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Haryana Assembly Election 2019: मनोहर, हुड्डा और दुष्यंत की पॉलिटिक्स में उलझे हरियाणा के जाट

Haryana Assembly Election 2019 में जाट मतदाता मनोहरलाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दुष्‍यंत चौटाला की राजनीति में उलझ गए हैं। जाटों का रुख चुनाव में दिलचस्‍पी का कारण बन गया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 17 Oct 2019 09:18 AM (IST)Updated: Thu, 17 Oct 2019 09:18 AM (IST)
Haryana Assembly Election 2019: मनोहर, हुड्डा और दुष्यंत की पॉलिटिक्स में उलझे हरियाणा के जाट
Haryana Assembly Election 2019: मनोहर, हुड्डा और दुष्यंत की पॉलिटिक्स में उलझे हरियाणा के जाट

हरियाणा, [अनुराग अग्रवाल]। Haryana Assembly Election 2019 में हरियाणा की राजनीति का मिजाज  खासा गरम है। जहां देखो, वहीं हार जीत के आकलन। वोटों के जुड़ने और टूटने का गणित। जाट और गैर जाट राजनीति के साथ दलित वोटों को साधने की जुगत। चुनाव के इस वक्त में जरा भी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। इससे बचने के लिए राजनीति दल फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं।

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एक दर्जन जिलों की 30 विधानसभा सीटों पर जाट समीकरणों को बनाने-बिगाडऩे की स्थिति में

सिरसा-फतेहाबाद बेल्ट में मतदाता ज्यादा मुखर नहीं है। हिसार-भिवानी बेल्ट में जोश तो खूब है, लेकिन मतदाता साइलेंट मोड में हैं। गुरुग्राम-फरीदाबाद-पलवल में रात को राजनीति का बाजार छोटे-छोटू समूहों में सजता है। रोहतक-सोनीपत की बेल्ट अभी पूरी तरह से असमंजस में है। कुरुक्षेत्र-करनाल और अंबाला की जीटी रोड बेल्ट का मिजाज साफ है।

प्रदेश के राजनीतिक माहौल की जब भी चर्चा होती है तो जाट पालीटिक्स पर जरूर बात आती है। भजनलाल के राज को यदि छोड़ दिया जाए तो हरियाणा में लंबे अरसे के बाद भाजपा के मनोहर लाल की गैर जाट सरकार बनी है। पूरे पांच साल का सफर तय करने के बाद अब मनोहर सरकार और पिछली सरकारों के अधिकतर मुखिया फिर चुनावी रण में हैं। कहने को जाट और गैर जाट राजनीति की इस बार के चुनाव में बात नहीं हो रही, लेकिन अंदर ही अंदर पूरा करेंट है। यह जाट मतदाताओं में भी और गैर जाट मतदाताओं में भी महसूस होता है।

भाजपा ने 20, कांग्रेस ने 27, जेजेपी ने 34 और इनेलो ने दिए 30 जाट प्रत्याशी उतारे

हरियाणा की राजनीतिक पृष्ठभूमि में जाटों की राजनीति का अहम योगदान है। इसलिए यहां इस बात को समझ लेना बेहद जरूरी हो गया है कि इस बार जाट पॉलिटिक्स का क्या रुख है। भाजपा पर गैर जाट समर्थक होने के आरोप भी लगे, लेकिन फिर भी मनोहर लाल ने 90 में से 20 टिकट जाट उम्मीदवारों को दिलाए। कांग्रेस के मौजूदा अधिकतर विधायक जाट हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा जाट लीडरशिप को उभारने के चक्कर में 27 जाटों को टिकट दिला ले गए।

चौधरी देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो दोफाड़ हो गई, फिर भी उसने 30 जाटों को टिकट दिए। इसी तरह इनेलो के विघटन के बाद अस्तित्व में आई अजय सिंह चौटाला और दुष्यंत सिंह चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी ने सबसे ज्यादा 34 जाटों को टिकट दिए।

राजनीतिक दलों के इस जाट प्रेम का मतलब साफ है कि वे हरियाणा में जाट पॉलिटिक्स को नजरअंदाज नहीं कर सकते। पिछले चुनाव में भाजपा ने दो दर्जन जाटों को टिकट दिए थे। इस बार भाजपा हो या फिर दूसरे राजनीतिक दल, सभी का जाटों को साधने पर जोर है। राज्य की जाट राजनीति को इस अंदाज में समझिए कि भाजपा में बीरेंद्र सिंह, सुभाष बराला, कैप्टन अभिमन्यु और ओमप्रकाश धनखड़ जाट राजनीति करते हैं। कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा तथा इनेलो में अभय सिंह चौटाला जाट राजनीति के पोषक हैं। जजपा में यह बीड़ा अब दुष्यंत सिंह चौटाला ने उठाया है। स्पष्ट है कि राजनीतिक दलों का काम जाटों को नजर अंदाज करके चलने वाला नहीं है।

