़े खिलाड़ियों के अपने-अपने हित थे। असलियत इसलिए नहीं कही जा रही, क्योंकि दूध के धुले चेहरे कम हैं। अधिकतर नेताओं के साथ भितरघात की कहानी जुड़ गई है।

एक वरिष्ठ पदाधिकारी के माध्यम से हाईकमान तक पहुंची दमदार सूचनाओं में बहुमत से दूर रहने का ठोस कारण छुपा है। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि बड़े नेताओं के भितरघात और प्रदेश के अन्य हिस्सों में फीके प्रदर्शन के बावजूद अहीरवाल ने हमेशा भाजपा की झोली भरी है। यदि अब इस क्षेत्र की उपेक्षा हुई तो अहीरवाल अपने पुराने ठिकाने पर लौट जाएगा।

हाईकमान तक पहुंची कुछ दमदार सूचनाएं

  • अब तक हुए विस चुनावों में टिकट से वंचित रहने वाले कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने, उन्हें काम पर जुटाने के लिए वरिष्ठ नेता पहुंचते थे। बैठकें होती थी, परंतु इस बार ऐसा नहीं हुआ। इसकी वजह अति आत्मविश्वास था। टिकट कटने से निराश लोगों के आंसू पोंछने उनके घर तक बड़े नेता नहीं पहुंचे।
  • ऐन चुनाव के समय धड़ाधड़ दूसरे दलों के लोगों की एंट्री की गई। उन्हें फ्रंट लाइन में बिठाया गया, जबकि पांच साल तक पसीना बहाने वाला अपना कार्यकर्ता पिछली पंक्ति में पहुंच गया। इससे उनमें उदासीनता आई और कम मतदान हुआ। यह भाजपा को बहुमत से दूर रखने की बड़ी वजह रही।
  • अधिकांश मंत्रियों की हार का कार्यकर्ताओं से संवाद की कमी रही। कई मंत्रियों में अहंकार था। उन्होंने संगठन को कुछ समझा ही नहीं। अधिकांश हवा में थे। उन्हें लगता था कि भाजपा की 75 पार की सुनामी उन्हें गुमनामी में नहीं जाने देगी।
  • कुछ मामलों में पार्टी उन लोगों के साथ खड़ी दिखाई दी, जो भ्रष्टाचार में संलिप्त थे। हालांकि किसी का नाम नहीं लिखा गया है।
  • पार्टी के अध्यक्ष और संगठन मंत्री जिला मुख्यालयों तक तो पहुंचे, परंतु विधानसभा व इससे निचले स्तर पर उनकी मौजूदगी कम रही। कनेक्टिविटी कम होने का परिणाम कम सीटें मिलना रहा।
  • आरएसएस के संस्कारों को कई पदाधिकारियों ने छोड़ दिया। पहले संघ संस्कारों में पले-बढ़े पदाधिकारी मंच पर जाने से बचते थे। भीड़ के बीच रहते थे। असली फीडबैक लेते थे, परंतु कुछ वषों से परिपाटी बदल गई। जमीन से अधिक मंच की चाह हो गई।

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