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Exclusive: अमित शाह चाहते तो लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के साथ आने को तैयार थे दुष्यंत

दुष्यंत चौटाला लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन कर सकते थे। अगर अमित शाह चाहते तो वह भाजपा के साथ आने में कोई संकोच नहीं करते।

By Mangal YadavEdited By: Published: Tue, 29 Oct 2019 09:57 PM (IST)Updated: Tue, 29 Oct 2019 09:57 PM (IST)
Exclusive: अमित शाह चाहते तो लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के साथ आने को तैयार थे दुष्यंत
Exclusive: अमित शाह चाहते तो लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के साथ आने को तैयार थे दुष्यंत

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। जननायक जनता पार्टी (जजपा) नेता और हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का भाजपा के साथ कदमताल करने का फैसला उन लोगों के लिए जरा भी हैरत भरा नहीं है, जो प्रदेश के राजनीतिक मिजाज को समझते हैं। दुष्यंत चाहते तो चुनाव परिणाम के तुरंत बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा की गई साथ आने की अपील स्वीकार कर सकते थे, लेकिन विरासत के कारण कम उम्र में ही राजनीति दाव-पेच सीख चुके जूनियर चौटाला ने यह प्रस्ताव ठुकराने में देर नहीं की। उनके मुख्यमंत्री मनोहरलाल के साथ जाने की अपनी वजह भी है।

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विधानसभा चुनावों में परिस्थितियों ने भले ही चौधरी देवीलाल के प्रपौत्र को भाजपा के साथ कदमताल का अवसर दिया है, मगर हकीकत में दुष्यंत चौटाला लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा के निकट आने को तैयार थे।

साल भर पहले दुष्यंत ने दिया था इशारा

दुष्यंत को समझना है तो थोड़ा अतीत में झांक लीजिए। अगर लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उनको साथ चलने का सम्मानजनक ऑफर देते तो दुष्यंत इनकार नहीं करते। वह 23 अक्टूबर 2018 का दिन था। तब इनेलो दुष्यंत को निष्कासित करने के लिए कारण बताओ नोटिस दे चुका था, लेकिन इससे बेपरवाह दुष्यंत हरियाणा नापने के लिए निकल चुके थे। उस दिन दुष्यंत ने अपने कुछ खास मित्रों को मन की बात बताई थी। जब दुष्यंत की कार अहीरवाल के गढ़ रेवाड़ी जिले की सड़कों पर हिचकोले खा रही थी तब दुष्यंत के चेहरे पर भाव आ-जा रहे थे।

दैनिक जागरण के कुरेदने पर भी उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के खिलाफ कुछ नहीं कहा। उसी दिन दुष्यंत ने अपने खास मित्रों से कहा था कि मोदी अगर देश की चिंता कर रहे हैं तो उन्हें भी उनका साथ देने में परहेज नहीं होगा। दुष्यंत की निगाह तब केंद्र में पावरफुल मंत्रालय पर थी, परंतु मोदी लहर में भाजपा ने ऐसी कोई जरूरत ही नहीं समझी, न उसे पड़ी।

किसान हित में चाहते थे बड़ा फैसला

दुष्यंत केंद्र में मंत्री बनकर एक कलम से किसान हित में बड़ा फैसला लेना चाहते थे। उन्होंने तब अपनी पूरी कार्ययोजना तो स्पष्ट नहीं की थी, परंतु इतना अवश्य कहा था कि मौका मिला तो किसान जीवनभर उनको याद रखेंगे। उस बातचीत के गवाह जजपा के पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव भी हैं। हालांकि, लोस चुनाव में भाजपा ने जजपा को साथ लेने का प्रयास नहीं किया और अकेले दम पर मैदान जीत लिया, लेकिन अमित शाह संपर्क करते तो यह युवा नेता उनकी टीम का हिस्सा हो सकता था। जजपा नेता की तमन्ना देश का बड़ा किसान नेता बनने की थी।

सूत्रों के अनुसार अब भी उनका मिशन यही रहेगा। उनका नजरिया है कि देश की किसान राजनीति में बड़ा शून्य है। चौ. चरण सिंह व चौ. देवीलाल जैसे बड़े किसान नेताओं की कमी पूरा होना जरूरी है। उनकी राजनीति का आधार यही रहेगा। प्रपितामह जैसा कद पाने की तमन्ना कब पूरी होगी यह तो वक्त बताएगा, परंतु शिखर की ओर जा रही सीढ़ी पर पहला पायदान चढ़ने में तो दुष्यंत कामयाब हो ही गए हैं। यह सत्ता की सीढ़ी है। जरा सा बैलेंस बिगड़ा कि गिरे और थोड़ी सावधानी रही तो मंजिल के निकट जाने के लिए एक के बाद एक कई पायदान सामने हैं।

एक वर्ष पहले दुष्यंत ने क्या कहा था

  • हमने रख दिया कलेजा जालिमों के तीर पर, फैसला कर लिया आसमान छूने का बादलों को चीरकर।
  • न तो मैं मौन हूं, न मेरे कदम रुके हैं, मैं तो चल पड़ा हूं।
  • वो तो आजमा रहे हैं, हमें कलेजा आजमाने दो, वो डर दिखा रहे हैं, हमें हौसला दिखाने दो।
  • दादा के उसूलों से हमने सीखा है-चाहे कांटे लगे या छाले पड़ें, चलना है तो चलना है।

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