हरियाणा के रोहतक, सोनीपत, झज्जर, चरखी दादरी, पानीपत, जींद, कैथल, सिरसा, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी रको जाट बहुल माना जाता है। इन जिलों की 30 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां जाट मतदाता पूरी तरह से निर्णायक स्थिति में हैं। इसलिए कोई भी राजनीतिक दल जाटों की पालीटिक्स और उनके कड़क अंदाज को नजर अंदाज करने की जुर्रत नहीं दिखा पा रहा है। भाजपा हो या कांग्रेस अथवा जजपा व इनेलो, सभी ने जाटों को साधने की दिशा में अंदरूनी तौर पर अपने प्रयासों को तेज कर रखा है।

जाटों के सहयोग के बिना भाजपा का मिशन-75 पार का लक्ष्य पूरा होने की संभावना नहीं है। लोकसभा चुनावों में मोदी लहर पर सवार हो दो दर्जन जाट हलकों में विजय पताका फहराने वाली भाजपा ने इन क्षेत्रों में फिर से कमल खिलाने के लिए विपक्षी चक्रव्यूह को भेदने की पूरी रणनीति तय कर ली है। प्रदेश में करीब 28 फीसद जाट वोट बैंक है जो किसी भी पार्टी को चुनाव जिताने और हराने की ताकत रखता है। यही वजह है कि हरियाणा की राजनीतिक धुरी लंबे समय तक जाट समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है।

मौजूदा हालात की बात करें तो जाटों की पहली पसंद कहे जानी वाली इनेलो के विघटन के बाद जाट वोट बैंक बंटा है। इस समुदाय का कुछ वोटर कांग्रेस की ओर झुका तो कुछ जजपा के साथ खड़ा नजर आ रहा। नौकरियों में भर्तियों सहित अन्य कई मुद्दों के चलते बड़ी संख्या में जाट भाजपा से जुड़े हैं जिन्हें वोट बैंक में बदलने के लिए पार्टी कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती। लोकसभा चुनाव में जाटों ने अपने भाजपा प्रेम का प्रदर्शन कर भी दिया है।

भाजपा के दो कद्दावर मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ बादली और कैप्टन अभिमन्यु नारनौंद में जहां मजबूती से खड़े हैं, वहीं प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला टोहाना में सीधे मुकाबले में हैं। इसके अलावा गढ़ी सांपला, किलोई, बेरी, महम, कैथल, ऐलनाबाद जैसी कई विधानसभा सीटों पर भाजपा को कहीं कांग्रेस तो कहीं जजपा से सीधी टक्कर मिल रही है। कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, इनेलो में अभय सिंह चौटाला और जजपा में खुद दुष्यंत चौटाला चुनावी ताल ठोंक रहे हैं।

लोकसभा में विजयश्री के बावजूद रह गई थी कसक

हरियाणा की दस लोकसभा सीटों के चुनाव में भाजपा विपक्ष का सूपड़ा साफ करने के बावजूद जाट बहुल दस विधानसभा सीटों पर भाजपा पिछड़ गई थी। इनमें नारनौंद, बादली, गढ़ी सांपला-किलोई, बेरी और महम शामिल है। मिशन-75 पार के लिए भाजपा के लिए जाट बहुल सीटों का तिलिस्म तोडऩा जरूरी हो गया है। यही वजह है कि भाजपा ने जाट बहुल इलाकों में केंद्रीय नेताओं के दौरे अधिक रखे हैं।

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भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं के निशाने पर तमाम वे नेता हैं, जो उसकी मिशन 75 की राह में रोड़ा बन सकते हैं। इसके विपरीत भूपेंद्र सिंह हुड्डा व दुष्यंत चौटाला की कोशिश जाट वोट बैंक को अपने-अपने पक्ष में लामबंद करने की बनी हुई है। इसके लिए दोनों के रणनीतिकार तमाम तरह के प्रयास करने में लगे हैं।

भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग का भी डालेगी असर

सोशल इंजीनियरिंग पर चलते हुए भाजपा ने एक जट सिख, नौ पंजाबी, आठ वैश्य, एक बिश्नोई, आठ ब्राह्मण, छह अहीर, पांच गुर्जर, दो मेव, छह पिछड़ा वर्ग से, चार राजपूत, दो रोड़ और 18 अनुसूचित जाति (एससी) उम्मीदवार भी चुनावी रण में उतारे हैं। जाट-गैर जाट के समीकरण के सहारे पार्टी चुनावी रण फतेह करने की रणनीति पर चल रही।

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